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ब्राह्मणों के वर्चसव में कमी आयी । लेकिन पिछड़ी और दलित जातियों के बीच वर्चसव को लेकर बढ़़े आपसी सयंघर्ष के बाद ब्राह्मण मतदाताओं की उपादेयता फिर से बढ़ने लगी ।
समावेशी स्वभाव के कारण भी ब््ह्मण महत्वपूर्ण
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 13-16 फीसदी तक मानी जाती है , जो अपने समावेशी सवभाव के कारण आम तौर पर कभी
अकेले नहीं रहते । यहायं माना जाता है कि ब्राह्मण के दाएयं 3 बायें 3 और पीछ़े 3 लोग होते हैं । ये प्रायः दलित और पिछड़़े समुदाय के होते हैं । इस तरह से वह लगभग 20-25 % का जनमत अपने साथ बनाता है । सवरगों समाज में गिनी जानेवाली अन् जातियों में लगभग 8 फीसदी
राजपूत , 4 फीसदी वै्् और 2 फीसदी कायसथ को जोड़कर ब्रामहर आधारित लगभग 33 फीसदी का जनमत सत्ता के सवरूप को अपने मन — मुताबिक निर्धारित करने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है । 1991 में भाजपा की , 2007 में बसपा की , 2012 में समाजवादी पाटटी की तथा 2017 में तीन चौथाई बहुमत वाली भाजपा की सरकारों के गठन में इसी ब्रामहर आधारित राजनीति ने बड़ी व निर्णायक भूमिका निभाई थी । लेकिन इस राजनीति में भी एक अयंतद्ांद है ।
वह यह कि ब्राह्मणों और राजपूतों में वर्चसव के लिए अयंदरूनी तौर पर अनवरत चलने वाला सयंघर्ष ।
कांग्ेस भुगत रही है ब््ह्मणों की अनदेखी का
नतीजा
कायंग्रेस में जब तक ब्राह्मणों का वर्चसव रहा और कायंग्रेस जब तक अपने ब्राह्मण-दलित- मुसलमान समीकरण के आधार पर चलती रही वह उत्तर प्रदेश में सत्ता में सथालपत रही । लेकिन जैसे ही 1980 के आसपास सयंजय गायंधी के प्रयोगों के चलते उत्तर प्रदेश में राजपूत नेतृतव का उभार शुरू हुआ । वीपी लसयंह मुख्मंत्री बने , उसी समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक साथ अरुण कुमार लसयंह मुन्ना , सयंजय लसयंह , सयंतोष लसयंह , वीर बहादुर लसयंह जैसे नेताओं का वर्चसव बढ़ा , वैसे ही ब्राह्मणों का कायंग्रेस से मोहभयंग होना शुरू हुआ । वर्ष 1989 आते-आते भाजपा का प्रभाव बढ़ने लगा । राम मयंलदर आयंदोलन के साथ ही भारतीय जनता पाटटी में ब्राह्मण नेतृतव का उभार होने लगा । सवगटी् अटल बिहारी वाजपेयी , मुरली मनोहर जोशी , माधव प्रसाद लरिपाठी , राम प्रकाश लरिपाठी , कलराज लमश् , ब्रह्मदत्त लद्वेदी जैसे दिगगज ब्राह्मण नेताओं का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में बढ़ने लगा । परिणामत : ब्राह्मण कायंग्रेस छोड़कर भाजपा में आने लगा और 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्ार लसयंह के नेतृतव में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी ।
कांग्ेस जैसी गलती का नतीजा भुगतकर संभले सभी वर्ष 1992 में बाबरी ध्वंस के बाद मुलायम
और कायंशीराम की जातिवादी राजनीति के चलते भाजपा के प्रभाव में कुछ षिरण हुआ लेकिन वह फिर भी 176 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल बना रहा । मायावती को समर्थन देकर सपा बसपा का गठबयंधन तोड़ने में सफल रही भाजपा 1996 में मायावती के ही सहयोग से छह छह महीने की अनूठी सरकार बनाने में सफल रही । लेकिन कल्ार लसयंह के मुख्मंत्री पद से हटने के बाद राजनाथ लसयंह के मुख्मंत्री बनते ही फिर ब्राह्मणों का भाजपा से मोहभयंग हुआ । वर्ष 2002 के चुनाव में भाजपा विधायकों की सयंख्ा
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 15