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पूजा करते हैं ।
आदिवासी शबद दो शबदों ' आदि ' और ' वासी ' से मिल कर बना है । हमारे देश की कुल आबादी का 8.6 % अर्थात लगभग 10 करोड़ जनसयंख्ा आदिवासियों का है । हमारे सयंसकृत ग्रयंथों में आदिवासियों को ‘ अषतवका ’ कहा गया है । महातमा गायंधी ने आदिवासियों को ‘ गिरिजन ’ नाम दिया था । हमारे पलवरि ग्रयंथ भारतीय सयंलवधान में आदिवासियों के लिए ' अनुसूचित जाति एवयं जनजाति ’ पद का उपयोग किया गया है ।
अयंग्रेजी शासन के गुलामी काल में हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को लहयंदू धर्म से अलग रखकर गिना गया व इनहें देश की मुख् धारा से दूर रखा गया ताकि इनका धर्म परिवर्तन करके भारत में अपने धर्म की पैठ बढ़ा सकें । ईसट इषणि्ा कंपनी के बाद ब्रिटिश सरकार ने शेड्ूलि डिषसट्कट ऐकट 1874 जैसे कानूनी प्रावधान बनाकर ऐसे षिेरिों के लिए अलग प्रशासन की व्वसथा की । भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अलग धर्म में गिना गया है , जैसे अदर रिलिलज़्न-1871 , ऐबरिजनल 1881 , फारेसट ट्ाइब-1891 , एनिमिसट-1901 , एनिमिसट-1911 , प्रिमिटिव-1921 , ट्ाइबल रिलिजन -1931 , " ट्ाइब-1941 " इत्ालद नामों से वर्णित किया गया है । हालायंलक 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को हिनदू धर्म में गिनना शुरू कर दिया गया है ।
आजादी के बाद इनके लिये भारतीय सयंलवधान में सुविधा देने का प्रवयंध भी किया गया । आदिवासियों को सयंवैधानिक सयंरषिर देने हेतु सयंलवधान निर्माताओं और उनके बाद हमारी सयंसद ने आदिम जनजातियों की सुरषिा , सयंरषिर और विकास के लिए कई प्रावधान किए मगर उन सयंवैधानिक प्रावधानों के बावजूद आज भी ये प्रकृतिजन देश की अनेक सुविधाओं से वयंलचत हैं ।
सन् 1947 में देश के आजाद होने के बाद 1950 में सयंलवधान लागू हुआ तो इन जनजाति बाहुल् षिेरिों को 5वीं और छठी अनुसूची में वगटीकृत किया गया । सयंलवधान में 5वीं अनुसूची
के निर्माण के उद्े्् में कहा गया था कि इस प्रावधान से सुरषिा , सयंरषिर और विकास होगा । इस प्रावधान का उद्े्् आदिवासियों को सुरषिा देना तो था ही ; उनकी षिेरिी् सयंसकृलत का सयंरषिर और विकास भी किया जाना था , जिसमें उनकी बोली , भाषा , रीति-रिवाज और परयंपराएयं शामिल हैं । आदिवासी बाहुल् जो षिेरि पूर्णरूप से अलग-थलग रखे गए थे उनहें छठी अनुसूची में रखा गया , जिसमें पूववोत्तर के षिेरि थे , जो षिेरि मुख्धारा से आयंलशक रूप से अलग-थलग थे , अयंग्रेजों ने वहायं भी कोई हसतषिेप नहीं किया था । इसमें मध्प्रदेश , छत्तीसगढ़ , झारखणि , ओडिशा , राजसथान , महारा्ट् , गुजरात , तेियंगाना , आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं । भारत और थाईलेंड के मध् बसे अयंिमान के उत्तरी सेंटीनीली मे सेंटीलीनीज़
आदिवासियों का ठिकाना है । ये लव्व के सबसे पृथक आदिवासी लगभग साठ हजार वर्ष से वहाँ रह रहे हैं । उन तक आमजन का समपक्फ असफल रहा है ।
सयंवैधानिक प्रावधानों के अनुसार अब तक भारत सरकार द्ारा 703 जनजातियों को अधिसूचित किया गया है । आदिवासी जनजातियों की भी सैकड़ों उपजातियायं एवयं उतनी ही बोलियायं और सयंसकृलत्ायं हैं । इनमें से लगभग 75 जनजातियायं आदिम जातियों में शामिल की गई हैं । सयंलवधान में जनजातियों या आदिवासियों की सुरषिा , सयंरषिर और उनके विकास के लिए अनुच्छेद 244 , 244 ए , 275 ( 1 ), 342 , 338 ( ए ) और 339 जैसे प्रावधान किए गए हैं । इन प्रावधानों के साथ ही आदिवासियों के लिए सयंलवधान में 5वीं
34 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021