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झारखंड में वन संपदा पर चल रही ताबड़तोड़ कु ल्ाडी

बेतरतीब कटान और उत्खनन से संकट में पर्यावरण अब और विस्ापन नहीं चाहते संघर्षरत आदिवासी
शैलेन्द्र जसन््ा

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रखयंि में जयंगल के लगातार कटने से पर्यावरण सयंतुलन बिगड रहा है । भूमयंििीकरण और व्वसायीकरण की प्रलक्ा में कई बड़ी कंपनियायं प्राकृतिक सयंसाधनों का अयंधाधुयंध दोहन कर रही हैं । आदिवासियों की जमीन पर अकूत खनिज सयंपदा है । वे कई बार विसथापन का दयंश झेल चुके हैं , लेकिन वे अब और विसथालपत नहीं होना चाहते हैं । झारखयंि में पेसा ऐकट और समता जजमेंट का लागू नहीं किया गया है । आदिवासी लचयंतक सह एडवोकेट सामूएल सोरेन बताते हैं कि सयंताल परगना में कोयला और पतथर का लगातार दोहन हो रहा है , पहाड़ नयंगे हो चुके हैं , पर्यावरण का सयंकट खडा हो गया है । आदिवासियों के घरों में धूल की परतें जम रही हैं , उनका सवासथ् खराब हो रहा है और पीने के पानी की समस्ा गयंभीर रूप ले चुकी है । सोरेन बताते हैं कि आदिवासियों को सवास्थ् की सुविधा नहीं होने से वे कम उम्र में ही मरने को मजबूर हो रहे हैं । खास तौर से उनके बच्ों के सवास्थ् पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है , बच्े कुपोषण के शिकार हो रहे हैं ।
कागजों तक सिमटे प्रदूषण नियंत्रण के नियम
झारखयंि राज् प्रदुषण नियंत्रण पार्षद के षिेरिी् पदाधिकारी रलवनद्र प्रसाद बताते हैं कि सयंताल परगना में लगभग दो हजार कशर व खदानें हैं जिनसे प्रतिदिन पतथर निकाले जा रहे हैं । प्रदूषण विभाग की ओर से एनओसी तभी
निर्गत किया जाता है जब वे प्रदूषण के मानकों पर खरा उतरते हैं । प्रसाद बताते हैं कि हरेक खदान षिेरि में चहारदीवरी होना अनिवार्य है , पानी का छिडकाव करना है , खदान षिेरि के आसपास पेड़ लगाना होगा , ऐसा नहीं करने पर उनका लाईसेंस रद् हो सकता है । प्रदूषण विभाग की ओर से वैज्ालनक सथि निरीषिर कर लैब ट़ेसट कर प्रदूषण के सतर की जायंच करते हैं ।
30 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021