laLd`fr
में जनम लिया था । उनका परिवार चयंवरवयंशीय षिलरिय वर्ण की श्ेरी में था , किनतु मुषसिम आकायंता शासकों द्ारा हिनदू सवालभमानी षिलरिय योद्धाओं को युद्ध में पराजित करके , उनका अपमान करने की दृष्ट से चर्म कर्म में लगाने के बाद चमार बनाया गया था । इस प्रकार गुरु रैदास की जाति , जिसे चमार जाति के नाम से
समबोलधत किया जाता है , वह एक विवशता एवयं बलपूर्वक निर्मित सामाजिक व्वसथा है , जिसे कालायंतर में समाज ने भी मान्ता दे दी । सयंत शिरोमणि गुरु रैदास हिनदू समाज के एक सयंत
के रूप में ऐसे आराध् सयंत हुए , जिनहोंने जाति- पायंलत की सीमा से बाहर एक सच्े धर्मरषिक सयंत के रूप में हिनदू समाज का मार्ग दर्शन किया ।
पिता राहू तथा माता करमा के पुरि गुरु रैदास ने सयंत रामाननद को अपना गुरु बनाया और उनके लश्् बनकर आध्ाषतमक ज्ान अर्जित किया । उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा
मधुर व्वहार के कारण उनके समपक्फ में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे । प्रारमभ से ही गुरु रैदास परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका सवभाव था ।
साधु-सनतों की सहायता करने में उनको विशेष आननद मिलता था । वह उनहें प्राय : मूल् लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे । उनके सवभाव के कारण उनके माता-पिता और पत्नी प्रायः उनसे अप्रसन्न रहते थे । चयंवरवयंशीय षिलरिय से चमार बनाए गए और मलिन का्गों में जबरन जगाये जाने के बावजूद सयंत रैदास ने कभी भी एक श्े्ठ सयंत के आचरण को कभी नहीं त्ागा । हिनदू धर्म को छोड़कर मुषसिम धर्म सवीकार करने वाले सदन कसाई को अपने सयंत वचनों से वशीभूत करके पुनः हिनदू धर्म में दीलषित किया और उनका नाम रामदास रखा । सयंत रामकृ्र के भकत होने के बावजूद उनहोंने निराकार ब्रह्म के दार्शनिक लसद्धायंत को सथालपत किया और निरयंकारी सयंत समाज के माध्म से सनातन हिनदू सममान को बचाये रखा । अनेकों क्ट दिए जाने के बावजूद उनहोंने अपनी सयंत प्रवृत्ति को प्रदर्शन करके सुलतान सिकंदर लोदी के अपना चमतकार दिखाकर हतप्रभ कर दिया था । सयंत रैदास ने अपने अनुयायियों को कभी भी शासन-सत्ता से टकराने की सलाह नहीं दी और बिना रकतपात के ही देश के लाखों हिनदुओं के इसिामीकरण को रोकने में सफल रहे ।
सवामी रामानयंद के लश्् सयंत रैदास आसथा में लव्वास परनतु धर्म में आडमबर रचने के सखत खिलाफ , भषकतकाल , निर्गुण धारा के ज्ानाश््ी शाखा , कबीरदास के समकालीन थे । “ जाति-जाति में जाति हैं , जो केतन के पात , रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात ।” रविदास जी इस दोहे से समाज को सचेत करते हुए कहते हैं , जिस प्रकार केले के वृषि को छीलने पर छिलके के नीचे छिलका अतः अयंत में कुछ भी प्रापत नहीं होता हैं उसी प्रकार जाति जाति का रट लगाने से अयंत तक कुछ प्रापत नही होगा । मनु्् को आपस में जुड़ाव करने के लिए सर्वप्रथम जातिवाद का त्ाग करना होगा । सयंत रैदास ने हिनदू समाज को यह सनदेश दिया कि हम सभी ई्वर की सयंतान हैं । इसलिए हमें जात-पात , ऊंच-नीच , छुआछूत का कठोरता से खयंिन ( असवीकार करना ) करना चाहिए । हम सब को भाईचारे के साथ मिल कर समाज
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 41