Kku
वेद और शूद्र-2
डॉ विवेक आर्य
शंका 7 - स्वामी दयानंद का वर्ण व्यवस्ा एवं शुद्र शब्द पर क्ा दृष्टिकोण है ?
समाधान : - ्वारी दयानंद के अनुसार ' जो मनुषय विद्ा पढ़ने का सारथय्म तो नहीं रखते और वे धर्माचरण करना चाहते हो तो विद्ानों के संग और अपनी आतरा कि पवित्रता से धर्मातरा अवशय हो सकते है । कयोंकि सब मनुषय का विद्ान होना तो समभव ही नहीं है । परनरु धार्मिक होने का समभव सभी के चलिए है । ( वयवहार भानु ्वारी दयानंद शताबदी सं्किण चद्रीय भाग पृषठ 755 )
्वारी जी आयषों के चार वर्ण मानते है जिनमें शुद्र को वे आर्य मानते है । ्वारी दयानंद के अनुसार गुण , कर्म और ्वभाव के अनुसार मनुषय कि कर्म अवस्था होनी चाहिये । इस सनदभ्म में सत्यार्थ प्रकाश के चतुथि्म समुल्लास में ्वारी जी प्रश्नोत्तर शैलिी में चलिखते है ।
शंका- जिसके माता-पिता अन्य वणयास् हो , उनकी संतान कभी
रिाह्मण हो सकती है ? उत्तर- बहुत से हो गये है , होते है और होंगे
भी । जैसे छिानदोगयोपचनर्द 4 / 4 में जाबालि ऋचर् अज्ार कुलि से , महाभारत में विशवाचरत्र क्षत्रिय वर्ण से और मातंग चांडालि कुलि से रिाह्ण हो गये थिे । अब भी जो उत्तम विद्ा , ्वाभाव वालिा है , वही रिाह्ण के योगय हैं और मुर्ख शुद्र के योगय है । ्वारी दयानंद कहते है कि रिाह्ण का शरीर मनु 2 / 28 के अनुसार रज वीर्य से नहीं होता है ।
्वाधयाय , जप , नाना विधि होम के अनुषठान ,
समपूण्म वेदों को पढ़ने-पढ़ाने , इसषट आदि यज्ों के करने , धर्म से संतान उतपचत्त मंत्र , महायज् अग्निहोत्र आदि यज् , विद्ानों के संग , सतकाि , सतय भार्ण , परोपकार आदि सतकर्म , दुषटाचार छिोड़ श्ेषठ आचार में व्रतने से रिाह्ण का शरीर किया जाता है । रज वीर्य से वर्ण वयवस्था मानने
वालिे सोचे कि जिसका पिता श्ेषठ उसका पुत्र दुषट और जिसका पुत्र श्ेषठ उसका पिता दुषट और कही कही दोनों श्ेषठ व दोनों दुषट देखने में आते है । जो लिोग गुण , कर्म , ्वभाव से वर्ण वयवस्था न मानकर रज वीर्य से वर्ण वयवस्था मानते है उनसे पूछिना चाहिये कि जो कोई अपने
28 vDVwcj & uoacj 2022