eMag_Oct-Nov 2022_DA | Page 37

होगी । उस समय तो और भी पौधे रहे होंगे । लिोगों ने कैसे समझा होगा कि इसे खाना चाहिए और इसके खाने से लिाभ है । तब आज की भांति प्रयोगशालिाएं तो थिीं नहीं । आज हमें पता है कि उसमें विटामिन सी है , तब कैसे पता चलिा होगा ? इससे पता चलिरा है कि भारत का प्राचीन ज्ान- विज्ान कितना महान रहा होगा । मनुषय के जीवन के जितने भी आयाम हो सकते हैं , उन सभी में भारत अग्णी थिा । चाहे वह शिक्षा का आयाम हो या फिर शरीर रचना का हो , मस्रषक का आयाम हो , कृचर् का हो , राज्व का हो या फिर प्रशासन का हो । सभी राजनीतिक , सामाजिक ,
वर्तमान में परिलक्षित नहीं प्ाचीन मान्यताएं
अब बात यह है कि केवलि यह कहने से कि भारत काफी महान थिा , मुझ जैसे लिोग संतुषट नहीं हो सकते । हमने पचास-सौ ग्रंथ और 15- 20 चवर्य गिनवा दिये कि यह सब कुछि भारत में थिा , परंतु यह बात अधूरी है । चूूँचक प्राचीन महानता वर्तमान में परिलिचक्षर नहीं हो रही और इसचलिए भविषय में वह हमारे साथि नहीं जाएगी । प्राचीन मानयराएं आज से दो-चार सौ वर््म पिलिे वर्तमान में परिलिचक्षर नहीं हुईं और इसचलिए उस
मानना है कि जो भारतीय ज्ान संपदा है , उसका वैज्ाचनक विशलिेर्ण किए जाने की आवशयकता है । हमें भारत के शा्त्रों को धार्मिक शा्त्र कहना बंद करना होगा । जैसे ही हम धर्म की बात करते हैं , मन पूजा-अर्चना की ओर चलिा जाता है जिससे शा्त्रों में चछिपा विज्ान कहीं पीछिडे छिूट जाएगा । भावोसकर तो आ जाएगी , लिेकिन उसका भाव गायब हो जाएगा । हम उसकी भसकर तो करेंगे , परंतु उस भसकर का आधार हमसे छिूट जाएगा । हमें अपने शा्त्रों को ज्ान-विज्ान की पु्रकों की तरह देखना होगा । हमें अपनी चीजों को विज्ान की दृसषट से देखने का ्वभाव
आचथि्मक और यहाूँ तक कि विदेशनीति संबंधित ज्ान भी भारत में थिा । श्ीकृषण विदेशनीति पढ़रे थिे । चंद्रगु्र मौर्य ने विदेशनीति पढ़ी थिी , श्ीिाम को विदेशनीति पता थिी ।
वकर का वर्तमान हमारे साथि नहीं आया , वहीं छिूट गया । हमारे पास आयुवदेद में इतना ज्ान थिा , आज कहाूँ है ? हमारे पास आड पाइथिागोरस प्रमेय है , परंतु हमारी अपनी मय दानव का प्रमेय कहाूँ है , बोधायन का प्रमेय का कहाूँ है ? मेरा
विकसित करना होगा ।
धर्म और आध्ात्म में निहित विज्ञान मैं भोजपुर गया थिा । वहाूँ राजा भोज द्ािा
vDVwcj & uoacj 2022 37