eMag_Oct-Nov 2022_DA | Page 30

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कांड श्लोक 33,34 । यह प्रमाण इस तथय का उदबोधक है कि रामायण कालि में भीलि , चनर्ाद शूद्र आदि को अछिूत नहीं समझा जाता थिा । राजा धृतराषट् के यहां पूर्व के सदृश अराचलिक और सूपकार आदि शुद्र भोजन बनाने के चलिए नियुकर हुए थिे । ( महाभारत आ पर्व 1 / 19 )। इन प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि वैदिक कालि में शुद्र अछिूत नहीं थिे । कालिांतर में कुछि अज्ानी लिोगों ने छिुआछिूत कि गलिर प्रथिा आरमभ कर दी जिससे जातिवाद जैसे विकृत मानसिकता को प्रोतसािन चरलिा ।
शंका 9 - अगर रिाह्मण का पुत्र गुण कर्म स्वभाव से रहित हो तो क्ा वह शुद्र कहलायेगा और अगर शुद्र गुण कर्म और स्वभाव से गुणवान हो तो क्ा वह
रिाह्मण कहलायेगा ? समाधान - वैदिक वर्ण वयवस्था के अनुसार
रिाह्ण का पुत्र विद्ा प्राप्र में असफलि रहने पर शूद्र किलिायेगा वैसे ही शूद्र का पुत्र भी विद्ा प्राप्र के उपरांत अपने रिाह्ण , क्षत्रिय या वैशय वर्ण को प्रा्र कर सकता है । यह समपूण्म वयवस्था विशुद्ध रूप से गुणवत्ता पर आधारित है । जिस प्रकार शिक्षा पूरी करने के बाद आज उपाधियाूँ दी जाती है उसी प्रकार वैदिक वयवस्था में यज्ोपवीत दिया जाता थिा । प्रतयेक वर्ण के चलिए निर्धारित कर्तवय कर्म का पालिन व निर्वाहन न करने पर यज्ोपवीत वापस लिेने का भी प्रावधान थिा । वैदिक इतिहास में वर्ण परिवर्तन के अनेक प्रमाण उपस्थित है , जैसे -
( 1 ) ऐतरेय ऋचर् दास अथिवा अपराधी के पुत्र थिे परनरु अपने गुणों से उच्च कोटि के रिाह्ण बने और उनिोंने ऐतरेय रिाह्ण और ऐतरेय उपचनर्द की रचना की थिी । ऋगवेद को समझने के चलिए ऐतरेय रिाह्ण अतिशय आवशयक माना जाता है |
( 2 ) ऐलिूर् ऋचर् दासी पुत्र थिे , जुआरी और हीन चरित्र भी थिे , परनरु बाद में उनिोंने अधययन किया और ऋगवेद पर अनुसनरान करके अनेक
आविषकाि किये । ऋचर्यों ने उनिें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया थिा ( ऐतरेय रिाह्ण 2 / 19 )।
( 3 ) सतयकाम जाबालि गणिका ( वेशया ) के पुत्र थिे परनरु वे रिाह्णतव को प्रा्र हुए । ( छिानदोगयोपचनर्द 4 खंड 4 / 4 )।
( 4 ) राजा दक्ष के पुत्र पृर्र शूद्र हो गए थिे , प्रायसशचर ्वरुप तप्या करके उनिोंने मोक्ष प्रा्र किया । ( विषणु पुराण 4 / 1 / 14 )। अगर उत्तर रामायण की मिथया कथिा के अनुसार शूद्रों के चलिए तप्या करना मना होता तो पृर्र ये कैसे कर पाए ?
( 5 ) राजा नेदिषट के पुत्र नाभाग वैशय हुए , पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । ( विषणु पुराण 4 / 1 / 13 )।
( 6 ) धृषट नाभाग के पुत्र थिे परनरु रिाह्ण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया । ( विषणु पुराण 4 / 2 / 2 )।
( 7 ) आगे उनिी के वंश में पुनः कुछि रिाह्ण हुए । ( विषणु पुराण 4 / 2 / 2 )।
( 8 ) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेशय रिाह्ण हुए ।
( 9 ) विषणुपुराण और भागवत के अनुसार िथिोतर क्षत्रिय से रिाह्ण बने थिे ।
( 10 ) हारित क्षत्रिय पुत्र से रिाह्ण हुए थिे । ( विषणु पुराण 4 / 3 / 5 )।
( 11 ) क्षत्रिय कुलि में जनरें शौनक ने रिाह्णतव प्रा्र किया । वायु , विषणु और हरिवंशपुराण कहते है कि शौनक ऋचर् के पुत्र कर्म भेद से रिाह्ण , क्षत्रिय , वैशय और शूद्र वर्ण के हुए । इसी प्रकार गृतसरद , गृतसरचर और वीतहवय के उदाहरण है । ( विषणु पुराण 4 / 8 / 1 )।
( 12 ) मातंग चांडालिपुत्र से रिाह्ण बने थिे । ( महाभारत राजधर्म अधयाय 27 )।
( 13 ) ऋचर् पुलि्तय का पौत्र रावण अपने करषों से राक्षस बना थिा ।
( 14 ) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ थिा ।
( 15 ) त्रिशंकु राजा होते हुए भी करषों से चांडालि बन गए थिे ।
30 vDVwcj & uoacj 2022