eMag_Oct-Nov 2022_DA | Page 29

वर्ण को छिोड़ नीच , अनतयजय अथिवा कृषटयन , मुसलिरान हो गया है उसको भी रिाह्ण क्यूँ नहीं मानते ? इस पर यही कहेंगे कि उसने " रिाह्ण के कर्म छिोड़ दिये इसचलिये वह रिाह्ण नहीं है " इससे यह भी सिद्ध होता है कि जो रिाह्ण आदि उत्तम कर्म करते है वही रिाह्ण
और जो नीच भी उत्तम वर्ण के गुण , कर्म ्वाभाव वालिा होवे , तो उसको भी उत्तम वर्ण में , और जो उत्तम वर्णस्थ हो के नीच काम करे तो उसको नीच वर्ण में गिनना अवशय चाहिये ।
सत्यार्थ प्रकाश में ्वारी दयानंद चलिखते है श्ेषठों का नाम आर्य , विद्ान , देव और दुषटों के
द्यु अथिा्मर डाकरू , मुर्ख नाम होने से आर्य और द्यु दो नाम हुए । आयषों में रिाह्ण , क्षत्रिय , वैशय एवं शुद्र चार भेद हुए । ( सत्यार्थ प्रकाश अषटर समुल्लास )।
मनु ्रृचर के अनुसार जो शुद्र कुलि में उतपन्न होके रिाह्ण , क्षत्रिय और वैशय गुण , कर्म
्वभाव वालिा हो तो वह शुद्र रिाह्ण , क्षत्रिय और वैशय हो जाये । वैसे ही जो रिाह्ण क्षत्रिय और वैशय कुलि में उतपन्न हुआ हो और उसके गुण , कर्म ्वभाव शुद्र के सदृशय हो तो वह शुद्र हो जाये । वैसे क्षत्रिय वा वैशय के कुलि में उतपन्न होकर रिाह्ण , रिाह्णी वा शुद्र के समान होने
से रिाह्ण वा शुद्र भी हो जाता हैं । अथिा्मर चारों वणषों में जिस जिस वर्ण के सदृशय जो जो पुरुर् वह ्त्री हो वह वह उसी वर्ण में गिना जावे । ( सत्यार्थ प्रकाश चतुथि्म समुल्लास )।
आप्रमभ सूत्र का प्रमाण देते हुए ्वारी दयानंद कहते है कि धर्माचरण से निकृषट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वणषों को प्रा्र होता है और वह उसी वर्ण में गिना जावे , कि जिस जिस के योगय होवे । वैसे ही अधर्माचरण से पूर्व पूर्व अथिा्मर उत्तम उत्तम वर्ण वालिा मनुषय अपने से नीचे-नीचे वालिे वणषों को प्रा्र होता हैं , और उसी वर्ण में गिना जावे । ( आप्रमभ सूत्र 2 / 5 / 1 / 1 )। ्वारी दयानंद जातिवाद के प्रबलि विरोधी और वर्ण वयवस्था के प्रबलि सरथि्मक थिे । वेदों में शूद्रों के पठन पाठन के अधिकार एवं साथि बैठ कर खान पान आदि करने के चलिए उनिोंने विशेर् प्रयास किये थिे ।
शंका 8 - क्ा वेदादि शास्तथों में शुद्र को अछूत ि बताया गया है ?
समाधान- वेदों में शूद्रों को आर्य बताया गया हैं I इसचलिए उनिें अछिूत समझने का प्रश्न ही नहीं उठता हैं । वेदादि शा्त्रों के प्रमाण सिद्ध होता है कि रिाह्ण वर्ग से से लिेकर शुद्र वर्ग आपस में एक साथि अन्न ग्िण करने से परहेज नहीं करते थिे । वेदों में ्पषट रूप से एक साथि भोजन करने का आदेश है ।
हे मित्रों तुम और हम चरलिकर बलिवर्धक और सुगंध युकर अन्न को खाये अथिा्मर सहभोज करे । ( ऋगवेद 9 / 98 / १२ )।
हे मनुषयों तुमिािे पानी पीने के स्थान और तुमिािा अन्न सेवन अथिवा खान पान का स्थान एक साथि हो । ( अथिव्मवेद 6 / 30 / 6 )।
महाराज दशिथि के यज् में शूद्रों का पकाया हुआ भोजन रिाह्ण , तप्वी और शुद्र चरलिकर करते थिे । ( वालरीचक रामायण सुश्लोक १२ )।
श्ी रामचंद्र जी द्ािा भीलिनी शबरी के आश्र में जाकर उनके पाूँव छिूना एवं उनका आतिथय ्वीकार करना । ( वालरीचक रामायण सुंदरकांड श्लोक 5,6,7 , चनर्ादराज से भेंट होने पर उनका आचलिंगन करना । ( वालरीचक रामायण अयोधया
vDVwcj & uoacj 2022 29