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घटकर आधी रह गयी । 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों के सहयोग से ही मायावती पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब रही । लेकिन 2012 के आम चुनाव में ब्राह्मणों का बसपा से फिर मोहभयंग हो गया । और अखिलेश यादव भी कमोवेश ब्राह्मणों के समर्थन के बाद ही अपनी सरकार बना पाये । लेकिन उनहोंने सत्ता में आने के बाद समावेशी की जगह सवजाति ( यादववादी ) राजनीति शुरू कर दी । परिणाम सवरूप 2017 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों ने फिर भाजपा का दामन थामा ।
सुनाई पड़ रहे हैं ब््ह्मणों के विरोधी स्वर
मुषसिम यादव और जाटव दलित के विरोध में होने के बावजूद भी भाजपा ने ब्राह्मणों को आधार बनाकर ना केवल 2014 का लोकसभा चुनाव जीता अपितु 2017 के विधानसभा चुनाव में तीन चौथाई से अधिक सीटें जीत कर रिकॉर्ड सथालपत किया । क्ोंकि भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान किसी को अपना मुख्मंत्री का चेहरा नहीं घोषित किया था लेकिन अपनी दबयंग छवि और सयंघ के भरोसे योगी आदित्नाथ मुख्मंत्री बन गए । योगी ने अपने कार्यकाल के प्रारयंभ से ही उग्र लहयंदुतव कार्ड खेलना शुरू कर दिया , जिसके कारण उनहें अपार जनसमर्थन मिला । लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को लगने लगा कि
योगी भी अपनी सवजाति ( ठाकुर ) के साथ कुछ अधिक नरमी दिखाने लगे हैं । गुयंिों , अराजक ततवों और माफियाओं के विरुद्ध अपनी घोषित `जीरो टॉलरेंसʼ वाली नीति के बावजूद भी लगता है कि कहीं `सवजातिʼ के प्रति कुछ भेद भाव है । यही कारण है कि समय-समय पर ब्राह्मणों के कुछ भाजपा विरोधी सवर सुनाई पड़ते हैं ।
ब््ह्मणों को यूं ही नहीं लुभा पा रही सपा — बसपा
अब जबकि विधानसभा चुनाव के कुछ ही महीने शेष बचे हैं , उत्तर प्रदेश में सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचने के लिए तरह-तरह के हथकंि़े अपना रहें है । समाजवादी पाटटी जहायं हर जिले में भगवान परशुराम की मूर्तियायं लगवाने की घोषणा कर रही है , वही बहुजन समाज पाटटी ने तो अयोध्ा से ही ब्राह्मण सममेिन करना शुरू कर दिया है । बसपा अपनी पूर्व घोषित नीति के विपरीत अयोध्ा में शीघ्र मयंलदर निर्माण का दावा और ब्राह्मणों को भरपूर सममान देने की बात कर रही है । ्द्लप बसपा ने वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में 80 ब्राह्मणों को टिकट दिया था जिनमें से 45 विधायक चुनकर आए थे । बसपा को सबसे बड़ा लाभ तो 93 सुरलषित सीटों पर मिला था जहायं ब्राह्मणों के सहयोग के कारण उसके 61 दलित विधायक चुने गए थे । मायावती ने अपने मंत्रिमयंिि में आधा दर्जन से अधिक ब्राह्मणों को कैबिनेट मंत्री बनाया था ।
लेकिन मुलायम लसयंह यादव द्ारा नियुकत लोकायुकत ने एक नीति के तहत मायावती के सभी ब्राह्मण मंत्रियों को दागी बना दिया था , जिससे भयभीत होकर मायावती ने ब्राह्मण मंत्रियों को बर्खासत कर दिया था । इस कारण ब्राह्मणों का बसपा से मोहभयंग हुआ और बसपा सत्ताच्ुत हो गयी । मायावती द्ारा ब्रामहर विधायकों मंत्रियों को दरी पर बैठाने की अफवाह भी बसपा से मोहभयंग का कारण बना था ।
भाजपा को भी ब््ह्मणों से बहुत उम्ीदें
विपषि की ब्राह्मणों को लुभाने वाली इनहीं नीतियों को देखते हुए सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है । कायंग्रेस से भाजपा में आए जितिन प्रसाद इसी नीति के उदाहरण है । लेकिन मुख्मंत्री की नीतियों के चलते ब्राह्मणों के मन में सयंशय बरकरार है । सयं्ोगवश उत्तर प्रदेश में योगी आदित्नाथ के काल में ही रायबरेली , हमीरपुर , कानपुर आदि जगहों में कुछ ऐसी घटनाएयं हुई जिनहें विपषि ने भाजपा की ब्राह्मण विरोधी मानसिकता के रूप में प्रचारित किया । लेकिन भाजपा के नीति निर्माताओं का मानना है कि उत्तर प्रदेश में ब्रामहर गरीब सवरगों को 10 % आरषिर , अयोध्ा में राम मयंलदर , सरकारी नौकरियों में लन्पषिता आदि को देखते हुए भाजपा का साथ नहीं छोड़़ेगा । ब्राह्मणों को साधने के लिए प्रधानमंत्री भी कार्यालय से एके शर्मा को भेजकर एमएलसी बनाया गया । ऐसा लगा कि उनहें भाजपा नेतृतव उत्तर प्रदेश मंत्रिमयंिि में शामिल कर यह महतवपूर्ण परिवर्तन करना चाहता था । लेकिन 7 महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका । मजबूरन उनहें सयंगठन में प्रदेश उपाध्षि बनाना पड़ा है ।
बहरहाल , ऐसे में अभी यह कहना बहुत कठिन है कि ब्राह्मण किस पाटटी को समर्थन देगा ? फिर भी इतना तो निश्चत है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण जिस दल को गले लगाएगा उसका सत्ता के शिखर पर पहुयंचने का सपना साकार होने की राह काफी आसान हो सकती है । �
16 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021