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दलित विषयक पत्कारिता के आधार स्तम्भ डा . आं बेडकर

तेजपाल सिंह ‘ तेज ’ ck

बा साहब डा . भीमराव आंबरेडकर नरे दलित समाज में जागपृलत लानरे के लिए कई पत् एवं पलत्काओं का प्काशन एवं समपादन किया . इन पत्- पलत्काओं नरे उनके दलित आंदोलन को आगरे बढ़ानरे में महतवपूर्ण योगदान दिया । अगर दरेखा जाय तो डा . आंबरेडकर ही दलित विषयक पत्कारिता के आधार ्तमभ हैं । वह दलित विषयक पलत्कारिता के प्थम संपादक , सं्थापक एवं प्काशक हैं . उनके द्ारा संपादित पत् आज की पत्कारिता के लिए एक मानदणड हैं । डा . आंबरेडकर द्ारा निकािरे गयरे पत्-पलत्काओं की संक्षरेप में जानकारी निम्नानुसार है-
मूक नायक
बाबा साहरेब नरे इस मराठी पाक्षिक पत् का प्काशन 31 जनवरी , 1920 को किया । इसके संपादक पाणडुराम ननदराम भटकर थरे जो कि महार जाति सरे संबंध रखतरे थरे । आंबरेडकर इस पत् के अधिककृत संपादक नहीं थरे , िरेलकन वरे ही इस पत् की जान थरे । एक प्कार सरे यह पत् उनहीं की आवाज का दूसरा लिखित रूप था । ‘ मूक नायक ’ सभी प्कार सरे मूक-दलितों की ही आवाज थी जिसमें उनकी पीड़ाएं बोलती थीं । इस पत् नरे दलितों में एक नयी चरेतना का संचार किया गया तथा उनहें अपनरे अधिकारों के लिए आंदोलित होनरे को उकसाया । यह पत् आर्थिक अभावों के चलतरे बहुत दिन तक तो नहीं चल सका िरेलकन एक चरेतना की लहर दौड़ानरे के
अपनरे उद्देशय में कामयाब रहा ।
बहिष्ृत भारत
अलप समय में ही ‘ मूक-नायक ’ के बनद हो जानरे के बाद डा . आंबरेडकर नरे 3 अप्ैि 1927 को अपना दूसरा मराठी पाक्षिक अखबार ‘ बहिष्कृत भारत ’ निकाला । यह पत् बाम्बे सरे प्काशित होता था । इसका संपादन डा . आंबरेडकर खुद ही करतरे थरे । इसके माधयम सरे वरे अस्पृशय समाज की सम्याओं और शिकायतों को सामनरे लानरे का कार्य करतरे थरे तथा साथ ही साथ अपनरे आलोचकों को जवाब भी दरेनरे का कार्य करतरे थरे । इस पत् के एक समपादकीय में उनहोंनरे लिखा कि यदि तिलक अ्छटूतों के बीच पैदा होतरे तो यह नारा नहीं लगातरे कि ‘‘ ्वराज मरेरा जनमलसद्ध
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