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लशषिा प्रदान करना है । लेकिन भारतीय जाति व्वसथा की सयंरचना ‘ शुद्धता-अशुद्धता ’ तथा ‘ विन्ालसत असमानता ’ पर आधारित होने तथा शुद्रों की सामाजिक पदकम में निम्न षसथलत के कारण उनहें लशषिा जैसी व्वसथा से दूर रखा गया था । जाति व्वसथा के दयंश को झेलने वाले भीमराव आयंबेडकर ने अपनी पुसतक ‘ एन्नीहिलेशन ऑफ़ कासट ’ में जाति व्वसथा की समाषपत की बात की है । उनका मत था कि जाति को समापत करने से पहले जाति से सम्बंधित धार्मिक धारणाओं को समापत करना होगा जो शासरिों में वर्णित है । सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने वाले कारकों में वे लशषिा को प्रथम सथान देते हैं । वे कहते हैं ‘ लशलषित बनो , सयंघर्ष करो और सयंगठित रहो ’। उनके इन सभी प्रयासों के फलसवरूप समाज में एक चेतना जाग्रत हुई तथा उनके बाद सभी राजनितिक दलों और सरकारों ने दलितों एवयं पिछड़ों की लशषिा के लिए सतत प्रयास किया ।
बाबा साहब भीमराव आयंबेडकर का मानना था कि यदि समाज को एक वृषि मान लिया जाये तो अर्थनीति उसकी जड़ है , राजनीति
आधार , विज्ान आदि उसके फूल हैं । इसलिए नये समाज की अर्थनीति या राजनीति पर दृष्टपात करने से पूर्व उसकी सयंसकृलत की ओर सबसे अधिक ध्ान देना होगा , क्ोंकि मूल और तने की सार्थकता तो उसके फूल में है । इसी श्रृंखला में उनहोंने ‘ बलह्कृत हितकारी ’ सभा का गठन कर तेरह लशषिर सयंसथाओं की सथापना की । उनहोंने समाज की नींव , नारी को , पुरुष के समान सशकत बनाने का बीड़ा भी उठाया । इसी कम में थोड़ा और अतीत में जायें तो हमारे बीच एक ऐसे युगपुरुष ज्ोलतबा फुले का नाम आता है जो सामाजिक कायंलत के अग्रदूत के रूप में जाने जाते हैं । ऐसे समय में जब भारतीय समाज अनेकों सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के मकड़जाल में फंसा था और षसरियों के लिए लशषिा सर्वथा वर्जित थी , ऐसे में ज्ोलतबा फुले ने समाज को इन कुरीतियों से मुकत करने के लिए बड़़े पैमाने पर आयंदोलन चलाया । उनहोंने ‘ सत् शोधक समाज ’ नामक सयंगठन की सथापना कर देश में जगह-जगह लशषिा की अलख जगाकर भारतीय जनमानस
को लशषिा के महतव से परिचय कराया ।
उनहोंने महारा्ट् में सर्वप्रथम महिला लशषिा तथा अछूतोद्धार का काम आरयंभ किया तथा पुणे में लड़कियों के लिए भारत का पहला विद्ाि् खोला । ज्ोलतबा फुले कायंलतकारी समाज सुधारक थे । उनहोंने धार्मिक पाखयंि , सामाजिक कुरीतियों एवयं अयंधलव्वास का पुरजोर विरोध किया । भेदभाव रहित , समानतावादी , सत्शोधक समाज की सथापना करने वाले तथा नारी लशषिा को प्रोतसालहत करने वाले ज्ोलतबा फूले का भारतीय समाज सदैव ऋणी रहेगा । बाबा साहेब भीम राव आयंबेडकर महातमा ज्ोलतबा फुले के आदशगों से बहुत प्रभावित थे और उनहोंने ज्ोलतबा फुले को अपना गुरु माना था ।
वर्तमान समय में अगर दलित समाज के बीच लशषिा व्वसथा पर अध््न करें तो पाते हैं कि आजादी के 70 साल के बाद कुछ सुधार के बावजूद भी बृहत् सतर पर षसथलत दयनीय बनी हुई है । भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार भारत की जनसयंख्ास में लगभग 16.6
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 37