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के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है । ्योंकि राषट्ीय सरकार इन दबावों सरे कम प्भावित होती है , इसलियरे वह निचली जाति का संरक्षण सुलनसशचत कररेगी । उनहें यह भी डर था कि अलपसंखयक जो कि राषट् का सबसरे कम़िोर समूह है , राजनीतिक अलपसंखयकों में परिवर्तित हो सकता है । इसलियरे ' वन मैन वन वोट ' का
लोकतांलत्क शासन पर्यापत नहीं है और अलपसंखयक को सतिा में हिस्सेदारी की गारंटी दी जानी चाहियरे । वह ' मरेजरिटेरियनिज़म सिंड्ोम ' के खिलाफ थरे और उनहोंनरे अलपसंखयकों के लियरे संविधान में कई सुरक्षा उपाय सुलनसशचत कियरे ।
भारतीय संविधान विशव का सबसरे अधिक
वयापक और विशाल संविधान है ्योंकि इसमें लवलभन् प्िासनिक विवरणों को शामिल किया गया है । डॉ आंबरेडकर नरे इसका बचाव करतरे हुए कहा कि हमनरे पारंपरिक समाज में एक लोकतांलत्क राजनीतिक संरचना बनाई है । यदि सभी विवरण शामिल नहीं होंगरे तो भविषय में नरेता तकनीकी रूप सरे संविधान का दुरुपयोग कर सकतरे हैं । इसलियरे ऐसरे सुरक्षा उपाय आवशयक हैं । इससरे पता चलता है कि वह जानतरे थरे कि संविधान लागू होनरे के बाद भारत को किन वयावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है ।
डॉ आंबरेडकर नरे संवैधानिक नैतिकता पर जोर दिया था । उनके अनुसार , भारत को जहां समाज में जाति , धर्म , भाषा और अनय कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है , एक सामानय नैतिक लव्तार की आवशयकता है तथा संविधान उस लव्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । इसी तरह उनहें लोकतंत् पर पूरा भरोसा था । उनका मानना था कि जो तानाशाही तवरित परिणाम दरे सकती है वह सरकार का मानय रूप नहीं हो सकती है । लोकतंत् श्रेषठ है ्योंकि यह ्वतंत्ता में अभिवपृलद्ध करता है । उनहोंनरे लोकतंत् के संसदीय ्वरूप का समर्थन किया , जो कि अनय दरेिों के मार्गदर्शकों के साथ संररेलखत होता है । उनहोंनरे ' लोकतंत् को जीवन पद्धति ’ के रूप में महत्व दिया , अर्थात् लोकतंत् का महत्व केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बसलक वयस्तगत , सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी है ।
इसके लियरे लोकतंत् को समाज की सामाजिक परिस्थलतयों में वयापक बदलाव लाना होगा , अनयथा राजनीतिक लोकतंत् यानी ' एक आदमी , एक वोट ' की विचारधारा गायब हो जाएगी । केवल एक लोकतांलत्क समाज में ही लोकतांलत्क सरकार की ्थापना सरे उतपन् हो सकती है , इसलियरे जब तक भारतीय समाज में जाति की बाधाएँ मौजूद रहेंगी , वा्तलवक लोकतंत् की ्थापना नहीं हो सकती । इसलियरे उनहोंनरे लोकतंत् और सामाजिक लोकतंत् सुलनसशचत करनरे के लियरे लोकतंत् के आधार
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 45