eMag_Sept2021_DA | Page 21

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कि 1857 की कायंलत में समाज के तौर पर सबसे आगे बढ़कर भागीदारी करने के कारण अयंग्रेजों द्ारा अपराधी घोषित की गई अहेरिया — बहेलिया सरीखी सभी जातियों को सवतंत्रता सेनानी जाति घोषित किया जाए जिससे इनका खोया सममान इनहें लौटाया जा सके और इनहें मुख्धारा में शामिल होकर आगे आने का मौका मिल सके ।
आजाद भारत की सरकार ने भी किया अन््य

बहेलिया समाज के बारे में जानना जरूरी

बहेलिया भारत के उत्तर प्रदेश राज् में पाई जाने वाली एक लहयंदू जाति है । यह शिकारी और पषिी पकड़ने वालों का एक आदिवासी समुदाय हैं , और उनके नाम की उतपलत्त सयंसकृत के विदयका से हुयी है , जिसका अर्थ है बींधना । वे मुख् रूप से पलषियों को पकड़ने , मधुमषकख्ों से शहद निकालने और बेना ( हवा करने का ्नरि ) के निर्माण के लिए मोर पयंख बटोरते हैं । उत्तर प्रदेश के लिए भारत की 2011 की जनगणना में बहेलिया समाज की कुल आबादी 1,43,442 रिकॉर्ड की गई थी । पारयंपरिक रूप से बहेलियों की आर्थिक गतिविधि पषिी को पकड़ने और शहद बेचने के इर्द-गिर्द घूमती थी । इसके अलावा , उनकी मुख् आर्थिक गतिविधि मोर पयंख से बेना का निर्माण करना है । इन बेनों को फिर बनियों — बिचौलियों को बेच दिया जाता है , जो उनहें कोलकाता और दिलिी जैसे महानगरों व बड़़े शहरों में बेचते हैं । बहेलिया समाज की प्रत्ेक बसती में एक अनौपचारिक जाति परिषद होती है , जिसे बिरादरी पयंचायत के रूप में जाना जाता है । इसमें पाँच सदस् शामिल होते हैं जो समुदाय के सदस्ों द्ारा चुने जाते हैं । पयंचायत सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में कार्य करती है जो तलाक और व्लभचार जैसे मुद्ों पर समाज के भीतर से कोई समस्ा सामने आने पर उसका यथोचित निराकरण करती है ।
बड़़े आ्च््ण की बात है कि जो अहेरिया — बहेलिया जाति 1936 में अनुसूचित जाति थी और 1950 के मई माह में जारी अनुसूची में भी अनुसूचित जाति थी , वह अगसत , 1950 में भारत सरकार द्ारा जारी अनुसूची में अनुसूचित जाति से बाहर कैसे हो गई ? इस अन्ा् को पूरे समाज के खिलाफ किए गए षड़यंत्र का नाम क्ों नहीं दिया जाए ? निश्चत तौर पर अहेरिया — बहेलिया जाति के साथ सवतंत्र भारत में हुए इस अन्ा् की गहनता से जायंच कराए जाने की आव््कता है ताकि पता चल सके
कि इस देशभकत समाज के साथ ऐसा घिनौना षड़यंत्र करने वाले कौन लोग थे और ऐसा करने के पीछ़े उनका क्ा मकसद था । अनुसूचित जाति की सूची से इनहें बाहर करने के कारणों की पड़ताल होनी ही चाहिए । लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि अगर इनहें अनुसूचित जाति की सूची से बाहर किया गया तो किसी अन् सूची में सथान क्ों नहीं दिया गया । सवतंत्र भारत की पहली सरकार द्ारा इस समाज की इस तरह की गई बेकद्री और अनदेखी निश्चत तौर पर दुर्भाग्पूर्ण ही कही जाएगी ।
अनुसूचित जाति का अधिकार मिलने का
इं तजार आज षसथलत यह है कि अहेरिया ना
अनुसूचित जाति में गिनी जाती है , ना पिछड़़े वर्ग में इसकी गिनती है और ना ही यह विमुकत जातियों में शुमार होती है । ऐसे में केनद्र और राज्ों की सरकार को यह सप्ट करना चाहिए कि आखिर यह जाति है कहायं ? इस पूरे समाज
के अषसततव और वजूद को सिरे से नकारे जाने का सिलसिला आज भी जारी रहना बेहद अफसोसनाक है । हालायंलक गरीबों के लिए बनाई गई मोदी सरकार की अनेकानेक योजनाओं ने इनहें बहुत राहत दी है किनतु इनका अनुसूचित जाति का हक इनहें मिल जाएगा तो यह समाज बहुत तेजी से विकास की दिशा में अग्रसर होगा । इस बात में कोई शक नहीं है कि अहेरिया समाज के लोग भाजपा के नेतृतव में पूरा भरोसा रखते हैं और भाजपा के नेताओं से ही इनहें सात दशक के ियंबे कालखयंि से चली आ रही अपनी समस्ाओं का समाधान होने का लव्वास है । लेकिन इसके लिए इस समाज के नेताओं को भी सलक्ता दिखानी होगी और अपने हक की आवाज को जोरदार तरीके से बुियंद करना होगा । इस तथ्य को हर्गिज नहीं भुलाया जाना चाहिए कि जब हमारा समाज सो रहा था तब डॉ आमबेिकर जाग रहे थे , लेकिन अब जबकि समाज जाग चुका है इसलिए दलित नेताओं को और भी बढ़ — चढ़ कर सलक्ता के साथ प्रतिनिधितव करने की आव््कता है । �
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 21