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डॉ आं बेडकर और दलित विषयक साहित्य
आशीष कुमार ‘ दीपांकर
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माज परिवर्तनशीलि है तो समाज की मानयराएूँ भी परिवर्तनशीलि होनी चाहिए और परिवर्तनशीलि समाज का साहितय भी परिवर्तशीलि होना चाहिए , कयोंकि साहितय को समाज का दर्पण कहा जाता है और दर्पण में वही दिखना चाहिए जो सामने है । कया भारतीय साहितय में या हिनदी साहितय में दचलिर समाज का वा्रचवक रूप दिखलिाया गया है ? मेरे विचार से यदि ऐसा हुआ तो आज दचलिर साहितय की आवाज नहीं उठती । दचलिर चवर्यक साहितय , लिेखन की बात करना यह साबित करता है कि साहितय में समाज के प्रमुख अंग को उपेक्षित किया गया है ।
इककीसवी सदी में दचलिर समाज को लिेकर मन में कई तरह के प्रश्न आते हैं-कया भारत की जाति वयवस्था कभी समा्र हो पायेगी ? कया इस वयवस्था से पीड़ित और अपमानित लिोगों को कभी मुसकर चरलि पायेगी ? आज भी भारतीय समाज वयवस्था में सदियों से विशिषट वर्ण-वयवस्था और जाति-प्रथिा का प्रबलि वच्म्व रहा है । जाति-प्रथिा की घृणित सामाजिक सच्चाई के कारण ही अनेक भारतीयों को सामाजिक नयाय और समरान से वंचित होना पड़ा रथिा वयसकर जनर एवं कर्म से ही गुलिाम हो गया । भारतीय समाज की इस रूढ़िवादी वर्ण-वयवस्था के कारण ही दचलिर असमरान का पात्र बना रहा , चाहे वह सर्वगुण समपन्न हो , कार्य कुशलि हो , अपनी मेहनत से ऊंचे पद पर कयों न हो पर जाति भेद के कारण दचलिरों को सामाजिक , मानसिक प्रताड़ना और अतयाचारों से जूझना पड़ता है । जातिवाद के कारण ही बुद्ध , सावित्री बाई फुलिे , जयाचरबा फुलिे और बाबा साहब
आंबेडकर की देशभसकर पर उंगलिी उठाई गई ।
युग के बदलिरे परिवेश के साथि-साथि अमानवीय विकृत वर्ण-वयवस्था , धर्म-वयवस्था , जाति भेद रथिा सामंती मानसिकता की सोच के विरुद्ध विद्रोह करने में भारत रत्न बाबा साहब डॉ . भीमराव आंबेडकर ने कड़ा संघर््म किया है । उनिोंने दचलिरों को नारा दिया-शिक्षित बनो , संगठित हो और संघर््म करो । वह चाहते थिे कि दचलिर वर्ग शिक्षित होकर अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हो कयोंकि आज भी भारतीय समाज जिनिें अ्पृशय या अछिूत कहता है । उनका घर आज भी गांव के बाहर दक्षिण दिशा में चरलिरा
है । आज भी बहुत कम वेतन में चैबीस घंटडे श्र करने वालिे रथिा गंदे काम करने के चलिए मजबूर हैं । आज भी दुर्गम पहाड़ों , वनों रथिा जंगलिों में जीने के चलिए मजबूर हैं । वर्तमान में पूंजीवादी वयवस्था के कारण आचथि्मक दृसषट से आज भी दुब्मलि है कयों , वह इसचलिए कि आज भी अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और गरीब होता जा रहा है ।
आज हम जब प्राचीन इतिहास और साहितय को उठा कर देखते है तो दचलिरों को चलिए दास , द्यु , शूद्र , चंडालि , अतयनज , अ्पृशय , अछिूत जैसे शबदों का प्रयोग चरलिरा थिा । ऐसे शबदों के
48 vDVwcj & uoacj 2022