1920 के दशक से ही मानकर वालरीचकयों को को चदगभ्चरर करते हुये कहते हैं कि 1925 से पिलिे इतिहास में हमें वालरीचक शबद नहीं चरलिरा । इनको हिंदू धर्म में बनाये रखने , वालरीचक से जोड़ने और वालरीचक नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्य समाज ने बनाई थिी और इस काम को अंजाम दिया थिा एक आर्य समाजी अमीचंद शर्मा ने । अमीचंद शर्मा से इतना क्ोर मात्र इसचलिये कि वह वालरीचकयों की बस्रयों में उनके उत्थान और शिक्षा के चलिये लिंबे समय से ईमानदारी से कार्यरत थिे । उनिोंने इसी दौरान ' श्ी वालरीचक प्रकाश ' नामक पु्रक चलिखकर वालरीचकयों को उनके गौरवशालिी अतीत और रिचर््म वालरीचक से उनके अटूट संबंधों को साबित कर फैलिाये जा रहे सर्र भ्र दूर कर दिये ।
लिेकिन विधर्मियों के दबाव में फरीदाबाद के प्रबुधद वालरीचकयों ने 14 प्रश्न हिंदू धार्मिक विद्ानों को उत्तर देने के चलिये भेजे । ये प्रश्न दैनिक प्राण , फरीदाबाद , बुधवार 8 मार्च 1989 के अंक में प्रकाशित हुये । ये प्रश्न थिे :
हमारा धर्म कया है ? अगर हम हिंदू हैं तो अ्पृशयरा कयों है ? कोई भी धर्म हमें बराबर मानने को तैयार नहीं । ऐसा कयों ? हमें इतना नीचे कयों जाना पड़ा ? हम कहां के रहने वालिे हैं और हमारी जायदाद कहां है ? हमारी सं्कृचर कया है ? हमें ही भूत पूजा कयों करनी पड़ी ? अब हम सामाजिक , आचथि्मक व राजनीतिक समानता किस तरह हाचसलि कर सकते हैं ? हमारा रिचर््म वालरीचक जी से कया रिशरा है ? अकेलिे रिचर््म वालरीचक जी के नाम पर एक वर्ग का नाम वालरीचक कयों पड़ा ? रिचर््म जी ने शिक्षा कहां प्रा्र की जबकि हरिजनों के चलिये ्करूलि के दरवाजे चार हजार सालि बंद रहे ? रिचर््म वालरीचक जी ने रामायण में अपने चलिये दो शबद कयों नहीं चलिखे जबकि उनिें समाज द्ािा चोर डाकरू कहा गया है ? रिचर््म वालरीचक जी ने श्ीिाम के पुत्रों को शिक्षा दी । कया एक भी अछिूत शिक्षा के काचबलि नहीं थिा ? रिचर््म जी जब इतने अज्ानी थिे कि जब उनिें राम-राम के दो शबद भी याद नहीं रहे और वह मरा-मरा रटने लिगे तो इतनी बड़ी रामायण उनिोंने कैसे चलिख दी ? आज से नबबे वर््म पूर्व अमीचंद शर्मा ने अपनी पु्रक में इनसे चरलिरे जुलिरे प्रश्नों के उत्तर संक्षेप दे दिये थिे । दोबारा राजेंद्र सिंह ने अतयंर चव्राि से इन सभी 14 प्रश्नों के उत्तर श्ुचर और ्रृचरयों से प्रामाणिक संदभषों के साथि दिये जो इसी पत्रिका के संपादकीय पृषठों पर लिगातार 9 अचप्रलि 1989 तक छिपते रहे । राजेंद्र सिंह के प्रश्नवार उत्तरों ने विधर्मियों के झूठ का सदा के चलिये पर्दाफाश कर दिया ।
प्श्न 1- हमारा धर्म क्ा है ?
उत्तर - अ्छिडे और बुरे करषों को अलिग अलिग भलिीभांति जानकर सदाचार का पालिन करना हर मनुषय का कर्तवय है । भारत में लिंबे समय की मुस्लिम-अंग्ेजी दासता के प्रभाव से शा्त्र
से अनचभज् बुद्धिजीवियों ने रिलिीज़न और मजहब शबदों का अनुवाद धर्म कर दिया । धर्म का पर्यायवाची शबद विशव की किसी भी प्राचीन या अर्वाचीन भार्ा में प्रा्र नहीं है । शा्त्र में सदाचार को धर्म और दुराचार को अधर्म कहा गया है । मनु्रृचर 6 / 12 के अनुसार धैर्य , क्षमा , मन को वश में रखना , इंद्रियों का चनग्ि , बुद्धि का कलयाणकारी सदुपयोग करना , विद्ा प्रा्र करना , सतय का पालिन और क्ोर न करना आदि धर्म के दस लिक्षण हैं । यही मानव धर्म है जिसका सर्वप्रथिर परिचय विशव में हमें ही हुआ । इसी तरह धर्म के विपरीत अधर्म होता है । जो भी इन दस आचारों को जान , समझ और मानकर इनके अनुसार जीवन यापन करता है , वह हिंदू है । वालरीचक समाज भी चूंकि इन दस मर्यादाओं को मन से मानता और कर्म में ढालिरा है , वह हिंदूररमी है । उसके कुछि और होने का प्रश्न ही नहीं है ।
प्श्न 2- अगर हम हिंिदू हैं तो अस्पृश्यता क्यों है ?
उत्तर - हिंदूररमी होने के कारण नहीं बसलक अज्ानतावश ऐसा मान चलिया गया है । शा्त्र में ्पृशय और अ्पृशय का किसी वर्ग विशेर् से कोई संबंध नहीं बताया गया है । परिस्थितिवश कोई भी अ्पृशय हो सकता है । एक रिाह्ण भी यदि मैलिे और दुगांरयुकर व्त्र पहन समाज में ्व्छिंद घूमता है तो धर्म के पांचवें लिक्षण शौचधर्म के उल्लंघन से अ्पृशय हो जाता है । उल्लंघन करने वालिा यदि राजा भी है तो शा्त्र के अनुसार अशौचकालि तक वह अ्पृशय ही माना जायेगा । अत : अ्पृशयरा को किसी भी एक वर्ग विशेर् के मत्थे मढ़ देना अशा्त्रीय और दुर्भागयपूर्ण है ।
प्श्न 3- कोई भी धर्म हमें बराबर मानने को तैयार नहीं ।
ऐसा क्यों ? उत्तर - धर्म की सही परिभार्ा और इसका
मजहब के अथि्म से अंतर प्रथिर प्रश्न के उत्तर में में देखें । वालरीचक समाज को यदि कोई
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