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8 अधयाय , 100 अधिकरण और 500 सूत्रों में रचा गया है । इस समय यह ग्रंथ बृहद् विमानशा्त्र के नाम से अधूरा उपलिबर होता है । विमान निर्माण कलिा संबंधी इस वैज्ाचनक तकनीकि ग्रंथ पर यति बोधानंद ने वृत्ति टीका चलिखी है । वृत्तिकार बोधानंद ने अपनी इस महतवपूर्ण टीका में वालरीचक द्ािा रचित वालरीकीय गणितम् नामक ग्रंथ के अनेक अंशों को कई ्थिलिों पर उद्धृत किया है । वालरीकीय गणितम् से ज्ार होता है कि वालरीचक मुनि को आकाश परिमंिलि के रेखामार्ग , मंिलि , कक्य , शसकरपथि और केंद्रमंिलि आदि की चनसशचर संखया का ज्ान थिा जिनका उनिोंने इस गणितशा्त्र में सचव्राि उल्लेख किया है ( बृहद् विमानशा्त्र , सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा , नई दिल्ली , माघ 2015 चवक्री , पृषठ 19-20 )। व्रुर : रिचर््म वलरीचक 32 विद्ाओं और विविध कलिाओं के असाधारण ज्ारा थिे । जो वयसकर अपने गुण कर्म के अनुरूप शा्त्र में वर्णित रिाह्कर्म , क्षत्रिय कर्म अथिवा वैशय कर्म को कुशलिरा पूर्वक धारण करने में सरथि्म नहीं , उसकी जीविका का निर्वहन कैसे हो ? इस प्रश्न के उत्तर में शा्त्र का कथिन है कि ऐसा वयसकर यदि किसी के अधीन रहना नहीं चाहता तो वह अपने जीवन यापन के चलिये कलिा पक्ष का विकास करे । इस प्रकार वह आतरचनभ्मि हो सकता है ।
रिचर््म के गुरुकुलि में जो विद्ाथिमी विद्ा और इससे जुड़डे सूक्र चवर्यों ठीक से समझने की योगयरा नहीं रखते थिे उनको ऐसी कलिाओं में प्रवीण बनाया जाता थिा । एक अनपढ़ अथिा्मर शूद्र भी राषट्ीय कार्य में समान रूप से सहायक हो इसचलिए उसे इन कलिाओं में पारंगत बनाया जाता थिा । यह इसचलिए भी आवशयक थिा कयोंकि विद्ाचविीन ्वयं को हीन भावना से ग्चसर कर जुआ , रद्पान और चोरी जैसे दुषकर्म से बचा रहे । ऐसा नहीं कि कोई जनर से शुद्र अथिा्मर अनपढ़ होकर विद्ा योगय नहीं थिा । जो योगयरा रखते थिे वो शा्त्रों के ज्ारा होकर गुण कर्म से रिाह्ण हो जाते थिे । ऐसे लिोगों के प्रेरणा के ्त्रोर होने के कारण रिचर््म वालरीचक शूद्रों के
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गुरु किलिाये । इसचलिये वालरीचक समाज का रिचर््म वालरीचक से वही संबंध है , जो एक प्रज्ावान सुयोगय गुरु और एक श्द्धावान् शिषय में होता है ।
प्श्न 10- अके ले मितषणि वाल्ीहक जी के नाम पर एक वर्ग का नाम
वाल्ीहक क्यों पड़ा ? उत्तर - वालरीचक नाम किसी वर्ग का नाम
नहीं है । वालरीचक समाज ने रिचर््म वालरीचक के नाम से ' वालरीचक वर्ग ' की कलपना कर ्वयं को संदेहा्पद बना दिया है । वालरीचक वर्ग की कलपना का अभिप्राय तो यह हुआ कि जो अशा्त्रीय वर्णवयवस्था मात्र जनर पर आधारित मानने की महती भूलि से भारत के चतुर्दिक् पतन का कारण बनी , उसी जनर पर आधारित कचथिर वर्णवयवस्था को प्रकारांतर से ्वीकार कर लिेना । शा्त्र के अनुसार वर्ण गुणकर्म के आधार पर माना गया है । वर्ग की कलपना जनररात्र पर आधारित होती है । जब आप ्वयं ही वर्ग शबद का प्रयोग करके अपने आप को जनर पर आधारित करने लिगे हैं तब आप सामाजिक , धार्मिक , आचथि्मक और राजनैतिक समानता कैसे प्रा्र करेंगे ? फिर तो वही बात हो गई कि किसी वेदों के विद्ान रिाह्ण के घर में जनर लिेने मात्र से उनके अनपढ़ बेटडे को केवलि इसचलिये वेदों का विद्ान मान चलिया जाये कयोंकि उसके पिता वैदिक विद्ान हैं । वर्ग शबद में निहित संकीर्णता को रिचर््म वालरीचक के उदार विचारों के समतुलय बैठाना उचित नहीं है । इस शबद में निहित आसुरी विचार रिचर््म के धर्मसमरर शा्त्रीय विचारों से मेलि नहीं खाते । इसचलिये यदि वालरीचक समाज ्वयं को रिचर््म का सच्चा और श्द्धावान अनुयायी मानता है तो उसे अपने आप को वर्ग मान लिेने का राषट्घाती विचार तयागना होगा । वैदिक वर्णवयवस्था के अनुसार उसे ज्ान द्ािा रिाह्ण बनने का पूरा अधिकार है । यही रिचर््म का उपदेश है ।
प्श्न 11- मितषणि जी ने शिक्षा कहां प्ाप्त की जबकि हरिजिथों के लिये
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स्कू ल के दरवाजे चार हजार साल बंद रहे ?
उत्तर - आपका प्रश्न भ्ांचरकारक है । इसमें सबसे बड़ी भ्ांचर है रिचर््म वालरीचक को हरिजन समझ लिेना और वह भी चार हजार वर््म पूर्व का । प्राचीन भारत में शिक्षा गुरुकुलिों में दी जाती थिी । उस समय हरिजन शबद का प्रयोग कहीं नहीं होता थिा । इस शबद का प्रयोग गांधी ने किया । प्राचीन कालि की गुरुकुलि शिक्षा वयवस्था के अनुसार प्रतयेक भारतीय के चलिये पढ़ना अनिवार्य थिा । यदि पाठशालिाओं में जाकर कोई सीख न सके , वह दूसरी बात थिी । व्रुर : किसी के चलिये भी पाठशालिा के द्ाि बंद नहीं थिे ।
प्श्न 12- मितषणि वाल्ीहक जी ने रामायण में अपने लिये दो शब्द क्यों नहीं लिखे , जबकि उन्ें