प्श्न 5- हम कहां के रहने वाले हैं और हमारी जायदाद कहां है ?
उत्तर - वालरीचक समाज भारत का ही वासी है और पूरा भारत उसका अपना है । यह उसका और हम सबका बड़ा सौभागय है कि हम सबको इस श्ेषठ कर्मभूमि भारतवर््म में जनर प्रा्र हुआ है । अत : वालरीचक समाज भी अपने आपको बड़ा सौभागयशालिी समझे कि सारा भारत उसका अपना है रथिा उसे इसको अपना समझकर ही
श्ेषठ कर्मभूमि से लिाभासनवर होना चाहिये । इसके चलिये बड़डे विवेक की आवशयकता है ।
प्श्न 6- हमारी संस्कृ ति क्ा है ?
उत्तर - अपनी ज्ानेंद्रियों के माधयर से मनुषय जो अनुभव प्रा्र करता है उस अनुभव से बने सं्कािों से जो उसका ्वभाव परिपक़व होता है , उसे सं्कृचर कहते हैं । ये सं्काि धर्म के अनुकरूलि भी हो सकते हैं और प्रतिकरूलि भी । यह सं्कृचर मानव की वयसकरगत पूंजी अथिा्मर संपदा होती है । धर्म के अनुकरूलि सं्कृचर दैवी संपदा और अधर्म के अनुकरूलि सं्कृचर आसुरी संपदा किलिाती है । वालरीचक समाज चूंकि धर्म की शा्त्रसमरर परिभार्ा से सहमत है , इसचलिये मानसिक रूप से वो हिंदू सं्कृचर का पक्षधर है । हिंदू सं्कृचर दैवी संपदा की सरथि्मक है । वालरीचक समाज ्वयं दैवी संपदा के कितना अनुकरूलि है , यह वह ्वयं आतरचवशलिेर्ण कर जान सकता है ।
प्श्न 7- हमें ही भदूि पदूजा क्यों करनी पड़ी ?
उत्तर - भूत-पूजा शबद दो अर्थों में आता है । एक है पंचमहाभूतों से बने भौतिक जगत की पूजा । दूसरा अथि्म है भूत-प्रेतों की पूजा । आपका प्रश्न किस अथि्म में है , ्पषट करना चाहिये थिा । यहां दोनों ही अथि्म के अनुसार उत्तर दिये जाते हैं । भौतिक जगत मोक्ष प्राप्र का एक साधन मात्र है साधय नहीं । जब मनुषय इसे साधय समझ लिेता है तो वह अज्ानमय ्वप्नलिोक में विचरने लिगता है । आकाश में किनिीं ्वग्म-नर्क इतयाचद लिोकों के होने की मिथया कलपना करके भूत-प्रेतों और भटकती आतराओं के अशा्त्रीय और कलपनापूर्ण कुविचारों से भयभीत होकर यह जनर और अगलिा जनर दोनों बिगाड़ लिेता है । पृथवी पर उतपन्न होने वालिे सभी पदाथि्म पंचमहाभूतों के संयोग से बने हैं । सुयोगय गुरु के मार्गदर्शन में इन पदार्थों का समुचित मात्रा में निषकार भाव से प्रयोग मानव को मोक्ष चदलिाने में सहायक सिधद होता है । विद्ा और कलिाओं के ज्ारा होने के कारण रिचर््म वालरीचक सुयोगय
गुरू थिे । जो गुण कर्म से शुद्र अथिा्मर अनपढ़ थिे , उनिें रिचर््म ने विभिन्न कलिाओं जैसे शिलपकर्म में पारंगत होने की शिक्षा दी , ि्रकौशलि से मानव के कलयाण के चलिये जीवनोपयोगी व्रुओं को बनाना सिखाया । ऐसा करने के कारण वह पंचमहाभूतों का उचित दिशा में सदुपयोग करने के कारण भूतपूजक माना जाता है । इस दृसषट से वालरीचक समाज विद्ा में पारंगत अथिवा प्रशिक्षित न होने पर भी अपने ि्रकौशलि द्ािा भौतिक व्रुओं का सुयोगय निर्माता होने से सही अर्थों में भूतपूजक थिा । इसी कारण उसे शा्त्र समरर भूत पूजा करनी पड़ी । कोई भी वालरीचक गुण कर्म से विद्ा पूजन भी कर दूसरे वर्ण में प्रवेश कर सकता है । यही शा्त्रों का कथिन है । प्श्न 8- अब हम सामाजिक , आजथणिक व राजनीतिक समानता
किस तरह हाक्सल कर सकते हैं ?
उत्तर - धर्म के सत्वगुणी मार्ग पर चलिरे
हुये विद्ा ग्िण कर समानता प्रा्र हो सकती है । इसके चलिये हीन भावना तयागनी होगी कि हम असहाय और असरथि्म हैं । कोई भी मनुषय जनर से नहीं अपितु सदगुण और सतकर्म से श्ेषठ बनता है । जनर से सभी शूद्र अथिा्मत् अनपढ़ होते हैं । पुरुर्ाथि्म में अशकर मनुषय ही नपुंसको की भांति भागय भरोसे बैठडे रहते हैं । पुरुर्ाथि्म करते रहने से मनुषय एक दिन मोक्ष भी पा लिेता है , फिर पढ़ा-चलिखा चद्ज बनना कौन सी बड़ी बात है ।
प्श्न 9- हमारा मितषणि वाल्ीहक जी से क्ा रिश्ा है ?
उत्तर - रिचर््म वालरीचक विद्ा और कलिा दोनों के सुयोगय अधिकारी विद्ान थिे । अमर ऐतिहासिक महाकावय वालरीकीय रामायण के अतिरिकर भी उनिोंने अनेक ग्रंथों की रचना की थिी । वो विमान निर्माण कलिा के एक प्रमुख आचार्य थिे । उनिीं के शिषय भरद्ाज ने यंत्रकलिा पर ' यंत्रसव्म्व ' नामक एक ग्रंथ रचा थिा । इस ग्रंथ में 40 प्रकरण थिे । इनमें से एक का नाम वैमानिक प्रकरण है । वैमानिक प्रकरण मूलिर :
vDVwcj & uoacj 2022 43