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प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है । अगर इनकी शैषिलरक सतर की बात करें तो 35 % दलित आज भी निरषिरता की षसथलत में जीवन जीने को अभिशपत हैं ।
लव्वलवद्ाि् अनुदान आयोग के पूर्व अध्षि प्रोफ़ेसर सुखदेव थोराट लिखते हैं कि- “ आज़ादी से पहले की सामाजिक षसथलत ऐसी थी कि दलित समाज के लोगों को लशषिा का अधिकार नहीं था । इसके बाद अयंग्रेज़ों के शासनकाल में षसथलत्ाँ कुछ बदलीं और एक मुकत लशषिा व्वसथा लागू हुई । इससे कुछ लोगों को लाभ मिला था । आज़ादी के बाद इस बात को सवीकार किया गया और इस दिशा में नीति बनाने की ज़रूरत भी महसूस की गई । दो तरह की लशषिा नीति बनाई गई । एक तो इस बात पर आधारित थी कि इतिहास में जो वर्ग लशषिा से वयंलचत रहे हैं उनहें आरषिर के माध्म से मुख्धारा में आने का अवसर दिया जाए । इसे उनकी जनसयंख्ा के आधार पर तय किया गया । दूसरी तरह की नीति के तहत ग़रीब और पीछ़े छूट़े हुए लोगों के लिए छारिवृत्ति , किताबें और अन् रूपों में आर्थिक मदद जैसी व्वसथा की गईI ”
भारतीय सयंलवधान के अनुच्छेद-46 के अनुसार- ' राज् विशेष सावधानी के साथ समाज के कमजोर वगगों , विशेषकर अनुसूचित जाति / जनजातियों के शैलषिक एवयं आर्थिक हितों के उन्नयन को बढ़ावा देगा और सामाजिक अन्ा् और सभी प्रकार के सामाजिक शोषण से उनकी रषिा करेगा '। अनुच्छेद 330 , 332 , 335 , 338 से 342 तथा सयंलवधान के 5वीं और 6ठी अनुसूची अनुच्छेद 46 में दिए गए लक्् हेतु विशेष प्रावधानों के सयंबयंध में कार्य करते हैं । मेरा यह मानना है कि दलित एवयं पिछड़़े वगगों के लिए लशषिा , आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन का एक महतवपूर्ण कारक है । लशषिा ही एक ऐसा मूलमंत्र है जिससे हम अपने अतीत के साथ-साथ वर्तमान सामाजिक षसथलत का सहज आयंकलन कर सकते हैं ।
कोठारी आयोग भारत का ऐसा पहला लशषिा आयोग था , जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक
बदलावों के मद्ेनज़र कुछ ठोस सुझाव दिए । आयोग ने लशषिा पर सरकारी व्् बढ़ाने की बात की थी लेकिन 50 साल गुजर जाने के बावजूद आज भी सकल घरेलु उतपाद का छह प्रतिशत भी लशषिा के ऊपर खर्च नहीं किया जाता । समावेशी विकास के तहत इसे 9 % प्रतिशत ( नाइन इज माइन ) करने की बात थी लेकिन अब वो पुरानी बात हो गई है ।
रा्ट्ी् लशषिा नीति 24 जुलाई 1986 को भारत की प्रथम रा्ट्ी् लशषिा नीति घोषित की गई । सामाजिक दषिता , रा्ट्ी् एकता एवयं
समाजवादी समाज की सथापना करने का लक्् निर्धारित किया गया । रा्ट्ी् लशषिा का मूल मंत्र यह है कि एक निश्चत सतर तक प्रत्ेक बच्े को बिना किसी जात-पात , धर्म , सथान , लियंग भेद के , लगभग एक जैसी लशषिा प्रदान की जाये । इस दृष्ट से अगर हम नवोदय विद्ाि् , औपचारिक विद्ाि् और अनौपचारिक विद्ाि् में प्रति छारि प्रति वर्ष आने वाले खर्च को देंखें तो साफ़ साफ़ पता चलता है कि लशषिा की तीनों अलग-अलग परतें शैषिलरक गुणवत्ता की दृष्ट से कितनी असमान हो सकती हैं ।
38 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021