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चचचनित कर चलिया है । शनैःशनैः इसे पुनः परिषकृर करके मानव समाज में मार्गदर्शन हेतु प्र्रुर किया जा रहा है ।
भगवान् श्ीराम एवं भगवान् श्ीककृ ष्ण समरसता के उदाहरण
हिनदू मानव समाज , हिनदू धर्म , भारतीय सं्कृचर और भारतीय जीवन-पद्धति एवं भारतीय लिोक जीवन में भगवान् श्ीिाम एवं भगवान् श्ीकृषण को समरानजनक स्थान प्रदान किया गया है । उनको भारतीय समाज अपना आराधय देव मानकर उनकी पूजा करता है और उनको समाज का आदर्श , सामाजिक समरसता का नायक और इसचलिए समरसता सामाजिक विखणिन को अपना प्रबलि शत्रु मानता है । रिचर््म वालरीचक द्ािा रचित महाकावय के भगवान राम और रिचर््म वयास द्ािा रचित महाकावय के भगवान् श्ीकृषण क्रशः रामायण और श्ीरद्ागवत के महापात्र हैं । इनिीं रिचर््मयों के ग्न्थों द्ािा दोनों ही भगवानों को भारतीय समाज में प्रतिषठापरक स्थान प्रा्र हुआ है । उसके पूर्व उनका परिचय अनय अवतारी रूपों में चरलिरा है । श्ीिाम को मर्यादा पुरुर्ोत्ताम और श्ीकृषण को योगेशवि कहते हुए उनिें समरसता के उदाहरण्वरूप प्र्रुर किया जाता है । इन महापुरुर्ों की जीवन-लिीलिाओं में समरसता की झलिक प्रा्र करने हेतु क्रशः रामायण और श्ीरद्ागवत का अधययन करना होगा , जिनमें भारतीय जीवन-पद्धति के सरसषटरूलिक दृसषटकोण ्पषट हैं , जैसे वेद में जीवन जीने के सिद्धानर एवं श्ीरद्ागवत एवं श्ी रामायण में जीवन जीने का वयावहारिक पक्ष एवं श्ीरद्ागवदगीता में वयसकर के चलिए साधना , तप्या एवं योग की सिलिरर प्रविधियों के संकेत प्रा्र होते हैं ।
रिचर््म वालरीचक द्ािा भगवान् श्ीिाम के चरित्र को लिोकनायक , अतयाचार के निवारक , प्रकृति के संरक्षक , सामाजिक समरसता के उन्नायक , मानवीय हितों के पोर्क रथिा सामाजिक मूलयों के संरक्षक के रूप में प्र्रुर किया गया है । रिचर््म वालरीचक ने भगवान् श्ीिाम
के उदात्त चरित्र का वर्णन करते हुए जनसामानय के हितों के प्रति उनकी जागरूकता एवं समर्पणशीलिरा का जो विवरण प्रदान किया है , उससे यह ्पषट होता है कि राजा जहां शासक के रूप में भिन्न प्रस्थिति रखता थिा , वहीं वह वृहद् लिोक जीवन का अंग भी होता थिा । रामायण के उत्तरकाणि में रामदरबार में सामानय जनों द्ािा अपनी व्यथा कहना अतयनर प्रासंगिक है । वालरीचक द्ािा वर्णित राजा भगवान् श्ीिाम के कथिानक को गो्वारी तुलिसीदास द्ािा विदेशी शासकों की शासन वयवस्था में पीड़ित भारतीय जनमानस के हिताथि्म श्ीिामचरितमानस की रचना की गई , जिसमें भगवान् श्ीिाम को मर्यादा पुरुर्ोत्तम की उपाधि के साथि लिोकनायक के रूप में प्र्रुर किया गया है । भगवान् श्ीिाम ने चनर्ादराज केवट को गलिे लिगाकर कहा थिा- ‘ तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई ’ - जो समरसता का उदाहरण है । यज्कर्ता ऋचर्यों एवं गुरुकुलिवासियों की रक्षा एवं उनके साथि समरसता के हेतु से ही श्ीिाम ने ताड़का आदि आतंकवादियों एवं उपद्रवियों का नाश किया थिा । पारिवारिक
समरसता का आदर्श प्र्रुर करने हेतु उनिोंने वनवास ्वीकार किया और वन-पर्वतवासियों के साथि सहजभाव से समरसता स्थापित रखते रहे । केवट की समरसता , हनुमान एवं सुग्ीव के साथि समरसता , जटायु एवं शबरी के जूठडे बेरों को खाकर प्रदर्शित की गई समरसता अनर तक विभीर्ण के साथि भी दिखलिाई देती है । शमबूक एक महान शूद्र ऋचर् थिे । मर्यादा पुरुर्ोत्तम द्ािा शमबूक की हतया का जोरों से प्रचार करके सामाजिक समरसता का विखणिन किया गया है । यह कथिा रामायण के उत्तरकाणि में दी गई है , जिसे रामायण का प्रचक्ष्र ( चरलिावट ) भाग कहते हैं । श्ीिाम और शबरी की कथिा में समरसता का जो भाव दिखलिाई देता है , उसे समा्र करने हेतु किसी ने शबरी के स्थान पर शमबूक की कलपना की और अकारण राम के हाथिों उसकी हतया उसी पमपा सरोवर पर कराई । दिशा , स्थान वही है , केवलि पमपा सरोवर के स्थान पर ‘ एक सरोवर ’ चलिख दिया है । शमबूक-हतया का कारण भी यह दिखलिाया गया कि किसी रिाह्ण के पुत्रा की
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