eMag_Oct 2021-DA | Page 49

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अधिकार है ’, बसलक वह यह कहतरे कि ‘‘ ्छुआ्छटूत का उनमूिन मरेरा जनम सिद्ध अधिकार है । ’’ इस पत् नरे भी दलित जागपृलत का महतवपूर्ण कार्य किया ।
समता
इस पत् का प्काशन 29 जून , 1928 को आरमभ हुआ । यह पत् डा . आंबरेडकर द्ारा समाज सुधार हरेतु ्थालपत सं्था ‘ समता संघ ’ का मुख पत् था । इसके संपादक के तौर पर डा . आंबरेडकर नरे दरेवराव विषणु नाइक की नियुक्त की थी । यह पत् भी अलप समय में बनद हो गया और फिर ‘ जनता ’ नामक पत् के प्काशन का उपकम किया गया ।
जनता
‘ समता ’ पत् बनद होनरे के बाद डा . आंबरेडकर नरे इसका पुनप्दाकाशन ‘ जनता ’ के नाम सरे किया । इसका प्वरेिांक 24 नवमबर , 1930 को आया । यह फरवरी 1956 तक कुल 26 साल तक चलता रहा । इस पत् के माधयम सरे डा . आंबरेडकर नरे दलित सम्याओं को उठानरे और दलित – शोषित आबादियों को जाग्त करनरे का बखूबी कार्य किया ।
प्बुद्ध भारत
14 अक्टूबर , 1956 को बाबा साहरेब डा . आंबरेडकर नरे लाखों लोगों के साथ बौद्ध धर्म ग्हण कर लिया था । इस घटनाकम के चलतरे ही बाबा साहरेब आंबरेडकर नरे ‘ जनता ’ पत् का नाम बदलकर ‘ प्बुद्ध भारत ’ कर दिया था । इस पत् के मुखशीर्ष पर ‘ अखिल भारतीय दलित फेडररेिन का मुखपत् ’ ्छपता था ।
बाबा साहब डा . आंबरेडकर के सभी पत् मराठी भाषा में ही प्काशित हुए ्योंकि मराठी ही उस समय आम जनता की भाषा थी । यह भी कि उस समय बाबा साहरेब का कार्य क्षेत्र महाराषट् ही था और मराठी वहां की जन भाषा रही है । जैसा कि विदित है कि बाबा साहब अंग्रेजी भाषा के भी प्काणड विद्ान थरे , िरेलकन उनहोंनरे अपनरे पत् मराठी भाषा में इसलिए प्काशित कियरे कि उस
समय महाराषट् की दलित जनता को मराठी भाषा के अलावा किसी और भाषा का जयादा ज्ान नहीं था , वह केवल मराठी ही समझ पाती थी । जबकि उसी समय महातमा गांधी अपनरे आप को दलितों का हित चिनतक दिखानरे के लिए अपना एक पत् ‘ हरिजन ’ अंग्रेजी भाषा में निकाल रहरे थरे जबकि उस समय दलित जनता आमतौर पर अंग्रेजी जानती ही नहीं थी । इसलिए गानधीजी का यह प्यास बरेकार गया और उनकी यह कोशिश दलितों के साथ कोरी धोखरेबाजी ही सिद्ध हुई ।
‘ समता ’ पत् बन्द होने के बाद डा . आं बेडकर ने इसका पुनर्प्रकाशन ‘ जनता ’ के नाम से किया । इसका प्रवेशांक 24 नवम्बर , 1930 को आया । यह फरवरी 1956 तक कु ल 26 साल तक चलता रहा । इस पत् के माध्यम से डा . आं बेडकर ने दलित समस्ाओं को उठाने और दलित – शोषित आबादियों को जाग्रत करने का बखूबी कार्य किया ।
ज्ात हो कि डॉ . आंबरेडकर नरे 31 जनवरी , 1920 को “ मूकनायक ” नामक पलत्का को शुरू किया । इस पलत्का के अग्रलेखों में आंबरेडकर नरे दलितों के ततकािीन आर्थिक , सामाजिक और राजनीतिक सम्याओं को बड़ी लनभटीकता सरे उजागर किया । यह पलत्का उन मूक-दलित , दबरे-कुचिरे लोगों की आवाज बनकर उभरी जो सदियों सरे सवणषों का अनयाय और शोषण चुपचाप सहन कर रहरे थरे । हालांकि इस पलत्का के प्काशन में “ शाहूजी महाराज ” नरे भी सहयोग किया था , यह पलत्का महाराज के राजय कोलहापुर में ही प्काशित होती थी । चूंकि महाराज
आंबरेडकर की लवद्ता सरे परिचित थरे जिस वजह सरे वो उनसरे लविरेष स्नेह भी रखतरे थरे ।
एक बार तो शाहूजी महाराज नरे नागपुर में “ अखिल भारतीय बहिष्कृत समाज परिषद ” की सभा संबोधित करतरे हुऐ भी कह दिया था कि – “ दलितों को अब चिंता करनरे की जरूरत नहीं है , उनहें आंबरेडकर के रूप में ओज्वी विद्ान नरेता प्ापत हो गया है । ” इसी सभा में आंबरेडकर नरे लनभटीकतापूर्वक दलितों को संबोधित करतरे हुए कहा था कि- “ ऐसरे कोई भी सवर्ण संगठन दलितों के अधिकारों की वकालत करनरे के पात् नहीं हैं जो दलितों द्ारा संचालित न हो । उनहोंनरे ्पषटताः कहा था कि दलित ही दलितों के संगठन चलानरे के हकदार हैं और वरे ही दलितों की भलाई की बात सोच सकतरे हैं । ” इस सम्मेलन में गंगाधर चिटनवीस , शंकरराव चिटनवीस , बीके बोस , लम्टर पंडित , डॉ . पराजंपरे , कोठारी , श्ीपतराव शिंदरे इतयालद सवर्ण समाज-सुधारक भी मौजूद थरे ।
1920 में हुए इस लत्लदवसीय सम्मेलन की कार्यवाही , भाषण , प््तावों आदि का वपृतांत भी 5 जून , 1920 को “ मूकनायक ” पलत्का के दसवें अंक में प्काशित हुआ था । इसके बाद सितमबर , 1920 में डॉ . आंबरेडकर अपनी अर्थशा्त् और बैरर्टरी की अधूरी पढाई पूरी करनरे के लियरे पुनाः लंदन गए । तब उनके पास साढे आठ हजार रुपयरे थरे . जिसमें 1500 रुपयरे शाहूजी महाराज नरे उनहें आर्थिक सहायता दी थी जबकि 7000 रुपयरे उनहोंनरे ्वंय एकलत्त कियरे थरे ।
विदरेि सरे अपनी शिक्षा पूर्ण करके जब वो वापस भारत आयरे तो उनहोंनरे फिर सरे शोषित- वंचितों के अधिकारों की िड़ाई िड़नी शुरु कर दी । 1927 में उनहोंनरे ‘ बहिष्कृत भारत ’ नामक एक अनय पलत्का भी निकालनी शुरू कर दी । इसमें उनहोंनरे अपनरे िरेखों के जरियरे सवणषों द्ारा कियरे जानरे वािरे अमानवीय वयवहार का कड़ा प्लतकारकिया और लोगों को अनयाय का विरोध करनरे के लिए प्रेरित किया । डा . आंबरेडकर की पत्कारिता ही आज के आंबरेडकरवादी पत्कारिता की आधार ्तमभ है , तो अतिशयोक्त न होगी ।
( साभार )
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 49