eMag_Sept-Oct 2023_DA | Page 22

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में ्पारित किया गया ।
डा . अंबेडकर ने 7 सितंबर , 1937 को बंबई विधानमंडल में ‘ खोटी प्रथा ’ के उन्मूलन के लिए विधेयक प्रसिुि किया । इस विधेयक के ज़रिए वे बटाईदारों को ज़मीन का मालिकाना हक दिलवाना चाहते थे और खोटी प्रथा के सरान ्पर रैयतवारी प्रथा लागदू करना चाहते थे । डॉ . आंबेडकर भारत के ऐसे ्पहले विधायक थे , जिनहोंने खेतिहर बटाईदारों को गुलामी से मुकि करने के लिए विधेयक प्रसिुि किया । डा . अंबेडकर के अनुसार हर तरह के श्तमकों-चाहे वे औद्ोतगक हों या खेतिहर-को एक-सी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए , जिनमें प्रोविडेंड फंड , नियोजक का दायितव , मुआवज़ा , सवासथय बीमा और ्पेंशन शामिल हैं ।
डा . अंबेडकर के अनुसार जाति का एक आर्थिक ्पक्ष भी है और जातिप्रथा के उन्मूलन के लिए , भारतीय गांवों की आर्थिक संरचना का ्पुनर्गठन आवशयक है । भारत की आबादी का लगभग 70 प्रतिशत ककृतर ्पर निर्भर है और गांवों में रहता है , जहां जातिवाद और सांप्रदायिकता का बोलबाला है । इसलिए उनहोंने संविधान सभा को संबोधित करते हुए कहा , मेरा मानना है कि ग्ामीण गणतंत् भारत का विनाश कर देंगे । गांव , सरानीयता की नाली और अज्ानता , संकीर्ण सोच और सांप्रदायिकता के अड्ों के अलावा कया हैं ? मुझे प्रसन्नता है कि संविधान के मसविदे में गांव की जगह वयसकि को इकाई बनाया गया है । उनकी यह मानयिा थी कि अगर गांवों को उनकी बुराईयों से मुकि किया जाना है तो ककृतर क्षेत् में आधुनिक ्परिवर्तन लाने होंगे । उनका कहना था कि गांव की वर्तमान वयवसरा न केवल जातिप्रथा की ्पोषक है वरन ककृतर के विकास में भी बाधक है । इसलिए ककृतर भदूतम का राषट्रीयकरण , जातिप्रथा की रीढ़ तोड़ देगा और ककृतर उत्पादन को बढ़ावा देगा , जिससे उद्ोगों के लिए ‘ तव्पणन योगय अतिशेष ’ उ्पल्ि हो सकेगा । इसके साथ ही डा . अंबेडकर का मानना था कि बौद्धिक और सांस्कृतिक जीवन को बढ़ावा देने के लिए तेज़ी से औद्ोगीकरण आवशयक है ।
भारत में ‘ दमित वगषों ’ को आर्थिक सविंत्िा उ्पल्ि नहीं थी । उनके ्पास न तो जमीन थी , न सामाजिक हैसियत , न व्यापार- वयवसाय में हिससे्ारी और ना ही सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधितव । इसलिए डा . अंबेडकर ने उद्ोग के क्षेत् में ‘ राजय समाजवाद ’ की वकालत की और ककृतर भदूतम ्पर राजय के मालिकाना हक और सामदूतहक खेती ्पर ज़ोर दिया । उनका यह दृढ़ मत था कि भदूतमहीन श्तमकों की समसया का निदान चकबंदी या बटाईदारों को भदूतम ्पर मालिकाना हक देने मात् से नहीं होगा । केवल खेतों ्पर सामदूतहक सवातमतव से यह समसया हल हो सकती हैI सामदूतहक खेती का वित्तपोषण राजय द्ारा किया जाना चाहिए । राजय द्ारा खेती के लिए ्पानी , भारवाही ्पशु , उ्पकरण , खाद , बीज इतयात् उ्पल्ि कराए जाने चाहिए । राजय को खेती करने वालो से उ्पयुकि शुलक वसदूलने का अधिकार होना चाहिए । मदूलभदूि और महतव्पदूण्त उद्ोगों ्पर राजय का मालिकाना हक होना चाहिए और उनहें राजय द्ारा संचालित किया
जाना चाहिए । राजय को यह तय करने का अधिकार होना चाहिए कि ऋणपत्रधारी को कब और कैसे मुआवज़े के नगद भुगतान का दावा करने का अधिकार होगा ।
डा . अंबेडकर श्मजीवी वर्ग के हितरक्षण के प्रति ्पदूण्ति : प्रतिबद्ध थे और उनहें सामाजिक सुरक्षा उ्पल्ि करवाना चाहते थे । वह दो वायसरायों , लार्ड वेविल और लार्ड लिनलिथगो , की कार्यकारी ्परिषद के सदसय थे । वायसराय की कार्यकारी ्परिषद में 2 सितंबर , 1945 को उनके द्ारा प्रसिुि श्तमक घोषणापत्र आगे चलकर श्तमक कलयाण योजना का आधार बना । उनके कार्यकाल के दौरान ही फैकट्री एकट में संशोधन कर काम के घंटों में कमी और श्तमकों के लिए सवैतनिक अवकाश की वयवसरा की गई । भारतीय खान अधिनियम और खान मातृतव लाभ अधिनियम में संशोधन कर , श्तमकों के लिए बेहतर सुविधाएं और लाभ उ्पल्ि करवाए गए । एक अनय महतव्पदूण्त विधेयक भी ्पारित किया गया जो नियोजन की
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