eMag_Sept-Oct 2023_DA | Page 32

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कर्म , जैसे जिसके कर्म वैसा उसका वर्ण निर्धारण का सिद्धांत था । यहां ्पर सवाभाविक प्रश्न उठता है कि जाति और वर्ण में कया अंतर है ? तो जाति का तात्पर्य है उद्भव के आधार ्पर किया गया वगटीकरण है । वैदिक काल में ब्ाह्मण , क्षतत्य , वैशय और शदूद्र के लिए " वर्ण " श्् का प्रयोग किया गया । वर्ण का मतलब है वर्ण को चुनने का आधार गुण , कर्म और सवभाव होता है ।
वर्ण चिंतन ्पदूण्त रू्प से वैदिक चिंतन है एवं इसका मुखय प्रयोजन समाज में मनुषय को ्परस्पर सहयोगी बनाकर भिन्न-भिन्न कामों को ्परस्पर बांटना , किसी भी कार्य को उसके अनुरू्प दक्ष वयसकि से करवाना , सभी मनुषयों को उनकी योगयिा अनुरू्प काम ्पर लगाना एवं उनकी आजीविका का प्रबंध करना है । सवामी दयानंद ने वेदों का अनुशीलन करते हुए ्पाया कि वेद सभी मनुषयों और सभी वणषों के लोगों के लिए सवयं वेद ्पढ़ने के अधिकार का समर्थन करते है । हिन्दू समाज में समय ्परिवर्तन के साथ आयी जटिलताओं और फिर विदेशी मुससलम आरिांिाओं और अंग्ेजों ने अ्पने हितों के लिए भारत की विशाल हिन्दू जनसंखया को अ्पने ढंग से प्रयोग हेतु उच् जाति एवं निम्न जाति बोध के साथ जातिवाद की नींव डाली । हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अ्पने-अ्पने ढंग से दलित समाज की वयाखया की और उनकी तुलना शदूद्रों से करके हिन्दू समाज का अहित करने का काम किया ।
अनुसदूचित जाति की उत्पचत्
भारत में अस्पृशयिा का उदय विदेशी मुससलम आरिांिाओं के शासनकाल में हुआI इसका एकमात् कारण था हिन्ुओं का सब कुछ लदूटकर , उन ्पर भारी अतयाचार , वयतभचार के उ्परांत उनको मृतयु्ंड से डराकर , इसलाम सवीकार कराना था । हिन्दू धर्म ग्ंरों में प्रक्षिपििा एवं हिन्दू समाज के प्रति भयानक दुर्भावना के सन्भ्त में तथयातमक अधययन के लिए इतिहास के उन ्पृषठों को ्पलटा जाए जो यह प्रमाणित करते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब देश के पश्चिमी तट ्पर एक शरणारटी के रू्प में रोजी-रोटी प्रापि
करने के लिए अरब देशों की मुससलम जनसंखया हिन्ुसरान के सनमुख नतमसिक थी । उनके चरणबद्ध आरिमणों का प्रहार झेलते हुए हिन्ुसरान ने कड़ा प्रतिउत्र दिया , लेकिन विदेशी मुससलम आरिांिाओं के द्ारा प्रारूत्पि आंतरिक कलह एवं वैमनसयिा के कारण हिन्दू समाज की कमजोर ्पड़ गयी दीवार अभेद् नहीं रही ।
विदेशी मुससलम आरिांिा आरिमणकारियों का सवातभमानी , धर्माभिमानी एवं राषट्रातभमानी हिन्दू धर्म रक्षकों से लगातार हुए संघर्ष के बाद मुससलम शासकों ने यह रणनीति बनाई कि हिन्ुओं को गुलाम एवं हिन्ुसरान ्पर अगर शासन करना है तो हिन्दू धर्म एवं संस्कृति रक्षक ब्ाह्मणों एवं भौगोलिक सीमा के रक्षक क्षतत्यों के साथ हिन्दू धर्म को नषट करना ही होगाI
इसके बाद हिन्ुसरान ्पर मुससलम शासकों का जो अतयाचार शुरू हुआ , उसके तहत मंदिर और देवालयों के साथ ही हिन्दू धर्म ग्ंरों को खोज- खोज कर नषट किया गया । हिन्दू समाज को तहस-नहस करने वाले विदेशी मुससलम आरिांिाओं ने हिन्ुओं को इसलाम में ्परिवर्तित करने के लिए सवातभमानी एवं धर्म रक्षक , देश रक्षक योद्धा प्रजाति के युद्धबंदी क्षतत्यों और ब्ाह्मणों को अ्पमानित और अससितवतवहीन करने के लिए असवचछ कायषों में बल्पदूव्तक लगाया , उनको अ्पमानजनक समबोिनों तथा जातिसदूचक नामों से बहिष्कृत बनाया । मधयकाल के दौरान विदेशी इसलातमक आरिांिाओं के उत्पीड़न के ्परिणामसवरू्प गौरवशाली , सवातभमानी हिन्ुओं के समदूह को कई जातिवगषों में बल्पदूव्तक ्परिवर्तित कराया गया । जिनहोंने
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