eMag_Oct 2021-DA | Page 47

, sfrgkfld n`f " V

लोग ग्ामीण समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन सरे मु्त हों । वह चाहतरे थरे कि अ्छटूत लोग नए कौशल प्ापत करें और एक नया वयवसाय शुरू करें तथा औद्ोगीकरण का लाभ उठानरे के लियरे शहरों की ओर रुख करें । उनहोंनरे गांवों को ' ्थानीयता का एक सिंक , अज्ानता , संकीर्णता और सांप्दायिकता का एक खंड ' के रूप में वर्णित किया । वह चाहतरे थरे कि अ्छटूत खुद को राजनीतिक रूप सरे संगठित करें । राजनीतिक शक्त के साथ अ्छटूत अपनी रक्षा ,
सुरक्षा और मुक्त संबंधी नीतियों को परेि करनरे में सक्षम होंगरे । जब उनहोंनरे महसूस किया कि हिंदू धर्म अपनरे तौर-तरीकों को सुधारनरे में सक्षम नहीं है , तो उनहोंनरे बौद्ध धर्म अपनाया और अपनरे अनुयायियों को भी बौद्ध धर्म अपनानरे को कहा । उनके लियरे बौद्ध धर्म मानवतावाद पर आधारित था और समानता एवं बंधुतव की भावना में विशवास करता था ।
भारत में जाति आधारित असमानता अभी भी कायम है , जबकि दलितों नरे आरक्षण के माधयम
सरे एक राजनीतिक पहचान हासिल कर ली है और अपनरे ्वयं के राजनीतिक दलों का गठन किया है , किंतु सामाजिक आयामों ( ्वा्थय और शिक्षा ) तथा आर्थिक आयामों का अभी भी अभाव है । सांप्दायिक ध्रुवीकरण और राजनीति के सांप्दायिकरण का उदय हुआ है । यह आवशयक है कि संवैधानिक नैतिकता की आंबरेडकर की दृष्टि को भारतीय संविधान में ्थायी क्षति सरे बचानरे के लियरे धार्मिक नैतिकता का समर्थन किया जाना चाहियरे । �
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 47