( 16 ) विशवाचरत्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया थिा , विशवाचरत्र ्वयं क्षत्रिय थिे परनरु बाद उनिोंने रिाह्णतव को प्रा्र किया थिा ।
( 17 ) विदुर दासी पुत्र थिे रथिापि वे रिाह्ण हुए और उनिोंने हस्रनापुर साम्ाजय का मंत्री पद सुशोभित किया थिा , ऋगवेद को समझने के चलिए ऐतरेय रिाह्ण अतिशय आवशयक माना जाता है ।
इन उदहारणों से यही सिद्ध होता हैं कि वैदिक वर्ण वयवस्था में वर्ण परिवर्तन का प्रावधान थिा एवं जनर से किसी का भी वर्ण निर्धारित नहीं होता थिा । मनु्रृचर में भी वर्ण परिवर्तन का ्पषट आदेश है । ( मनु्रृचर 10 / 65 )।
शुद्र रिाह्ण और रिाह्ण शुद्र हो जाता है , इसी प्रकार से क्षत्रियों और वैशयों कि संतानों के वर्ण भी बदलि जाते है । अथिवा चारों वणषों के वयसकर अपने अपने कायषों को बदलि कर अपने अपने वर्ण बदलि सकते है ।
शुद्र भी यदि जितेसनद्रय होकर पवित्र करषों के अनुषठान से अपने अंत : करण को शुद्ध बना लिेता है , वह चद्ज रिाह्ण कि भांति सेवय होता है । यह साक्षात् रिह्ा जी का कथिन है । ( महाभारत दान धर्म अधयाय 143 / 47 )।
देवी ! इनिीं शुभ करषों और आचरणों से शुद्र रिाह्णतव को प्रा्र होता है और वैशय क्षत्रियतव को प्रा्र होता है । ( महाभारत दान पर्व अधयाय 143 / 26 )।
जनरना जायते शुद्र : सं्कािों चद्ज उ्यरे । वेद पाठी भवेद् विप्र : बृह्ा जानेति रिाह्ण : ।।
अथिा्मर जनर सब शुद्र होते है , सं्कािों से चद्ज होते है । वेद पढ़ कर विप्र होते हैं और रिह्ा ज्ान से रिाह्ण होते है । ( नरसिंह तापनि उपचनर्द् )
शुभ सं्काि रथिा वेदाधययन युकर शुद्र भी रिाह्ण हो जाता है और दुराचारी रिाह्ण रिाह्णतव को तयागकर शुद्र बन जाता है । ( रिह् पुराण 223 / 43 )
जिस में सतय , दान , द्रोह का भाव , क्रूरता का अभाव , लिज्जा , दया और तप यह सब सदगुण देखे जाते हैं वह रिाह्ण है । ( महाभारत शांति पर्व अधयाय 88 / 4 )
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