eMag_Oct-Nov 2022_DA | Page 47

कबजा किए रहे और दिल्ली समेत पड़ोस के शहरों के लिाखों लिोगों की आवाजाही को बाधित किए रहे , वे डरे हुए थिे ? कया जो नेता , बुद्धिजीवी वगैरह धरना दे रहे इन लिोगों का सरथि्मन करने शाहीन बाग पहुंच रहे थिे , वे उनका डर कम करने में लिगे हुए थिे ? धयान रहे कि शाहीन बाग में धरना दे रहे लिोग तब भी नहीं डिगे , जब
अलपसंखयकों और विशेर् रूप से हिंदुओं , सिखों और ईसाइयों की बदतर हालिर से लिगाया जा सकता है । इस डर की चरम सीमा तब देखने को चरलिी थिी , जब 2020 में पाचक्रान के करक चजलिे में सदियों पुराने एक मंदिर को आग के हवालिे करने वालिे मजहबी कट्टरपंचथियों पर वहां की एक अदालिर ने जुर्माना लिगाया । कुछि
कर रहा है , वैसे ही इस बात का भी कोई विशेर् मूलय-महतव नहीं कि सबका डीएनए एक है । विभिन्न समुदायों के लिोगों का डीएनए एक होना उनके बीच शांति-सद्ाव की गारंटी नहीं हो सकता । यदि ऐसा होता तो पाचक्रानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी के लिोग आज भारत के सच्चे हितैर्ी होते , कयोंकि उनका भी डीएनए
अमेरिकी राषट्पति डोनालि ट्ंप की दिल्ली यात्रा के समय भीर्ण दंगे भड़क उठडे थिे । इस दंगे में एक पुचलिस करमी और खुफिया बयूिो के एक कर्मचारी समेत 50 से अधिक लिोग मारे गए , लिेकिन कचथिर तौर पर डरे हुए लिोग शाहीन बाग में डटडे ही रहे ।
देश की सबसे बड़ी अलपसंखयक आबादी डरी हुई है , यह एक नितांत आधारहीन और मिथया धारणा है । वा्रव में यह एक चक्र का छिलिावा है , कयोंकि किसी देश में कोई अलपसंखयक समूह किस तरह सचमुच डर के साये में जी रहा होता है , इसे पाचक्रान के
समय बाद यह खबर आई कि हिंदुओं ने ‘ सद्ावना ’ बनाए रखने के चलिए दंगाइयों पर लिगाया गया जुर्माना ‘ माफ ’ कर दिया है और इसी के साथि सरकार ने दोचर्यों पर चलिाया जा रहा मुकदमा वापस लिेने का फैसलिा किया है । कोई भी समझ सकता है कि हिंदुओं को डराकर इसके चलिए राजी किया गया होगा कि वे अपनी खैर चाहते हैं तो मंदिर खाक करने वालिों को माफ कर दें ।
जैसे इस झूठी धारणा से लिैस लिोगों से बातचीत साथि्मक नतीजे नहीं दे सकती कि भारत का मुस्लिम समाज खुद को असुरक्षित महसूस
वही है , जो भारत के लिोगों का है ।
संवाद की महत्ता तभी है , जब वह मिथया धारणाओं से मुकर होकर किया जाए या फिर उसका लिक्य ऐसी धारणाओं और साथि ही हर तरह के पूवा्मग्ि-दुराग्ि का निवारण करना हो । संवाद के माधयर से सतय का साक्षातकाि किया जाना चाहिए । यदि उद्ेशय यही है तो फिर संवाद का चसलिचसलिा न केवलि कायम रहना चाहिए , बसलक उसमें सभी को अपना योगदान भी देना चाहिए ।
( लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं / साभार )
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