हवा देकर हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए एकजुट हो रहे हैं और इनकी चालों से हिन्दू समाज को सावधान रहना ही होगा ।
वर्तमान भारत में जाति की गणित
21वीं सदी में ्पहुंच चुके भारत में जाति की अ्पनी ही गणित है । जाति की इस गणित ने लगभग चार सौ वरषों से भारत के हिन्दू समाज
्पर अ्पना नकारातमक प्रभाव डाला है , जिससे हिन्दू समाज में विखंडन की प्रतरिया को बल मिला । वर्तमान समय में देश में लगभग 6500 जातियां हैं । यह सिर्फ यही तक सीमित नहीं है कयोंकि इन जातियों में लगभग ्पचास हजार उ्पजातियां भी हैं । 1935 में तचसनहि 429 अनुसदूतचि जातियों का 21वीं सदी में 6500 तक ्पहुंच जाना , यह दर्शाता है कि हिन्दू समाज में विघटन की यह प्रतरिया , उन राजनीतिक दलों
के नेताओं की देन कही जा सकती है , जो जाति-वर्ग और धर्म के आधार ्पर सत्ा हासिल करके अ्पने सवतहिों के लिए वरषों से राजनीति करते आ रहे हैं ।
जानकारी के अनुसार देश में केवल एक ब्ाह्मण जाति में लगभग 1008 उ्पजातियाँ , केवल एक क्षतत्य जाति में लगभग 1265 उ्पजातियाँ , एक वैशय जाति में लगभग 2000 उ्पजातियाँ यदि दलित समाज में देखा जाय तो केवल एक खटिक जाति में लगभग 1871 उ्पजातियाँ , केवल एक चर्मकार वर्ग में 410 उ्पजाति , इसी प्रकार केवल एक वालमीतक में 623 उ्पजातियों का विवरण प्रापि है । यही ससरति प्रतयेक जातियों की हैं । हर जाति की अ्पनी अनेकानेक उ्पजातियाँ हैं । आरक्षण देने के लिए कया तव्पक्षी दल देश में लगभग साढ़े छह हजार जातियोंहेतु अथवा लगभग 50 हजार उ्प जातियों हेतु लोकसभा सीट तनसशचि करेंगे ? नौकरी और राजनीति में सभी जातियों को आरक्षण कैसे और किस आधार ्पर मिलेगा ? कया देश के हर क्षेत् में जाति आधारित आरक्षण दिया जा सकेगा ? आरक्षण का लाभ किस जाति और उ्पजाति को मिलेगा और किसे नहीं मिलेगा ? इसका निर्धारण कौन और कैसे करेगा ? अगर जाति और उ्पजाति के आधार ्पर सभी को आरक्षण मिलेगा तो सामानय वर्ग कया करेगा ? कया जातियों एवं उ्पजातियों की भारी संखया देखते हुए किसी भी क्षेत् में जाति आधारित आरक्षण देना संभव है ? ऐसे कई गंभीर प्रश्नों के उत्र जाति गणना का समर्थन कर रहे राजनीतिक दलों के नेताओं के ्पास नहीं हैं । इन नेताओं के ्पास इस प्रश्न का उत्र भी नहीं है कि बिहार की जाति गणना के आंकड़ों की देश में तेज गति से हो रहे विकास में कया भदूतमका होगी ? कया जाति गणना करके देश को विकसित राषट्र बनाया जा सकता है ? ऐसे कई प्रश्नों से बच रहे तव्पक्षी दलों की जाति गणना की मांग केवल हिन्दू समाज को तोड़ने के हथियार के रू्प में देखा जा सकता है और यह कहना गलत नहीं लगता है कि जाति गणना की मांग करने वाले राजनीतिक दल देश के हितैषी नहीं , बसलक सबसे बड़े दुशमन हैं । �
flracj & vDVwcj 2023 13