मृतयु केवलि इसचलिए हो गई कि शमबूक ऋचर् धर्म-कर्म करने लिगा थिा । कितना हा्या्पद और अ्वाभाविक है यह ? इस समबनर में यह भी विचारणीय है कि सनातन श्ुचरयों और ्रृचरयों को लिेखकों ने अपनी-अपनी विद्ा एवं क्षमता के अनुरूप भिन्न-भिन्न प्रदेशों में कालिखणि की भौतिक आवशयकताओं को दृसषट में रखते हुए मूलि कथिानक में न केवलि क्षेपकों का वर्णन किया है , अपितु कुछि टीकाकारों और विशलिेर्कों ने भी ्विचित कथिानकों को उनमें प्रविषट करा मूलि ग्न्थ की वांचछिर मर्यादा को भी नषट किया है । लिोक जीवन की समरसता को विनषट करते का यह दुषचक् उस समय अधिक तीव्र हुआ , जब कथिानकों को चलिचपबद्ध किया गया रथिा विशेर् रूप से तब , जब उनिें ग्रंथों के रूप में प्रकाशित कर प्रचारित किया जाने लिगा ।
हिन्दू समाज में भेदभाव अरब एवं तरिटिश शासकथों की देन
हिनदू समाज प्रािसमभक अवस्था में भेदभाव
रहित थिा । सामाजिक समरसता दर्शन के प्रतिपाद् चवर्यों में हिनदु्थिान के सनदभ्म में हिनदू सं्कृचर एवं साहितय का महत्वपूर्ण स्थान है । हिनदू समाज को सुदृढ़ बनाए रखने में यहां की सं्कृचर और साहितय ने विशेर् योगदान किया है । यही कारण थिा कि इस देश को कमजोर बनाने , हिनदू समाज की एकता एवं सुदृढ़ता को प्रभावित करने और यहां स्थायी रूप से शासन करने की इच्छा से विदेशी ताकतों ने सर्वप्रथिर हिनदू सं्कृचर और साहितय को अधिक विरूपित करने का कार्य किया थिा । हिनदू सं्कृचर को बलिपूर्वक नषट करने एवं हिनदू आस्था के प्रतीक एवं महापुरुर्ों के चरित्र इतयाचद को चवभ्चरर एवं विवादित बनाने का योजनाबद्ध प्रयास हुआ । अरब के विदेशी शासकों ने बड़ी संखया में बलिपूर्वक धर्म परिवर्तन कराया थिा । ्वाचभरानी भारतीयों को प्रताड़ित करके उनका आचथि्मक शोर्ण रथिा सामाजिक पतन के साथि उनिें दचलिर भारतीय की पहचान दी गई । इसी तरह चरिटिश शासन कालि में भी भारतीयों के साथि कुकृतय किया । भारतीय धर्मग्न्थों के साथि भयानक छिडेड़छिाड़ की गयी और अथि्म का अनथि्म करके लिोगों के बीच की सामाजिक समरसता को समा्र करने का प्रयास करके हिनदू समाज के आनररिक संगठन को चछिन्न-भिन्न कर दिया । भारतीय सं्कृचर एवं साहितय के साथि छिडेड़छिाड़ के अनेक कारण थिे , जिनका मूलि उद्ेशय थिा इस देश पर लिमबे समय तक शासन करना और यहां के लिोगों को दासतापूर्ण जीवन में जकड़डे रखना । अरब के विदेशी आक्ांराओं के आक्रण इसके साक्य हैं । उनिोंने सामाजिक समरसता को समा्र करने हेतु नरसंहार और हिनदू समाज का उतपीड़न किया । उनके अतयाचारों के कारण ही दचलिर समाज का उदय हुआ । चरिटिश शासन ने भी हिनदू समाज को बांटने के उद्ेशय से प्रचक्ष्र साहितय का समपादन एवं प्रकाशन किया । चरिटिश शासकों ने अपने पंथि के प्रदूचर्र ईषया्म एवं द्वेष बढ़ाने के चलिए साहितय प्रकाशित किया गए । इसी तरह कमयुचन्ट रथिा जनवादी लिेखकों ने भी योजनाबद्ध भ्रातरक तथयों को प्रकाशित किया ।
दचलिर साहितयकारों की चिनरन धारा भी पूवा्मग्ियुकर रही । इस प्रकार से स्वलाभ एवं खयाचर के चलिए हिनदू सं्कृचर रथिा धर्म के साहितय के साथि शर्मनाक छिडेड़छिाड़ की गई । हिनदू सं्कृचर एवं साहितय के साथि छिडेड़छिाड़ का एक कारण यह भी थिा कि विदेशी आक्ानरा हिनदू धर्म , हिनदू धार्मिक जीवन-पद्धति , हिनदू लिोक जीवन में वया्र अगाध समरसता आदि को समा्र करना चाहते थिे । हिनदू धर्म में विशव के कलयाण की कामना है ।
वा्रव में दचलिर वर्ग का उदय भारतीय समाज नहीं , अपितु अरब के विदेशी शासकों के प्रचणि उतपीड़न एवं अतयाचार से हुआ है । डाॅ . भीमराव अमबेिकर ने भी इसे ्वीकार किया है और ‘ शूद्रों की खोज ’ नामक अपनी पु्रक में उल्लेख किया है कि ऋगवेद में वर्णित आर्य , दास , द्यु सब एक ही जाति के हैं और उनमें कोई बड़ा संघर््म कभी नहीं हुआ । ्वरनत्र भारत में भी हिनदू सामाजिक समरसता दर्शन को प्रभावहीन बनाने के चलिए एक ऐसी वैचारिकी भी अपने ढंग से सचक्य है , जिसे माकस्मवादी और जनवादी वैचारिकी की संज्ा दी गई है । कमयुचन्टों एवं जनवादी लिेखकों द्ािा योजनाबद्ध भ्ारक आंकड़डे भी प्र्रुर किए जाते हैं ।
वा्रव में हिनदू समाज में भेदभाव पूर्णतः अनौचितयपूर्ण है । आरमभ में जिस प्रकार से हिनदू सं्कृचर में सतयचनषठ वयवहार एवं मर्यादित आचरण पाया जाता थिा , उसको पुनर्स्थापित किया जा सकता है । हिनदू वर्ण-वयवस्था की भेदभावरहित पूर्व अवधारणा को पुनः प्रचरसषठर करते हुए लिोगों को यह समझाया जा सकता है कि वर्ण-वयवस्था की आधुनिक वयाखया में जातिप्रथिा के जो दोर् सम्मिलित कर चलिए गए हैं , उनमें ‘ नारी की कोई जाति नहीं होती ’ और ‘ ्वयंवर की वैवाहिकी प्रथिा ’ में जातिभेद नहीं थिा । वैदिक युग जातिविहीन होने से ्वचण्मर युग की श्ेणी में थिा । उसे पुनः जातिभेद दूर करके स्थापित किया जाना चाहिए । यह इसचलिए समभव है कि हिनदू सं्कृचर में ्वयं संगठन के भाव पाए जाते हैं और वह प्रकृति के सदृश संगठित है भी । �
vDVwcj & uoacj 2022 15