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जाति जनगणना का क्ा होगा राजनीतिक परिणाम ?

उमेश चतुर्वेदी

के हर कदम के ्पीछे सोची- समझी रणनीति ही नहीं , सुचिंतित राजनीति

कारण भी होते हैं । यह अकारण नहीं है कि गांधी जयंती के दिन बिहार की नीतीश- तेजसवी सरकार ने राजय की जाति जनगणना को जारी किया । गांधीजी जाति की आधुनिक वयवसरा को खतम होते देखना चाहते तो थे , लेकिन जातियों के बीच आ्पसी खींचतान और सिर-फुटौववल की कीमत ्पर नहीं । लेकिन कया बिहार की जाति गणना के आधुनिक आंकड़ों को इस नजरिए से देखा और ्परखा जा सकता है ? जाति जनगणना के आंकड़ों के जाहिर होने के बाद राजय और देश की राजनीति ्पर कया असर पड़ेगा ? इस ्पर चर्चा के ्पहले जाति ्पर गांधी के विचारों को जान लेते हैं । गांधी ने एक जगह लिखा है , " भारत में जाति वयवसरा ने कुछ भारतीयों को आधयासतमक रू्प से अंधा कर दिया है । इसका मतलब यह नहीं है कि प्रतयेक भारतीय , या अधिकांश भारतीय , जाति वयवसरा , या संदिगि प्रामाणिकता और मदूलय के प्राचीन भारतीय ग्ंरों की हर चीज का आंख मदूंदकर ्पालन करते हैं । किसी भी अनय समाज की तरह भारत का मदूलयांकन उसके सबसे खराब नमदूनों के वयंगयतचत् से नहीं किया जा सकता ।" राजनीति की ओर से जब भी भारत की जाति ्पर बात की जाती है , तब कया गांधी की इन बातों का धयान रखा जाता है ? इस सवाल का जवाब बिलकुल ना में है । गांधी की कौन कहे , सवािीनता आंदोलन के साथ ही भारतीय संविधान सभा और संविधान के मदूलयों का भी धयान नहीं रखा जाता है ।
संविधान के अनुचछे् ्पंद्रह और सोलह में
जो वयवसरा की गई है , जातिवाद की राजनीति लगातार इसका उललंघन करती रही है । संविधान के अनुचछे् 15 का ्पहला भाग कहता है कि राजय किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म , मदूल वंश , जाति , लिंग , जनम-सरान अथवा इनमें से किसी के आधार ्पर कोई विभेद नहीं करेगा । इसके साथ ही अनुचछे् 16 के ्पहले भाग ्पर धयान दिया जाना चाहिए । इसमें संविधान कहता है कि राजयािीन नौकरियां या ्प्ों ्पर नियुसकि के संबंध में सब नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी ।
चदूंकि सवािीनता संग्ाम और संविधान सभा की चर्चाओं के दौरान सवीकार्य धारणा रही कि भारत की कुछ जातीय समदूह और समुदाय सामाजिक विकास की दौड़ में त्पछड़े रह गए हैं । लिहाजा उनहें आरक्षण दिया जाए । यह वयवसरा ्पंद्रह साल के लिए की गई । ऐसा समझा गया कि इतने दिनों में सवािीन भारत की वयवसरा
विकास दौड़ में ्पीछे रह गए लोग मुखयिारा में आ जाएंगे । शायद संविधान निर्माताओं ने नहीं सोचा था कि आरक्षण की यह वयवसरा आने वाले दिनों में अ्पनी-अ्पनी जातियों के लिए ऐसा निजी दायरा साबित होगी , जिसे ताकतवर होने के बाद वह जाति बढ़ाने की कोशिश करेगी और इस बहाने में ्दूसरे जातीय समदूहों ्पर अ्पना वर्चसव बनाने में जुट जाएगी । जाति की राजनीति आज यही कर रही है । अब जातियों का अ्पना- अ्पना दायरा बन गया है और उस दायरे को उस समुदाय के लोग बढ़ाने की कोशिश में हैं और इस बहाने राजनीतिक ताकत हासिल करने की कोशिश में है । चदूंकि आज राजनीतिक ताकत आर्थिक हैसियत बनाने का भी जरिया हो गई है । इसलिए सारी जातियों की कोशिश इसी ्पर है । इन प्रयासों को धार और नेतृतव जातियों के अ्पने-अ्पने नेता कर रहे हैं ।
बिहार की जाति जनगणना का असल मकसद
14 flracj & vDVwcj 2023