eMag_Oct-Nov 2022_DA | 页面 39

की भावना उतपन्न होती है और उससे राजय वयवस्था क्षीण होती है । अगर हमारे शासक जनता में क्ोर न पनपने दें , तो यह उस समय की वयवस्था को लिागू करना ही तो हुआ । दूसरी बात , राजा या उसके प्रतिनिधि वेर् बदलि कर राजय में घूमा करते थिे । जिस मकान में प्रकाश दिखाई देता थिा , वहाूँ की बात चछिप कर सुनते थिे कि कोई भूखा तो नहीं सो रहा है । भूखे के चलिए भोजन वयवस्था करना यह राजय का कर्तवय थिा हमारे यहाूँ । आज जबकि अपने देश में जिमरेदार प्रशासन है , लिोककलयाणकारी
लिोकतंत्र है , यह सिद्धांत लिागू कयों नहीं ? यह तो हमारी वयवस्था में तो सहज ही होना चाहिए थिा । इसके चलिए विधेयक लिाना पड़े , यह तो हमारे चलिए शर्म की बात होनी चाहिए ।
रामायण के राजनीतिक क्सदांि भी प्ासंगिक
रामायण के सौवें सर्ग में चलिखा है कि भरत जब श्ीिाम से दंडकारणय में चरलिने आए हैं तो श्ीिाम उनसे कह रहे हैं कि राजा को अपरानि में अ्छिडे कपड़े पहन कर राजय की मुखय सड़कों
पर घूमना चाहिए और लिोगों से चरलिना चाहिए । वे बात कर रहे हैं कि आपके भीतर का दुख-क्लेश प्रजा को नहीं दिखे । आपके वयसकरतव से प्रजा प्रभावित हो और आप प्रजा से बात कर सकें । जब राजा प्रजा से सीधे बात करेगा तो बीच के अधिकारी बीच में डंडी नहीं मार सकते । आज का राजा प्रजा से सीधे संवाद नहीं करते । वे केवलि मंच से बात करते हैं । राजा और प्रजा में पुलि का काम करते हैं अधिकारीगण , पार्टियों के कार्यकर्ता आदि । ये राजा को जो समझाते हैं , राजा उस हिसाब से चलिरा है । यह हमारी वयवस्था नहीं रही है । हमारे यहाूँ प्रशासन में जनता से सीधा संवाद करना होता थिा , जिसे हमने आधुनिक भारत में नहीं माना । रामायण के सौवें सर्ग में और भी बहुत कुछि है । कोर्ाधयक्ष बनाने की योगयरा कयो हो , यह तक चलिखा है । श्ीिाम भरत से कहते हैं कि जहाूँ खदानों में खुदाइयां होती हैं , या जो दंड के स्थान हैं , जो कारागार हैं , वहाूँ नियुकर किये जाने वालिे लिोगों पर धयान रखो कि कृत्रिम चरित्र के लिोग वहाूँ स्थान नहीं पाएं । श्ीिाम भ्षटाचार होने के बाद नहीं , पिलिे से सचक्य राजा हैं । भ्षटाचार होने से पिलिे ही निगाह रखने के चलिए कह रहे हैं । वे कहते हैं कि निगाह रखो कि कोई पैसे लिेकर काम न कर रहा हो । कया प्राचीन भारत के इन राजनीतिक सिद्धांतों को आज लिागू करन की आवशयकता नहीं है ?
प्ाचीन ज्ञान — विज्ञान के उपयोग से होगी उन्नति
इसी प्रकार हमारे यहाूँ आयुवदेद में जो नियम बताए गए हैं , हमने उनकी उपेक्षा की हुई है , इससे आज हम बीमार पड़ रहे हैं । हम सूर्य की उपासना इसचलिए करते थिे कयोंकि सूर्य हमारी अधिकांश बीमारियों को ठीक करता है । ऐसे और भी ज्ान-विज्ान के चवर्य हैं जिनका यदि आज उपयोग किया जाए तो देश का काफी विकास हो सकता है , लिोगों का काफी कलयाण हो सकता है । शारीरिक ्वा्थय से लिेकर भौतिक उन्नति तक सभी कुछि चरलि सकता है और वह सब कुछि सामाजिक सद्ाव और प्राकृतिक पर्यावरण को बचाते हुए । �
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