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करते हुए दलित समाज को जोड़ने का अभियान तेज करने का आह्ान किया ।
त्पछले दो चुनावों में मिली हार से समाजवादी ्पाटटी लगभग किंकत््तवयतवमूढ़ता की ससरति में है । इस दरमियान येन केन प्रकारेण सत्ा ्पर काबिज होने के लिए तरह-तरह के सुलह समझौते भी करती रही है । जिस कांग्ेस का विरोध कर सवगटीय मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी ्पाटटी को खड़ा किया था , उनके रहते ही गद्ी ्पाने की लालसा में अखिलेश यादव ने उसी कांग्ेस के साथ गलबहियां कर ्पाटटी की मिट्टी ्पलीत कर दी । हालांकि इस गठजोड़ का लाभ उठाते हुए कांग्ेस ्पाटटी ने उत्र प्रदेश में अ्पनी सीटों का आंकड़ा कुछ बढ़ा लिया था , लेकिन स्पा के हाथ निराशा ही आई थी । इसी तरह ्पाटटी के वरिषठ नेताओं
के विरोध के बावजदू् अखिलेश यादव ने बस्पा के साथ भी चुनावी गठबंधन किया था ।
चुनाव में मशहदूर " बुआ-बबुआ " की जोड़ी का भी कमोवेश वही हश् हुआ , जैसा स्पा- कांग्ेस का त्पछले चुनाव में हुआ था । बरसों बाद दलित वोटो की संजीवनी से समाजवादी ्पाटटी को घोसी उ्पचुनाव में बड़े अंतर से जीत मिली है । बस्पा सुप्रीमो मायावती ने दलित मतदाताओं से वोट न करने अथवा नोटा का बटन दबाने की अ्पील की थी , लेकिन उनके आदेश को अनसुना कर दलितों ने मतदान में बढ़-चढ़कर हिससा लिया तथा समाजवादी ्पाटटी या भाज्पा के उममी्वारों के ्पक्ष में अ्पना मत वयकि किया । ्पाटटी के ्पक्ष में ्परिणाम आने के बाद से ही स्पा प्रमुख ्पाटटी की अंबेडकर वाहिनी
को सतरिय करने में जुट गए । " मिले मुलायम काशीराम " फामदू्तले को नए सिरे से ्परिभाषित करते हुए दलित मतदाताओं को अ्पने ्पक्ष में करने की रणनीति ्पर काम शुरू कर दिया ।
असल में दलित समाज के प्रतिनिधितव करने का दावा करने वाली बस्पा त्पछले एक दशक से लगातार कमजोर हो रही है । प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में आज उसके ्पास केवल एक सीट है , जिसके कारण बहुजन आंदोलन भी कमजोर होता जा रहा है । प्रदेश के करीब 22 प्रतिशत दलित वोटो ्पर बीएस्पी का क्जा था । लेकिन अब माना जाता है कि बीएस्पी सुप्रीमो मायावती की जमीनी राजनीति से सतरियता खतम होने के कारण दलित वोटो में भी बिखराव हो रहा है । वर्ष 2017 के विधानसभा
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