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विदेशी शवतियों के राडार पर है बिहार
वर्तमान समय से नहीं , बसलक तब्तटश काल के ्पहले से ही बिहार विदेशी शसकियों के राडार ्पर है । विशेषकर इसलातमक शसकियां भारत में सर्वाधिक कट्टरता के साथ बिहार में ही स्थापित हुई । ्पाकिसिान की कुखयाि ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई से लेकर आतंकी संगठन आईएसआईएस के स्लीपिंग सेल राजय में ही सतरिय हैं । धार्मिक कट्टरता के नाम ्पर देश में तबाही की संस्कृति एवं बौद्धिक सम्पदा का सर्वाधिक नुकसान बिहार में ही हुआ । तुकटी के शासक बसखियार खिलजी ने नालंदा विशवतवद्ालय में आग लगवा दी । तीन माह तक जलते रहे नालंदा विशवतवद्ालय के साथ ही लगभग एक लाख ब्ाह्मणों अर्थात शिक्षकों की हतया ' सर तन से जुदा ' करके की गई थी ।
भगवान ककृषण के काल में मगध , चद्रगुपि काल का मगध-्पाटतल्पुत् , तब्तटश काल का बिहार-यह सभी सरान हिन्दू संस्कृति एवं वांगमय को नषट करके के लिए विदेशी शसकियों के राडार ्पर सैकड़ों वरषों से रहे हैं । ऐसा बताया जाता है कि बिहार श्् बौद्ध विहार से आया है । लेकिन वासितवकता में ऐसा नहीं है । बौद्ध काल में बिहार नाम का कोई राजय नहीं था । बौद्ध काल में वैशाली का लिचछवी गणराजय एवं ्पाटतल्पुत् शसकिशाली राजय थे । मुगलों ने हिन्ुओं की बौद्धिक सम्पदा नषट करके अल-बिहार का नाम दिया था । तुगलक काल में बिहार की राजधानी बिहार शरीफ थी । सामानय सवाभाविक भ्रमवश बौद्ध विहार से जोड़कर बिहार का नाम भी इसी काल में पड़ा ।
बिहार इसलातमक केंद्र था । ्पटना मदरसा ( तब्तटश काल ) में कोलकाता से आकर राजा राममोहन राय को आकर ्पढ़ना ्पड़ा था । सिर्फ इतना ही नहीं , चीन के मानव तसकर बिहार में आकर हजारों लोगों को बंदी बनाकर चीन ले जाते थे । वहां बंदी बनाए गए लोगों से धान की खेती कराई जाती थी । उनहें खाने के लिए सिर्फ चावल और नमक दिया जाता था । ऐसे में बंदी बनाए गए लोगों ने चदूहों को खाना प्रारमभ कर दिया । तब्तटश काल में एक तब्तटश अधिकारी ने मानव तसकरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करते हुए 22 हजार से अधिक लोगों को चीन से मुकि कराया था । मुकि कराए गए लोगों की आदतें एवं वयवहार चीन में रहते हुए बदल चुकी थीं । वा्पस आने के बाद वह अ्पनी भदूतम में सवयं को समायोजित नहीं कर ्पाए और न ही उनके समाज ने उनहें सवीकार किया । इन ्परिससरतियों के कारण तब्तटश अधिकारी ने चीन में बंदी बिहार के लोगों को मुकि कराने के अभियान को रोक दिया । चीन से जो लोग वा्पस आए थे , वह भी बिहार से लेकर ने्पाल के विभिन्न हिससों में बस गए , जिनहें वर्तमान में मुसहर जाति के नाम से जाना जाता है । जाति के नाम फिर एक बड़ी भदूल करने वाला बिहार कट्टर इसलातमक शसकियों के चंगुल में फंसा हुआ है । राजय के कई जिलों से लेकर ने्पाल सीमा ्पर मससज् और मदरसों की लगातार बढ़ती संखया एवं इनके माधयम से हिन्दू एवं भारत विरोधी ताकतें लगातार अ्पनी गतिविधियों को ्पदूरे देश में अंजाम दे रही हैंI सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई में रोजाना आतंकी ततवों की गिरफ़िारी बिहार में हो रही है । ऐसे में जाति जनगणना बिहार में कोई नया गुल खिलाएगी , इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए I
दलितों की सभी समसयाओं का समाधान करने का दावा किया और उनका उ्पयोग वोट लेने के लिए करते रहे । कांग्ेस , वाम्पंथियों और मुससलमों की चुनावी और सत्ा समबनिी रणनीति ्पर अगर धयान दिया जाए तो कहना अनुचित नहीं होगा कि वरषों से एक षड्ंत् के तहत देश की हिन्दू जनता को बांटा गया और उसका उ्पयोग सत्ा हथियाने के लिए किया जाता रहा । कांग्ेस की हिन्दू विरोधी रणनीति में भारतीय संस्कृति के सु्परिचित एवं कट्टर विरोधी वामदलों ने अ्पना भर्पदूर साथ दिया । ्परिणामसवरु्प देश के हर राजय में यानी उत्र से दक्षिण तक और ्पदूरब से पश्चिम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले अयोगय राजनेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने देश और जनता का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी । कांग्ेस जब सत्ा में नहीं रही , उस दौरान भी-वह चाहे 1977 से 1980 का कालखंड रहा हो या फिर 1989 से 1999 का
10 flracj & vDVwcj 2023