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जाति व्यवस्ा को महर्षि मनु की देन नहीं माना डा . अंबेडकर ने
एस . एन . सिंह
महर्षि मनु के बारे में डा . अंबेडकर ने कहा कि अगर कभी मनु रहे भी होंगे तो बहुत ही हिममिी रहे होंगे । उनका कहना है कि ऐसा कभी नहीं होता कि जाति जैसा शिकंजा कोई एक वयसकि बना दे और बाकी ्पदूरा समाज उसको सवीकार कर ले । उनके अनुसार इस बात की कल्पना करना भी बेमतलब है कि कोई एक आदमी कानदून बना देगा और ्पीतढ़याँ- दर-्पीतढ़याँ उसको मानती रहेंगी ।
डा . अंबेडकर की सोच और दर्शन के सबसे अहम ्पहलदू ्पर ग़ौर करने ्पर ्पिा चलता है कि उनके दर्शन ने 20वीं सदी के भारत के राजनीतिक आचरण को बहुत ज़या्ा प्रभावित किया । उनके दर्शन की सबसे ख़ास बात ्पर जानकारी की भारी कमी है । यह बात कई बार कही जा चुकी है कि उनके नाम ्पर राजनीति करने वालों को इतना तो मालदूम है कि बाबासाहब जाति वयवसरा के तख़लाि थे , लेकिन बाकी चीजों ्पर ज़या्ातर लोग अनिकार में हैं । डा . अंबेडकर को इतिहास एक ऐसे राजनीतिक चिनिक के रू्प में याद रखेगा , जिनहोंने जाति के विनाश को सामाजिक , आर्थिक और राजनीतिक ्परिवर्तन की बुनियाद माना था । यह बात किसी से छु्पी नहीं है कि उनकी राजनीतिक विरासत का सबसे ज़या्ा िायदा उठाने वाली ्पाटटी की नेता , आज जाति की संसरा को संभाल कर रखना चाहती हैं , उसके विनाश में उनकी कोई रुचि नहीं है । वोट बैंक राजनीति के चककर में पड़ गई । अंबेडकरवादी ्पार्टियों को अब वासिव में इस बात की चिंता सताने लगी है कि अगर जाति का विनाश हो जाएगा तो उनकी वोट बैंक की राजनीति का कया होगा ।
डा . अंबेडकर की राजनीतिक सोच को लेकर कुछ और भ्रांतियाँ भी हैं । कांशीराम और मायावती ने इस क्र प्रचार कर रखा है कि जाति की ्पदूरी वयवसरा का ज़हर मनु ने ही फैलाया था , वही इसके संस्थापक थे और मनु की सोच को ख़तम कर देने मात् से सब ठीक हो जाएगा । लेकिन बाबासाहब ऐसा नहीं मानते थे । उनके एक बहुचर्चित और अकादमिक भाषण के हवाले
से कहा जा सकता है कि जाति वयवसरा की सारी बुराइयों को लिए मनु को ही तज़ममे्ार नहीं ठहराया जा सकता ।
डॉ . अमबेिकर का यह भाषण वासिव में कोलंबिया विशवतवद्ालय में उनके अधययन के बाद ्पीएचडी की डिग्ी के लिए दातख़ल की गई उनकी थीसिस , कासटस इन इंडिया : देयर मैकेनिजम , जेनेसिस एंड डेवल्पमेंट का सारांश
42 flracj & vDVwcj 2023