eMag_Sept2021_DA | Page 13

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महतवपूर्ण लगने लगीं । पिछले एक-ि़ेढ़ दशक में यह प्रवृत्ति बढ़ी है और आज दलित समाज अषसमता से ऊब चुका है । उसे अब अपनी आकांक्षाएयं पूरी करनी हैं ।
दलित समाज और राजनीति में कशमकश
इससे भारतीय राजनीति में नई सयंभावनाएयं बनी हैं । दलित समाज ने अतीत में जैसे कायंग्रेस को छोड़ा , उसी की पुनरावृत्ति वह आज दलित पार्टियों के साथ कर रहा है । कायंग्रेस में दलितों की न कोई पहचान थी , न सत्ता में भागीदारी , न ही नेतृतव में कोई प्रतिनिधितव । दलित पार्टियों में उनहें पहचान तो मिली , पर ये पार्टियायं सत्ता से कोसों दूर हैं । यानी वे दलित आकांक्षाओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं । इसी कारण दलित समाज और राजनीति में कशमकश है जिससे आज का दलित सत्ता की कुंजी रखने वाले दल भाजपा की ओर आकृ्ट हो रहा है । देश में एक ‘ भाजपा सिसटम ’ उभर रहा है जो सत्ता पर वैसा ही एकाधिकार चाहता है जैसा कभी कायंग्रेस का था ।
हिलोड़ें मार रहीं दलितों की आकांक्षाएं
अभी तक दलों की सोच थी कि दलितों का सामाजिक सशकतीकरण होगा तो उनका राजनीतिक सशकतीकरण सवत : हो जाएगा । भाजपा ने इस सोच को उलट दिया है । वह दलितों के राजनीतिक सशकतीकरण से ही उनका सामाजिक सशकतीकरण करना चाहती है । इससे न केवल उनका राजनीतिक सामाजिक सशकतीकरण होगा , वरन भाजपा मजबूत होगी और लहयंदू समाज के विभाजन की प्रवृत्ति भी घट़ेगी । इस प्रयोग से आज उप्र के लगभग सभी दलित विधायक और दलित सायंसद भाजपा के हैं , जो प्रमाणित करता है कि दलित राजनीति करवट ले चुकी है और अषसमता की दीवार तोड़ दलित आकांक्षाएयं हिलोरें मार रही हैं ।
( साभार )

बदलते समय के साथ बदल रहा

दलित समाज

कर्म के आधार पर जाति का निर्धारण होने के कारण जाति के साथ काम — काज और उनकी आर्थिक षसथलत को लेकर भी समाज में एक पूर्वाग्रहपूर्ण सोच हावी है । उदाहरण के तौर पर अगर किसी भी जाति का नाम हम अपने दिमाग में सोचें तो उसके काम — काज और उसकी आर्थिक षसथलत की ऐसी तसवीर उभरती है जो परयंपरागत है । लेकिन जमीनी हकीकतों की बात करें तो जाति का अब काम — काज और आर्थिक षसथलत से बहुत अधिक लेना — देना नहीं रह गया है । जो काम किसी जाति विशेष के लिए आरलषित माना जाता था उसमें अन् जातियायं भी भागीदारी कर रही हैं और सवजातीय परयंपरागत पेशे से तकरीबन सभी जातियों का काफी तेजी से मोहभयंग हुआ है ।
परयंपरागत सोच और पूर्वाग्रह को अलग
करके जमीनी हालातों को देखें तो आज दलितों की कहानी बेहद आकर्षक है । अब ऐसे दलित युवाओं की कहीं कोई कमी नहीं हैं और उद्मी हैं , जो मर्सिडीज कार में घूमते हैं और जिनका रहन — सहन और जीवन सतर किसी भी मायने में किसी से भी कमतर नहीं है । उत्तर प्रदेश में ऐसे दलित उद्मी हैं , जो ट्रांसफर्मर बनाते हैं और टोयोटा फ्ंलट्र में घूमते हैं । हजारों दलित प्रदेश में होटल मालिक हैं । करीब सैकड़ों दलित उत्तर प्रदेश में असपतालों के मालिक हैं । दिलिी में कई दलित सैकड़ों लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं । राजसथान में दलित व्वसायी सौर सयं्यंरि बना रहे हैं जिससे बिजली पैदा होती है । दिलिी , हरियाणा , पयंजाब , उत्तराखयंि में दर्जनों ऐसे दलित व्वसायी हैं , जो सालाना दस करोड़ से ज्ादा कर चुकाते हैं ।
flracj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 13