? यह जानने और समझने लिए हमें भारतीय सनातन संस्कृति और समाज को जानना जरुरी है ।
भारत में हिन्दू समाज
प्राचीन भारत में हिन्दू धर्म , संस्कृति एवं जीवन-्पद्धति का चिंतन सामाजिक समरसता ्पर आधारित था । हिन्दू धर्म के जिन ततवों का उललेख वैदिक वाङ्मय में हुआ है उनसे यह स्पषट होता है कि भौतिक एवं आधयासतमक जगत् की समसषट को इस सनातन धर्म ने आतमसात् कर रखा है । हिन्दू धर्म के जिन दस लक्षणों या ततवों के बारे में जानना आवशयक है , वह इस प्रकार है-धृति ( धैर्य ), क्षमा , दम ( साधना ,
ि्पसया एवं योग ), असिेय ( चोरी न करना ), शौच ( सवचछिा एवं पवित्रता ), इसनद्रय-तनग्ह , धी ( आधयासतमक ज्ान ), विद्ा ( भौतिक ज्ान ), सतय तथा अरिोि ( अहिंसा ) I इन ततवों के अनुकरूलन में सामाजिक समरसता के व्यापक प्रभाव का अनुमान एवं अवलोकन करने के बाद ही वाह्य शसकियों ने भारत ्पर आरिमण कर इन ्पर प्रतयक्ष रू्प से प्रहार किया और भारत की स्थापित एवं स्वपोषित समरसता को समापि करने में सफल रहे ।
हिन्दू संस्कृति का आधार भारतीय जीवन- ्पद्धति है , जो प्रककृति प्र्त् है । यह प्रककृतिधर्मा इसलिए कहलाती है कयोंकि हिन्दू धर्म का दस लक्षण या ततव प्राककृतिक मानकों ्पर आधारित
सामाजिक वयवसराओं का सिद्धानि है । हिन्दू धर्म के उसके समसि उ्पांग या लक्षण प्राककृतिक नियमों का अनु्पालन करते हैं और सनातन मानवीय आधयासतमक ऊर्जा को बचाए रखते हैं । हिन्दू संस्कृति के उतरान के संघर्ष एवं प्रयास को आज देश में चाहे जिस दृसषट से देखा जाए , किनिु हिन्ुओं के इस प्रयास के ्पीछे भी विशव कलयाण का ही भाव निहित है । इस संस्कृति में सहिषणुिा के सवाभाविक एवं प्राककृतिक भाव हैं । इसमें मानव के आ्पसी संगठन के भी प्राककृतिक भाव और सामाजिक समरसता के गुण प्रापि होते हैं । लेकिन प्राचीन भारत में जिस तरह से अरब के विदेशी आरिांिाओं ने हमले किए , उन हमलों ने भारत की प्राचीन संस्कृति को नषट करके रख दिया । मुससलम और अंग्ेजी शासकों ने अ्पने सवार्थ , लिपसा और लालच के लिए भारत और भारत की संस्कृति को चोट ्पहुंचाई और हिन्ुओं को बांट दिया ।
भारत की दलित जातियां
दलित श्् का शाब््क अर्थ है- दलन किया हुआ । इसके तहत वह हर वह वयसकि आ जाता है जिसका शोषण-उत्पीडन हुआ है । यह श्् हिं्दू सामाजिक वयवसरा में सबसे निचले ्पायदान ्पर ससरि सैकड़ों वरषों से अस्पृशय समझी जाने वाली जातियों के लिए सामदूतहक रू्प से प्रयोग होता है । भारतीय संविधान में इन जातियों को अनुसदूतचि जाति नाम से जाना जाता है । वैदिक काल के साहितय या धर्म ग्ंरों में कहीं भी दलित श्् नहीं ्पाया जाता है । देश के प्राचीन इतिहास ्पर विहंगम दृसषट डाली जाए तो वर्तमान हिन्दू जीवन ्पद्धति का सवतण्तम युग वैदिक काल था । तथाकथित कई लेखकों का विचार है कि जातिवाद का मदूल कारण वेद और मनु समृति है , ्परनिु वैदिक काल और प्राचीन भारत में जातिवाद या छुआछटूि के अससितव से तो विदेशी लेखक भी स्पषट रू्प से इंकार करते है । प्राचीनकाल मंल वर्ण होते थे लेकिन वर्ण वर्तमान में जाति या वर्ग का रू्प धारण कर लिया । वैदिक काल में वर्ण वयवसरा प्रधान थी जिसके अनुसार जैसा जिसका गुण वैसे उसके
flracj & vDVwcj 2023 31