eMag_Sept2021_DA | Page 19

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विद्ुत कनेकशन से उनके घर रोशन हैं । इन गायंवों में लोग पारिता के अनुसार पेंशन योजनाओं का भी लाभ प्रापत कर रहे हैं । कभी लशषिा इनके लिए दूर की कौड़ी थी , अब इनके गायंव में ही सरकारी सकूि व आयंगनबाड़ी केंद्र बन चुके हैं । गायंव के लोग आरओ मशीन से शुद्ध पेयजल
प्रापत करते हैं । यह सबकुछ हुआ है मार्च 2017 के बाद , जब योगी आदित्नाथ मुख्मंत्री बने । यह सीएम योगी की ही देन है कि राजसव ग्राम घोषित हो जाने से इन वनग्रामों के लोगों ने इस बार पहली दफा गायंव की अपनी सरकार ( पयंचायत ) का चुनाव किया । �

अंग्ेिों के जमाने से जुडा है वनटांगियों का इतिहास

जानकार बताते हैं कि 20वीं सदी की शुरूआत

के दौरान अयंग्रेजों के शासनकाल में पूवटी उत्तर प्रदेश में रेल लाइन बिछाने और सरकारी विभागों की इमारत के लिए लकड़ी मुहैया कराने के लिए बड़़े पैमाने पर जयंगल काट़े गए । अयंग्रेजों को उममीद थी कि काट़े गए पेड़ों की खूयंट से फिर नए जयंगल तैयार हो जाएयंगे , लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जमीन बयंजर होने लगी । ऐसे में अयंग्रेजों ने उन जगहों को दोबारा सघन वन षिेरि बनाने के लिए 1918 में बर्मा ( म्यांमार ) में आदिवासियों द्ारा पहाड़ों पर जयंगल तैयार करने के साथ-साथ खाली सथानों पर खेती करने की पद्धति ‘ टोंगिया ’ को आजमाया , इसलिए इस काम को करने वाले श्लमक वनटायंलग्ा कहलाए ।
फिरंगियों के दुषचक्र में फं स गए वनटांगिया
अयंग्रेजी हुकूमत के समय जयंगल षिेरि में टोंगिया पद्धति से पौधे लगाने और उन पौधों की देखरेख करने के लिए जो मजदूर रखे गए थे वे भूमिहीन श्लमक थे , इसलिए जब वन् षिेरि में जयंगल लगाने का काम मिला तो वे अपने परिवार को साथ लेकर ही वहायं पर रहने लगे । इन श्लमकों की पीलढ़्ायं वहीं बस गईं और उनका अपने मूल गायंवों से सयंपर्क कट गया । वे जयंगल के ही होकर रह गए । हालायंलक उनहें खेती के लिए जमीन दी जाती थी , लेकिन यह जमीन वन विभाग की होती थी , लिहाजा उस पर इन श्लमकों का कोई अधिकार नहीं था । हालायंलक सथानीय जमींदारों के जुलम से परेशान विभिन्न गायंवों के दलित और अति पिछड़़े वर्ग के ये भूमिहीन श्लमक राहत और रोजगार पाने के लिए अयंग्रेजों के साथ जयंगल में तो गए , लेकिन यहायं आकर वह शोषण के नए दु्चक में फंस गए , उनहें गुलाम बनाकर रखा गया ।
आजादी के बाद भी नहीं मिला अधिकार
जब देश आजाद हुआ तो इनके गायंवों को न तो राजसव ग्राम की मान्ता मिली और न ही इन लोगों को सयंलवधान के तहत नागरिकों के मूलभूत अधिकार दिए गए । मतलब वनटायंलग्ों को वे अधिकार हासिल नहीं हुए जो देश के आम नागरिकों को मिले थे । भारत की सवतंत्रता के बाद भी दशकों तक इनहें किस कदर अपनी पहचान और एक नागरिक के तौर पर मूलभूत अधिकारों से भी वयंलचत रहते हुए सामाजिक तौर पर उपेलषित जीवन बिताना पड़ा इसका सहज अयंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वनटायंलग्ों को लोकसभा और विधानसभा में वोट देने का अधिकार भी वर्ष 1995 में मिला ।
जातिवादी नेताओ ंने भी नहीं ली सुध
वनटायंलग्ों के गायंवों में सकूि , असपताल , बिजली , सड़क व पानी जैसी कोई सुविधा थी ही नहीं , एक तरह से वनटायंलग्ा खानाबदोश की लजयंदगी जी रहे थे । वनटायंलग्ा समुदाय के लोग श्ावसती , गोंडा और गोरखपुर में हैं । गोरखपुर से करीब 11 किलोमीटर दूर पिपराइच रोड पर वनटायंलग्ा गायंव शुरू हो जाते हैं । जानकारी के मुताबिक वनटायंलग्ा समाज की आबादी करीब 38 हजार के आसपास है । हैरत की बात तो ये है कि अनुसूचित जाति व पिछड़ी जाति से होने के बावजूद जातिवाद की राजनीति करने वालों ने वनटायंलग्ा बषसत्ों की कभी सुध नहीं ली । इनहें समाज की मुख् धारा में लाने का काम योगी आदित्नाथ ने शुरू किया । सायंसद रहते हुए योगी आदित्नाथ ने सड़क से सयंसद तक इनके अधिकारों की लड़ाई लड़ी और इनहें नागरिक अधिकार दिलाने व मुख् धारा के साथ जोड़ने में निर्णायक भूमिका निभाई ।
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 19