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पतथर खदान षिेरि में पतथर के डसट बड़ी पैमाने पर हवा में तैरते हैं , जो माईकोन डसट कहलाता है । कहने को तो प्रदूषण के सतर की वैज्ालनकों द्ारा लगातार जायंच कराई जाती है जबकि हकीकत यह है कि डसट के कारण उस षिेरि में रहनेवाले लोगों की लजयंदगी तबाह हो रही है । पेड़ पौधे हों या मानव , सभी हवा में उड़ रहे धूलकण से परेशान हैं । इसके कारण आसपास के नदी व कुएयं में भी पानी प्रदूषित हो रहा है और अन् विकलपों के अभाव में वही प्रदूषित
पानी पीने के लिए सथानीय लोग मजबूर हैं । डसट के कारण सडकों का हाल बुरा है , उड़ती डसट के गुबार के कारण दिन में ही अयंधेरा छा जाता है । खदान षिेरि में पहाड को बलासट कर पतथर निकाले जाते हैं , जिसमें आये दिन मजदूरों की मौत के मामले सामने आते रहते हैं । दुमका जिला के शिकारीपाड़ा प्रखयंि षसथत पतथर खदान वाले षिेरि बेनागडिया , सरस डंगाल , पिनरगडिया ,
चितरागडिया , कौआमहल , हुलास डंगाल , पोखरिया , शहरबेडा , मोहलबना , लोडीपहाडी , ढ़ोलकट्ा समेत कई गायंवों में रहनेवाले लोगों का जीना दूभर हो गया है ।
तरश् प्रसिद्ध 108 शिव मंदिरों का अस्तित्व खतरे में
वर्ष 1980 से लगातार राजमहल की पहाडियों से पतथरों का उतखनन हो रहा है , जिससे सरकार को प्रतिवर्ष लगभग 40 करोड़
रूपए का राजसव प्रापत होता है । पतथर खदान में रह रहे लोगों के सवास्थ् बिगड़ रहे हैं , वे टीबी , दमा और लेप्रोसी से लेकर सायंस लेने में परेशानी सहित कई रोगों के शिकार बन हैं । बच्ों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव देखने को मिलता है । लव्व प्रसिद्ध 108 शिव मयंलदरों का गायंव मलूटी भी शिकारीपाडा में ही षसथत है । धूलकणों के निरयंतर उठते गुबार के कारण उन
शिव मयंलदरों का अषसततव भी खतरे में आ गया है । मलूटी के मयंलदरों की खूबसूरती पर डसट का प्रभाव सप्ट देखा जा सकता है । प्रसिद्ध इतिहासकार डा . सुरेनद्र झा बताते हैं कि मलूटी की खूबसूरती को बचाने की जरूरत हैं । शिकारीपाड़ा के पतथर बयंगाल व बिहार सहित कई राज्ों में रेलगाडी के रैक से और ट्कों से प्रतिदिन ढ़ोए जाते हैं । हाल में केनद्र सरकार द्ारा शिकारीपाडा प्रखयंि के 22 मौजा की जमीन को कोल बिॉक को आवयंलटत किया गया है । यहायं कोयला बहुतायत मारिा मेंपाया गया है । जिन गायंवों की जमीन कोल बिॉक को आवयंलटत की गई है गायंव हैं अमराकुंडा , सरसडंगाल एवयं अमरपानी । सथानीय लोग कोल बिॉक का विरोध कर अपनी जमीन नहीं देने के लिये आयंदोलन कर रहे हैं । सरसडंगाल के सरूवा हायंसदा , सोम टुडू , अविनाश सोरेन , रावण सोरेन और मनोज सोरेन बताते हैं कि आदिवासियों की नजर में जमीन का दर्जा उनकी मायं के बराबर होता है । उसे वे किसी भी कीमत पर किसी अन् को देने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं । जल , जयंगल और जमीन की रषिा के लिये वे किसी भी सतर पर विरोध करेंगे । कड़ा विरोध कर रहे हैं सथानीय आदिवासी दूसरी ओर झारखयंि में जलवायु परिवर्तन का असर अब सप्ट दिखने लगा है । निरयंतर बड़़े पैमाने पर कटान और उतखनन से जयंगल और पहाड सिमटते व छोट़े होते जा रहे हैं । आदिवासी सयंगठन की ओर से दुमका जिला के काठीकुंड प्रखयंि के आमगाछी , पोखरिया , दलदली , मनकाडीह , जयंगला चयंदन पहाडी , सालदाहा , भालकी एवयं बिलायकायंदर सहित 25 गायंवों के ग्राम प्रधानों ने लजयंदल के प्रसतालवत पावर प्लांट का बड़़े पैमाने पर भारी विरोध किया और इस व्ापक जन-प्रतिरोध का ही नतीजा रहा कि पावर प्लांट के प्रसताव को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका और लजयंदल को यहायं से बैरयंग वापस लौट जाना पडा । ग्राम सभा की अनुमति के बिना ही सरकार द्ारा कंपनियों को जमीन दे दिये जाने का आदिवासी समाज के सथानीय लोग कड़ा विरोध कर रहे हैं । पाकुड
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 31