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आधुनिक भारत के लिए समृद्ध विरासत छोड़ गए डा . अंबेडकर

14 समर्थकों के साथ हिं्दू धर्म को

अक्टूबर 1956 को डा . अंबेडकर ने अ्पने 3.65 लाख
छोड़कर बौद्ध धर्म अ्पना लिया था । नाग्पुर में हुई इस घटना को इतिहास में धर्म ्परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर ्पर याद किया जाता है । डा . अंबेडकर ने यह कदम ततकालीन समाज में फैली भेदभाव की वयवसरा के विरोध में उठाया था । डा . अंबेडकर का कहना था कि उनहें वह धर्म ्पसंद है जो सविंत्िा , समानता और बंधुतव सिखाता है । धर्म मनुषय के लिए है
न कि मनुषय धर्म के लिए "। डा . अंबेडकर जाति वयवसरा के विरुद्ध थे । डा . अंबेडकर ने हिं्दू धर्म में वयापि जाति वयवसरा को समापि करने के लिए कानदून का भी सहारा लिया , लेकिन अंत में उनहें लगने लगा था कि जो बदलाव वो चाहते हैं , वे शायद कभी नहीं हो सकेंगे । आखिर में उनहोंने बौद्ध धर्म को अ्पनाने का फैसला लिया ।
डा . अंबेडकर सविंत् भारत के निर्माण के साथ ही अनुसदूतचि जातियों के कलयाण के लिए सतरिय रहे । अगर हम अनुसदूतचि जाति के योगदान ्पर निगाह डाले तो आधुनिक भारत के
निर्माण में 90 प्रतिशत योगदान अगर किसी का है तो वह रहे बाबा साहब डा . अंबेडकर का । डा . अंबेडकर ही वह ्पहले दलित नेता थे , जिनहोंने आधुनिक भारत के निर्माण में महतव्पदूण्त भदूतमका निभाई । उनके योगदान ्पर अगर निगाह डाली जाए वर्तमान भारत के लिए कानदून बनाते समय डा . अंबेडकर की प्राथमिकता भदूतमहीन और श्मजीवी वर्ग थे । डा . अंबेडकर उन चंद भारतीयों में से थे , जिनहोंने सामाजिक व आर्थिक प्रजातंत् का आगाज़ कर , भारत के इतिहास की धारा को बदलने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी ।
20 flracj & vDVwcj 2023