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बनवाया गया एक मंदिर है । 18 फीट ऊूँचा शिवचलिंग है वहाूँ । वहाूँ मैंने पूजा की और धयान लिगाया , जो कि हमें करना ही चाहिए । परंतु मैंने वहाूँ निहित विज्ान को भी जानने का प्रयास किया । पत्थर का बना शिवचलिंग आज भी चमक रहा है , जबकि वह हजार वर््म से अधिक पुराना थिा । कैसे चमक रहा है । आज हम मकानों को चमकाने के चलिए पेंट लिगाते हैं और वह पेंट 3-4 वर््म में फीका पड़ जाता है । फिर वह शिवचलिंग हजार वर््म से कैसे चमक रहा है ? पूछिराछि करने पर पता चलिा कि उस पर एक प्रकार का लिेप चढ़ाया हुआ है । सोचने की बात यह है कि हमें आज से हजार वर््म पिलिे वह कलिा आती थिी जिसमें पत्थर पर ऐसी परत चढ़ाई जा सकती थिी , जो हजारों वर््म तक उसे चमकीलिा बनाए रखे । आज उस कलिा का पता चलिे तो उसका कितना लिाभ हमें हो सकता है ? इसी प्रकार अपने यहाूँ लिोहे पर ऐसी परत चढ़ाई जाती थिी कि उस पर जंग नहीं लिगता थिा । आज वह तकनीक हमारे उद्ोग जगत को चरलि जाए तो सोचिए कया हो सकता है ? जंगरोधक कहने की आवशयकता ही समा्र हो जाएगी । भारत का लिोहा है , तो जंग नहीं लिगेगा , यह विशवास दुनिया के मन में जम जाएगा । विशवगुरु कहने की पिलि ऐसे होती है ।
प्शासनिक व राजनीतिक क्सदांिथों को समझना जरूरी
यदि हम राजनीतिक सिद्धांतों की बात करें तो हमारे यहाूँ रामराजय की संकलपना विकसित हुई है । रामराजय की बात करते ही एक भाव मन में आता है कि ऐसा राजय जहाूँ कोई दुखी नहीं , सब सुखी होते थिे । परंतु ऐसा तो थिा नहीं । रामायण को यदि हम पढ़ें तो उसमें दुखी और बहुत दुखी लिोग भी हैं । वहाूँ उन्नति भी है और अशांति भी है । श्ीिाम यह सब कैसे संभालिरे हैं ? यदि हम उनके राजनीतिक सिद्धांतों को समझ लिें तो हमारी आज की बहुत सारी परेशानियाूँ दूर हो सकती हैं । श्ी राम राजा भरत को कहते हैं कि पुरोहितों का धयान रखना कि उनके पास यज् की सामग्ी कभी कम न पड़े
और यह भी धयान रखना कि वे नियमित रूप से यज् कर रहे हों । वह यज् भगवान की प्राप्र के चलिए नहीं किया जा रहा है , वह किया जा रहा है पर्यावरण की शुद्धता के चलिए । तो पर्यावरण की चिंता राजय कर रहा है । श्ीिाम के समय में कोर्ागार है , अधिवकरा हैं , सेनाएं हैं । लिेकिन हमारे श्ीिाम मंदिरों में बंद हैं । हमारे पास उनकी पूजा करने के चलिए 5 , 11 , 51 दीपक रामनवमी तयौिार आदि तो हैं , परंतु उनके विचारो पर चिंतन करने की प्रचक्या नहीं है । श्ीिाम की पूजा हमें करनी चाहिए . आखिर हम उनकी पूजा
नहीं करेंगे तो किनकी करेंगे , परंतु उनके प्रशासनिक सिद्धांतों पर भी हमें धयान देना चाहिए ।
अन्तोिर थी श्ीराम के प्शासन की विशेषता
श्ीिाम के प्रशासन की विशेर्रा कया थिी ? अनतयोदय । एक सामानय से धोबी की बात को भी सम्ाट सुनता थिा । आज वह वयवस्था कयों नहीं लिागू हो सकती ? आज सड़कों पर धरने प्रदर्शन हो रहे हैं । उनमें विद्रोह और असुरक्षा
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