eMag_Oct 2021-DA | Page 41

fo ' ys " k . k

धूर्त पेरियार की शातिर सियासरी चालें
परेरियार का शातिर दिमाग यह जानता था के किसी भी वयस्त को उसकी संस्कृति सरे काट कर ही उसरे किसी विदरेिी संस्कृति को अपनानरे के लियरे सहजता सरे तैयार किया जा सकता है । यही उसका एकमात् ध्येय भी था । इसी लक्य
को हासिल करनरे के लिए परेरियार नरे राम के पुतिरे का दहन किया । विनयागर ( गणरेि ) मूर्ति को सिरेम लजिरे में जनता के मधय तोड़ा । परेरियार के कहनरे पर उनके गुंडों नरे हर तरह के अतयाचार हिंदू मानयताओं पर करना शुरू किया । किसी नरे भी उनका विरोध नहीं किया । हालांकि विनयागर मूर्ति तोड़नरे के मामिरे पर सिरेम लजिरे में हिंदुओं की धार्मिक आ्था आहत करनरे का मुकदमा
परेरियार के संगठन द्रलवड़ कड़गम पर दर्ज भी हुआ । अदालत में नयायाधीश की टिपपणी थी कि यदि मूर्ति तोड़नरे सरे वा्तव में किसी की भावना आहत हुई है तो कम सरे कम किसी एक नरे तो इसपर मौके पर या बाद में अपनी प्लतकया दी होती । चूंकि किसी नरे भी विरोध नहीं किया तो इसका अर्थ है कि किसी को भी इससरे कोई पररेिानी नहीं थी और सबनरे इस कार्य को ्वीकार किया । उस समय सभी मौन थरे । परेरियार की सभी हरकतों को हमनरे अपनी नियति मान ली थी । किसी नरे भी विरोध में चूं तक नहीं की ।
धर्म के साथ भाषा पर भरी हमलावर पेरियार
एक ओर हमारा हिंदू धर्म था और दूसरी ओर हमारी भाषा जिसरे हम दरेवी के रूप में पूजतरे थरे । उनहोंनरे संस्कृत और तमिल को बांट दिया । दलितों के दिमाग में यह बात ठटू़ंस दी कि संस्कृत विदरेिी भाषा है और दलितों और संस्कृत का कोई नाता नहीं है । िरेलकन भला ऐसा कैसरे संभव है ? दलितों और संस्कृत के मधय सदा सरे गहरा और निकट का नाता रहा है । वालमीलक जी और वयास जी नरे संस्कृत में लिखा । किसनरे उनहें संस्कृत पढाई ? संस्कृत ज्ान पीढी दर पीढी जाता रहा । दलितों की एक उपजाति है वलिुवर जो आज की तारीख तक हिंदू पंचांग संस्कृत में लिखतरे हैं । ्या कोई बिना संस्कृत ज्ान के पंचांग लिख सकता है ? धयान दरेनरे की बात है कि आज भी वलिुवरों को कोई रिाह्मण संस्कृत नहीं पढाता है । डा . आम्बेडकर नरे कहा था कि यदि कोई भाषा संपूर्ण राषट् की साझा भाषा हो सकती है तो वो केवल संस्कृत ही है । ऐसा उनहोंनरे संविधान सभा की चर्चा के मधय संसद में कहा था । सिलापथिकरम कोवलन संस्कृत के विद्ान थरे । वो संस्कृत सहजता सरे बोला भी करतरे थरे । एकबार किसी राहगीर नरे उनसरे संस्कृत भाषा में लिखा कोई पता पू्छा तो उनहोंनरे संस्कृत पढकर उसरे उतिर दिया । कोवलन वनिबा चेट्टियार थरे जो एक वैशय उपजाति है । यह इस बात का प्माण है कि संस्कृत आमजन की भाषा भी थी । हर वयस्त के हृदय में संस्कृत के लियरे भक्तभाव था । अत :
परेरियार के लियरे यह आवशयक था कि अपनरे कुटिल उद्देशय की पूर्ति हरेतु संस्कृत के प्लत आम जनता के भक्तभाव को कैसरे भी हो तोड़ा और नषट किया जायरे ।
जातरीय संघर्ष भडकाकर बनाया अपना आधार
तमिलनाडु में दलित और अनय जातियां सदा सरे मिलजुल कर रहा करती थीं । परेरियार इसी आपसी सद्ाव को तोड़कर समाज को दलित और गैर दलित में बांटनरे की साज़िश रच रहरे थरे । इस साज़िश के तहत उनहोंनरे योजनाबद्ध तरीके सरे यह घोषणा की कि सम्त जातिगत झगड़े रिाह्मणों के कारण ही हैं । तमिलनाडु के अनरेक गांवों में जहां एक भी रिाह्मण नहीं था , वहां के जातिगत झगड़े और हिंसा के लियरे भी परेरियार नरे रिाह्मणों को जिम्मेदार ठहराया । आज भी तमिलनाडु में ऐसा ही होता है । मुडुकुलथुर दंगरे तमिलनाडु की मझोली जातियों के समूह मु्किदोर और दरेवेन्द्र कुला वरेलिार दलितों के बीच ही हुयरे थरे । इस दंगरे में दो वयस्त माररे गयरे थरे । एक प्रेस लवज्सपत जारी कर इन दंगों को िरेकर परेरियार नरे कहा — " तुम जातियों का विनाश चाहतरे हो या नहीं ! मन बना लो । फांसी की र्सी के लियरे तैयार रहो । सभी युवा खून सरे ह्ताक्षर कर इस बाररे में घोषणा करें कि वो गांधी की मूर्तियों तोड़ेंगरे और रिाह्मणों को मारेंगरे ।" जबकि मुडुकुलथुर और रिाह्मणों के बीच कोई संबंध ही नहीं था । साथ ही परेरियार नरे यह भी कहा कि सभी प्कार की जातिगत् झगड़े रिाह्मणों के कारण हैं । परेरियार नरे एक हजार सरे भी अधिक निबंध और िरेख लिखरे हैं । अ्सी प्लतित सरे अधिक अपनरे िरेखों में उनहोंनरे सभी ्थानों में सभी प्कार की सम्याओं का कारण केवल रिाह्मणों को ही बताया है । वर्ष 1962 में किलवरेनमनि दंगों में नायडटू जाति वालों नरे 44 दलितों को जिंदा जला कर मार डाला था । इस पूररे क्षेत्र में एक भी रिाह्मण नहीं रहता था । यहां भी परेरियार नरे प्रेस लवज्सपत जारी कर दंगों के लियरे रिाह्मणों को दोषी मानतरे हुयरे मांग की कि " जातियों को तोड़नरे के लियरे रिाह्मणों का समूल
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 41