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जातीय राजनीति में ब्ाह्मणों की भूमिका नकारना मुश्किल समावेशी ब्ाह्मणों से बंधी हैं सभी दलों कती उम्ीदें
रमाकांत पांडेय
श के लिए राजनीतिक दृष्टकोण ns
से सबसे अधिक महतवपूर्ण माने
जाने वाले तथा जनसयंख्ा में सबसे बड़़े राज् उत्तर प्रदेश में लगभग 8 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं । 403 विधानसभा और 80 लोकसभा वाले इसी राज् से होकर केंद्र के लिए भी सरकार बनाने का रासता गुजरता है । इस राज् में जो भी राजनीतिक दल ज्ादा सीटें जीता है लगभग वही केंद्र में भी अपनी सरकार बनाता है । एक — आध बार को छोड़कर प्रायः यही षसथलत हर चुनाव में बनती रही है ।
हार जीत का आधार जातीय समीकरण
फिलहाल अभी विधानसभा चुनाव को ध्ान में रखते हुए भलव्् की सयंभावित षसथलत का आकलन करते हैं । वैसे सैद्धायंलतक तौर पर कोई कुछ भी कहे लेकिन व्ावहासिक तौर पर वासतलवक हकीकत यही है कि अब लोकतंत्र में चुनावी हार जीत का आधार जातीय समीकरण ही हो गया है । वर्तमान में पिछड़ों और दलितों
की राजनीति के महतवपूर्ण हो जाने के बावजूद चुनावी गणित में ब्राह्मण मतों को नजरअयंदाज कर पाना किसी के लिए भी सयंभव नहीं है । वैसे भी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं की षसथलत बहुत महतवपूर्ण मानी जाती है । उत्तर प्रदेश में सत्ता के निर्धारण में आजादी के बाद से ही
ब्राह्मण समाज बड़ी भूमिका निभाता आ रहा है । साठ के दशक में उत्तर प्रदेश में राम मनोहर लोहिया के अगड़़े पिछड़ों का नारा देने के पूर्व में तो प्रायः ब्रामहर नेतृतव ही सत्ता सयंभालता रहा था । लेकिन लोहिया के समाजवादी आयंदोलन ( पिछड़ावादी ) के उभार के बाद प्रदेश में
14 दलित आं दोलन पत्रिका flracj 2021