eMag_Oct 2021-DA | Page 46

, sfrgkfld n`f " V

के रूप में बंधुतव और समानता की भावना पर धयान केंद्रित किया । सामाजिक आयाम के साथ-साथ डॉ आंबरेडकर नरे आर्थिक आयाम पर भी धयान केंद्रित किया । वरे उदारवाद और संसदीय लोकतंत् सरे प्भावित थरे तथा उनहोंनरे इसरे भी सीमित पाया । उनके अनुसार , संसदीय लोकतंत् नरे सामाजिक और आर्थिक असमानता को नज़रअंदाज किया । यह केवल ्वतंत्ता पर केंद्रित होती है , जबकि लोकतंत् में ्वतंत्ता और समानता दोनों की वयव्था सुलनसशचत करना ़िरुरी है ।
डॉ आंबरेडकर नरे अपना जीवन समाज सरे ्छटूआ्छटूत व अस्पृशयता को समापत करनरे के लियरे समर्पित कर दिया था । उनका मानना था कि अस्पृशयता को हटाए बिना राषट् की प्गति नहीं हो सकती है , जिसका अर्थ है समग्ता में जाति वयव्था का उनमूिन । उनहोंनरे हिंदू दार्शनिक परंपराओं का अधययन किया और उनका महत्वपूर्ण मूलयांकन किया । उनके लियरे अस्पृशयता पूररे हिंदू समाज की गुलामी है जबकि अ्छटूतों को हिंदू जातियों द्ारा गुलाम बनाया जाता है , हिंदू जाति ्वयं धार्मिक मूर्तियों की गुलामी में रहतरे हैं । इसलियरे अ्छटूतों की मुक्त पूररे हिंदू समाज को मुक्त की ओर िरे जाती है । उनका मानना था कि सामाजिक नयाय के लक्य को प्ापत करनरे के बाद ही आर्थिक और राजनीतिक मुद्ों को हल किया जाना चाहियरे । यह विचार कि आर्थिक प्गति सामाजिक नयाय को जनम दरेगी , यह जातिवाद के रूप में हिंदुओं की मानसिक गुलामी की अभिवयस्त है । इसलियरे सामाजिक सुधार के लियरे जातिवाद को समापत करना आवशयक है । सामाजिक सुधारों में परिवार सुधार और धार्मिक सुधार को शामिल किया गया । पारिवारिक सुधारों में बाल विवाह जैसी प्थाओं को हटाना शामिल था । यह महिलाओं के सि्तीकरण का पुऱिोर समर्थन करता है । यह महिलाओं के लियरे संपलति के अधिकारों का समर्थन करता है जिसरे उनहोंनरे हिंदू कोड बिल के माधयम सरे हल किया था । उनका ्पषट मानना था कि जाति वयव्था नरे हिंदू समाज को स्थर बना दिया है जो बाहरी लोगों के साथ एकीकरण में बाधा
पैदा करता है । जाति वयव्था निम्न जातियों की समपृलद्ध के मार्ग में बाधक है जिसके कारण नैतिक पतन हुआ । इस प्कार अस्पृशयता को समापत करनरे की िड़ाई मानव अधिकारों और नयाय के लियरे िड़ाई बन जाती है ।
उनहोंनरे 1923 में उनहोंनरे ' बहिष्कृत हितकारिणी सभा ( आउटका्टस वरेिफेयर एसोसिएशन )’ की ्थापना की , जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति के प्चार-प्सार के लियरे समर्पित थी । 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में डॉ . आंबरेडकर नरे कालाराम मंदिर के बाहर विरोध प्दर्शन किया , ्योंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्वरेि नहीं करनरे दिया जाता था । इसनरे भारत में दलित आंदोलन को शुरू करनरे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनहोंनरे हर बार लंदन में तीनों गोलमरे़ि सम्मेलनों ( 1930-32 ) में भाग लिया और सि्त रूप सरे ' अ्छटूत ' के हित में अपनरे विचार वय्त कियरे । 1932 में उनहोंनरे महातमा गांधी के साथ पूना समझौतरे पर ह्ताक्षर कियरे , जिसके परिणाम्वरूप वंचित वगषों के लियरे अलग निर्वाचक मंडल ( सांप्दायिक पंचाट ) के विचार को तयाग दिया गया । हालांकि दलित वगषों के लियरे आरक्षित सीटों की संखया प्ांतीय विधानमंडलों में 71 सरे बढ़ाकर 147 तथा केंद्रीय विधानमंडल में कुल सीटों का 18 % कर दी गई ।
14 अ्तूबर , 1956 को उनहोंनरे अपनरे कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्हण किया । उसी वर्ष उनहोंनरे अपना अंतिम िरेखन कार्य ' बुद्ध एंड लह़ि धर्म ' पूरा किया । 1990 में डॉ . बी . आर . आंबरेडकर को भारत रत्न पुर्कार सरे सममालनत किया गया था । भारत सरकार द्ारा डॉ . आंबरेडकर फाउ़ंडेशन को सामाजिक नयाय और अधिकारिता मंत्ािय के तत्वावधान में 24 मार्च , 1992 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम-1860 के तहत एक पंजीककृत सोसायटी के रूप में ्थालपत किया गया था । फाउ़ंडेशन का मुखय उद्देशय डॉ . बी . आर . आंबरेडकर की विचारधारा और संदरेि को भारत के साथ-साथ विदरेिों में भी जनता तक पहुंचानरे
के लियरे कायदाकमों और गतिविधियों के कार्यानवयन की दरेखररेख करना है ।
बाबासाहरेब के लियरे ज्ान मुक्त का एक मार्ग है । अ्छटूतों के पतन का एक कारण यह था कि उनहें शिक्षा के लाभों सरे वंचित रखा गया था । उनहोंनरे निचली जातियों की शिक्षा के लियरे पर्यापत प्यास नहीं करनरे के लियरे अंग्रे़िों की आलोचना की । उनहोंनरे ्छात्ों के बीच ्वतंत्ता और समानता के मूलयों को ्थालपत करनरे के लियरे धर्मनिरपरेक्ष शिक्षा पर जोर दिया । वह चाहतरे थरे कि अ्छटूत
46 दलित आं दोलन पत्रिका vDVwcj 2021