समाज द्ारा चोर डाकदू कहा गया है ?
उत्तर - रिचर््म वालरीचक ने वालरीकीय रामायण में अपने कुलि का परिचय दिया है । आशचय्म है कि उनके अनुयायी होते हुये भी आपने रामायण के उस विशेर् ्थिलि का अधययन नहीं किया । उनका कुलि और उनके कुलि से शिक्षा प्रा्र विद्ान मनीर्ी वंदनीय हैं । वालरीचक मुनि को भ्रवश चोर-डाकरू कहा जाता है ।
प्श्न 13- मितषणि वाल्ीहक जी ने श्ीराम के पुत्रथों को शिक्षा दी । क्ा एक भी अछूत ि शिक्षा के काबिल नहीं था ?
उत्तर : निवेदन है कि रिचर््म वालरीचक त्रेता युग में हुये थिे । उस प्राचीन कालि में अछिूतपन
की कलपना भी नहीं थिी । छिूआछिूत संबंधी कलपना मुस्लिम-अंग्ेजी गुलिामी कालि की देन है । अत : इस निराधार कलपना को त्रेता युग में देखना अदापि उचित नहीं है । विशेर्कर अंग्ेजों और उनके मानसपुत्रों ने अछिूत प्रसंग को अतिरंजित रूप से उभारा थिा । इन मानसपुत्रों ने इसे सांप्रदायिक वैमन्य की राषट्घाती सीमा तक उभार दिया । वामपंथिी लिेखक भी दशकों से इस घातक प्रसंग को उछिालिे जा रहे हैं ।
प्श्न 14- मितषणि जी जब इतने अज्ञानी थे कि जब उन्ें राम- राम के दो शब्द भी याद नहीं रहे और वह मरा-मरा रटने लगे तो इतनी बड़ी रामायण उन्होंने कै से
लिख दी ? उत्तर - रिचर््म वालरीचक अज्ानी नहीं
थिे । अज्ानी वयसकर किसी साधारण से कावय की भी रचना नहीं कर सकता , रामायण जैसी अति श्ेषठ कृति की रचना करना तो बहुत दूर है । रामायण कावय मात्र नहीं अपितु यह एक कावयातरक ऐतिहासिक ग्रंथ है जो अधर्म और अनयाय पर धर्म और नयाय की महतवपूर्ण विजय का प्रतीक है । भारतवर््म के प्राचीन मनीचर्यों के मत में किसी पूर्वघटित घटना विशेर् को लिेखनीबद्ध कर देना मात्र इतिहास नहीं है । किसी लिेखनीबद्ध घटना में जबतक पुरुर्ाथि्म चातुषटय संबंधी दिशा चनददेश न हो तबतक वह इतिहास नहीं किलिा सकती । अत : इतिहास की एक विशिषट परिभार्ा है । इतिहास पूर्ववरमी सतय घटनाओं की ्रृचर पर आधारित होता है । दीर्घदशमी वालरीचक की ्रृचर जनर-जनरांरि तक का ज्ान रखती थिी । राम-राम के स्थान पर मरा-मरा रूप उल्टे मंत्र को जपना किसी अज्ानी का नहीं अपितु महाज्ानी का काम है । वालरीकीय रामायण का प्रारंमभ ही तप और ्वाधयाय ( कर्म और विद्ा ) से होता है ऐसे में उसके रचयिता कदापि अज्ानी नहीं हो सकता ।
अपने सभी प्रश्नों के उत्तर पाने के पशचात् फरीदाबाद का प्रबुधद वालरीचक समाज संतुषट और प्रसन्न हो गया । उनके सर्र भ्र दूर हो गये । तुरंत ही समाचार पत्र के 26 जुलिाई 1989 के अंक में नीलिर-बाटा मार्ग पर स्थित डॉ आंबेडकर नगर के वालरीचक मंदिर में रिचर््म की प्रतिमा स्थापित होने का समाचार वालरीचक समुदाय के नाम से प्रकाशित हुआ । इस समारोह में वालरीचक समुदाय के प्रतिनिधि रमेश पािछिा ने धनयवाद देते हुये कहा कि पत्र में प्रकाशित उत्तर से हमें पता चलिा कि हम अछिूत नहीं बसलक हिंदू समाज के अभिन्न अंग हैं । और इस प्रकार हिंदुओं को विभाजित करने वालिों को मुंह की खानी पड़ी । विदेशी ताकतों के हाथि की कठपुरलिी बने अमबेिकरवादी , लिगातार राषट्वादी और हिंदुतववादी वालरीचकयों को भ्चरर करने का प्रयास कर रहे है । इस लिेख को पढ़कर कोई भी छिदम अमबेिकरवादियों के मुंह बंद कर सकता है । �
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