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भारत में वयापि आर्थिक और सामाजिक शोषण , उनकी गंभीर चिंता का विषय था और उनकी यह मानयिा थी कि समाज और अर्थवयवसरा में संसरागत ्परिवर्तनों के बगैर भारत , शांति , प्रसन्नता और समृद्धि का देश नहीं बन सकता । अलग-अलग अवसर ्पर उनहोंने भदूतमहीन श्तमकों , छोटी जोतों , ‘ खोटी वयवसरा ’, ‘ महार वतन ’, सामदूतहक खेती , भदू-राजसव , मौद्रिक वयवसरा और ज़मींदारी उन्मूलन जैसे मुद्ों ्पर विचार किया । उनहोंने कराधान से जुड़े मसलों की भी गहन विवेचना की । सामाजिक समानता लाने के लिए वे उद्ोगों और खेती के राषट्रीयकरण
को अ्परिहार्य मानते थे ।
डा . अंबेडकर एक महान शिक्षाविद् और अर्थशासत्ी भी थे । वह अ्पने समय के एक मात् सांसद थे , जो भारतीय अर्थवयवसरा और बैंकिंग से संबंधित आधिकारिक आंकड़े और उनकी सुस्पषट वयाया प्रसिुि करने में सक्षम थेI डा . अंबेडकर लगातार यह कहते रहे कि चरणबद्ध और योजनाबद्ध आर्थिक विकास , जो कि प्रजातांतत्क मानकों ्पर आधारित हो , से ही सामाजिक नयाय की स्थापना हो सकती है । डा . अंबेडकर के प्रयासों से ही संविधान में ऐसे प्रावधान किए गए , जिनका लक्य सभी के लिए
राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक नयाय ्पर आधारित सामाजिक वयवसरा स्थापित करना था । संविधान की उद्ेसशयका , जिसके डा . अंबेडकर रचियता थे , इन सभी सविंत्िाओं को समाहित करने वाला एक अति महतव्पदूण्त दसिावेज है । डा . अंबेडकर को अर्थशासत् के सिद्धांतों की गहरी समझ थी । वह देश के तेज़ी से औद्ोगीकरण के हामी और ग्ामोद्ोग व खादी आंदोलन जैसी गांधीवादी ्परिकल्पनाओं के कठोर आलोचक थे । औद्ोगीकरण ्पर ज़ोर देने के साथ-साथ उनका यह भी कहना था कि ककृतर को नजऱअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कयोंकि ककृतर से ही देश की बढ़िी आबादी को भोजन और उद्ोगों के लिए आवशयक कच्े माल की उ्पल्ििा सुतनसशचि हो सकेगी । जब देश का तेज़ी से औद्ोगीकरण होगा , तब ककृतर ही वह नींव होगी , जिस ्पर आधुनिक भारत की इमारत खड़ी की जाएगी । इस लक्य की प्रासपि के लिए उनहोंने ककृतर क्षेत् के ्पुनर्गठन के लिए रिांतिकारी कदम उठाए जाने की वकालत की । वे ककृतर योगय भदूतम के राषट्रीयकरण के ्पक्ष में थे । यहां यह महतव्पदूण्त है कि वह किसानों की ज़मीन की ज्िी की बात नहीं कर रहे थे । उनका कहना था कि ककृतर भदूतम का राषट्रीयकरण किया जाए और ज़मीन के मालिकों को उनकी ज़मीन के एवज़ में आनु्पातिक मदूलय के ऋणपत्र जारी किए जाएं ।
डा . अंबेडकर के अनुसार , भारत में छोटी जोतें इसलिए समसया नहीं हैं कयोंकि वे छोटी हैं , बसलक वह इसलिए समसया हैं कयोंकि वह सामाजिक अर्थवयवसरा की आवशयकताओं से मेल नहीं खाती । जोतों के खंडित होते जाने और छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटने की समसया का एक ही इलाज है कि जमीनों की चकबंदी की जाए । 15 मार्च , 1928 को डॉ . आंबेडकर ने बंबई विधान मंडल में ‘ वतन ’ विधेयक प्रसिुि किया । विरासत में प्रापि छोटी-छोटी ‘ इनाम भदूतमयों ’ के कारण वतनदार महारों की आर्थिक ससरति दयनीय हो गई थी । इस विधेयक को कई सालों तक लंबित रखा गया और अंतत : उसे बॉमबे इंफीरियर विलेज सववेन्टस एकट 1939 के रू्प
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