eMag_Sept-Oct 2023_DA | Page 15

यही है । जब किसी जाति , समुदाय या समदूह को लेकर कोई आंकड़ा आता है , तो नए सिरे से उसे राजनीतिक ताकत और आरक्षण आदि देने की मांग शुरू हो जाती है । इसलिए इसमें कोई दो-राय नहीं कि बिहार के जातीय आंकड़े सामने आने के बाद ऐसी मांग शुरू होगी । जैसे अब तक माना जाता था कि कोइरी और कुशवाहा
जाति के लोगों की संखया कुमटी समाज की तुलना में कम है । लेकिन नए आंकड़े बताते हैं कि बिहार के अनय त्पछड़ा वर्ग की जातियों में सबसे जया्ा यानी 14.2 प्रतिशत वाले यादव समुदाय के बाद कुशवाहा जाति ही है । जिसकी संखया करीब 4.21 प्रतिशत है । इसी तरह दुसाध या ्पासवान की संखया 5.3 प्रतिशत है । इसके बाद नंबर है रविदास या चमार कही जाने वाली जाति का , जो करीब 5.2 प्रतिशत है । अति त्पछड़ा समुदाय के जातियों वाले लोगों की संखया कुल जनसंखया का 36 प्रतिशत से जया्ा है । प्रचलित राजनीतिक मानकों ्पर भी इन जातियों के संदर्भ में राजनीतिक नेतृतव को देखिए । कांशीराम ने एक नारा दिया था , जिसकी जितनी संखया भारी , उसकी उतनी हिससे्ारी । यह नारा बेशक दलितवादी राजनीति ने दिया , लेकिन इसे धीरे- धीरे त्पछड़ावाद की राजनीति करने वाले समाजवादी खेमे ने असखियार कर लिया ।
अब तो वह कांग्ेस भी यह नारा लगा रही है , जिसने 1984 में नारा दिया था , जात ्पर न ्पांत ्पर , इंदिरा जी की बात ्पर , मुहर लगेगी हाथ ्पर । अगर इस लिहाज से देखें तो बिहार को अगर त्पछड़ावादी होना होगा या हिससे्ारी देनी होगी तो रविदास समुदाय के नेतृतव को ताकत देना होगा । इसी तरह यह भी ्पदूछा जा सकता है कि
सामाजिक नयाय की राजनीति के दौर में आखिर कयों ्पदूरी ताकत यादव जाति के ्पास ही रही । अगर वह छिटकी भी तो कुमटी समुदाय के नीतीश के ्पास ्पहुंच गई । आखिर यह ताकत किसी कुशवाहा या कोइरी समुदाय के नेता के ्पास कयों नहीं गई ? जाति जनगणना के आंकड़ों के बाद जब हिससे्ारी का विशलेरण होगा तो ये सारे सवाल उठेंगे । राजनीतिक हिससे्ारी को लेकर जब बात होगी तो नयायमदूति्त रोहिणी आयोग की रर्पोर्ट का भी तजरि जरूरी होगा ।
रोहिणी आयोग का नतीजा है कि त्पछड़ावाद के आरक्षण में सिर्फ चार ताकतवर जातियों को ही फायदा हुआ है । देर-सेवर रोहिणी आयोग की रर्पोर्ट जारी करने का केंद्र सरकार ्पर दबाव बढ़ेगा । हो सकता है कि राजनीति के तहत वह इसे जारी भी कर दे । इससे साबित होगा कि रोहिणी आयोग ने त्पछड़े समुदाय की जिन दबंग जातियों ्पर आरक्षण का फायदा उठाने की बात कही है ,
कुछ वैसी ही ससरति राजनीति की भी है । इससे आज के त्पछड़ावादी राजनीतिक नेतृतव ्पर सवाल उठेंगे । तब ्दूसरी जातियों की ओर से दबाव बढ़ेंगे । ऐसे में सवाल यह है कि कया महज दो फीसद से कुछ जया्ा की संखया वाले समुदाय के नेता नीतीश तयाग कर ्पाएंगे या फिर त्पछड़ा समुदाय की दबंग जाति यादव के नेता तेजसवी यादव तयाग करके नेतृतव अति त्पछड़ा वर्ग की जातियों के नेताओं के लिए छोड़ेंगे ? इन सवालों का जवाब ना में है । जाहिर है कि यह जवाब ही नए राजनीतिक टकराव की वजह बनेगा । अब तक होता यह था कि त्पछड़ावादी राजनीति सवर्ण राजनीति ्पर हमलावर थी । लेकिन अब ऐसा नहीं होगा । सवर्णवादी राजनीति तो अल्पसंखयक हो गई है । आंकड़ों ने इसे स्थापित कर दिया है । इसका असर यह होगा कि देर-सवेर वह खुद को अल्पसंखयक घोषित करने की मांग करेगा । अब अगली लड़ाई त्पछड़ावादी और अति त्पछड़ावादी राजनीति में होना है । इस सियासी संघर्ष में समाजवादी ्पृषठभदूतम वाली राजनीति का आगे आ ्पाना मुसशकल होगा , कयोंकि त्पछड़ावादी राजनीति से सिर्फ कुछ दबंग जातियों के ही नेता उभरे हैं । जबकि त्पछले कुछ वरषों में अति त्पछड़ों के बीच भारतीय जनता ्पाटटी ने खदूब काम किया है ।
नीतीश और तेजसवी ने जाति जनगणना तो एक तरह से बीजे्पी ्पर हमले के लिए कराई , लेकिन उसके नतीजे अगर उनके लिए ही भसमासुर बनते नजर आने लगें तो हैरत नहीं होनी चाहिए । वैसे आदर्श ससरति यह होनी चाहिए कि राजनीति इतनी ्परर्पकव हो कि महज कुछ लाख की जनसंखया वाली नाई जाति का कोई क्पदू्तरी ठाकुर राजय का नेता बनकर उभर सके । जिसकी योगयिा उसकी जाति नहीं , उसकी निषठा और सर्वसवीकार्यता हो । जाति जनगणनाएं सर्व सवीकार्यता की राजनीति का आधार नहीं हो सकती । वह अ्पनी-अ्पनी जातियों को ताकतवर बनाने और ्दूसरी को कमतर दिखाने और इस ्पदूरी प्रतरिया में सियासी संघर्ष ्पैदा करने का जरिया ही बन सकती है । दुर्भागयवश इस तथय को समझने की कोई कोशिश नहीं कर रहा ।
( साभार )
flracj & vDVwcj 2023 15