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जिला के अमरापारा प्रखयंि के पायंचुवाडा कोल परियोजना में भी आदिवासियों की जमीन ली गयी है । पयंजाब की पेनम कंपनी ने वहायं कोल माइयंस चालू किया जिसके कारण सथानीय आदिवासी समाज के लोग आज भी विसथापन का दयंश झेल रहे हैं । झारखयंि में विसथापन और मानवाधिकार का सयंकट बना हुआ है । हालायंलक विसथापन के विरूद्ध जन आयंदोलन भी किया
जा रहा है ।
अद्ुत , अमवितीय और अतुलनीय जैव विविधता
इस बारे में पर्यावरण सयंरषिर समिति के सदस् और सिदो कानहू मुर्मू लव्वलवधालय के भूगर्भशासरिी डा . प्रो . रणजीत कुमार लसयंह बताते हैं कि राजमहल पहाडी सबसे पुराना है , इसका निर्माण जवािामुखी विसफोट के कारण हिमालय के अषसततव में आने से बहुत पहले , यानी आज से तकरीबन 118 करोड़ साल पहले हुआ था । यह सुपर गोंडवना लैंड का अहम हिससा है । इस सथान का वैज्ालनक व पर्यावरणीय महतव इसी बात से समझा जा सकता है कि भू वैज्ालनकी के दृष्टकोण से लव्व धरोहर के बहुमूल् व
प्राचीनतम जीवा्म यहायं पाये जाते हैं । डॉ . लसयंह बताते हयंल कि यहायं की जैव विविधता अद्भुत , अलद्तीय और अतुलनीय है जिसका सही तरीके से इसतेमाल किया जाए और विसव के समषि कायदे से प्रसतुत किया जाए तो यह देश की अर्थव्वसथा के लिये भी काफी फायदेमयंद साबित हो सकता है । इसके अलावा इस इलाके का महतव इससे भी बढ़ जाता है कि राजमहल
पहाडी की उत्तर दिशा से होकर जीवनदायिनी गयंगा अविरल प्रवाहित होती है । झारखयंि में गयंगा नदी का प्रवाह षिेरि केवल साहिबगयंज जिला में ही है । गयंगा किनारे के विकास और प्रवाह की निर्मलता सुनिश्चत करने के लिये यहायं गयंगा समिति का भी गठन किया गया है । दियारा षिेरि की पैदावार वाली जमीन से किसान खेती करते हैं । लेकिन शहरों के कचरे से गयंगा प्रदूषित हो रही है । दूसरी ओर राजमहल के पहाड़ नयंगे हो रहे हैं । ऐसे में पर्यावरण का सयंकट खडा होना सवाभाविक ही है । गयंगा में मौजूद जलीय जीव डॉषलफन भी यहायं देखे जा सकते हैं तथा अनेक अन् जीव जयंतु भी गयंगा में निवास करते हैं । पिाषसटक कचरे को गयंगा में फेंके जाने से सिर्फ जल ही प्रदूषित नहीं हो रहा है बषलक जलचरों
का जीवन भी खतरे में है और गयंगा पर निर्भर हर षिेरि को समस्ाएयं झेलनी पड़ रही हैं । साथ ही गयंगा में कचरे और पिाषसटक की बढ़ती मारिा के कारण जो पर्यावरण के सयंकट की षसथलत उतपन्न हो रही है उससे यहायं की जैविक विविधता भी न्ट हो रही है । वे बताते हैं कि राजमहल की पहालड़्ों में जडी बुटियों का भी असीम भयंिार छिपा हुआ है जिसका सथानीय जनजाति समुदाय के लोग मसाले व औषधि के रूप में बड़़े पैमाने पर उपयोग करते हैं । राजमहल पहाडी षिेरि में कई पुराताषतवक महतव की चीजें बिखरी पडी हैं लेकिन पतथरों के बेतरतीब उतखनन से वे षिलतग्रसत व न्ट हो रहे हैं ।
संकल्प से सिद्धि की दिशा में आगे बढ़ना जरूरी
बताया जाता है कि साहिबगयंज जिले में तीन सौ से अधिक सथानों पर अवैध खनन का कारोबार चल रहा है और पहाडों को नयंगा किया जा चुका है जिससे पर्यावरण सयंतुलन बड़़े पैमाने पर बुरी तरह प्रभावित हुआ है । खास तौर से कशरों से निकलने वाले डसट पार्टिकल वायुमयंिि को प्रदुषित कर रहे हैं । सथानीय जानकारों व भू- वैज्ालनकों का कहना है कि जयंगलों और पहाड़ों की अयंधाधुयंध कटाई व बेतरतीब उतखनन से जयंगल में रहनेवाले जीव जयंतु तथा विभिन्न सपीशीज प्राणियों का अषसततव खतरे में आ गया है । नतीजन इसका असर यहायं के पहले के मुकाबले पूरी तरह तबदीि होते जा रहे मौसम के मिजाज पर भी देखा जा सकता है । मानवीय भौतिक आव््कता को पूरा करने के लिए जयंगलों , पहाड़ व प्रकृति से जो सयंवेदनहीन व बेतरतीब छ़ेड़छाड़ की जा रही है उस पर अयंकुश लगाने में देरी किए जाने का नतीजा हर लिहाज से बेहद घातक ही साबित होगा । लिहाजा आव््क है कि प्रकृति को बचाने और पर्यावरण की रषिा के साथ ही जैव विविधता के सयंरषिर के लिए भी सभी वर्ग सयंकलप से सिद्धि की दिशा में आगे बढ़ें और इस दिशा में मिल-जुल कर ईमानदारी से प्रयास करें ताकि वर्तमान की रषिा करके भलव्् की सुरषिा सुनिश्चत की जा सके । �
32 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021