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एतदिच्छामयहं श्ोतु परं कौतूहलं हि मरे । महषदे तवं समथणो $ सि ज्ातुमरेवं विधं नरम् ।।
( बालकांड सर्ग 1 शिोक 5 )
आरंभ में वालमीलक जी नारदजी सरे प्श्न करतरे है कि — ' हरे महर्षि ! ऐसरे सर्वगुणों सरे यु्त वयस्त के संबंध में जाननरे की मुझरे उतकट इच्छा है , और आप इस प्कार के मनुषय को जाननरे में समर्थ हैं ।' महर्षि वालमीलक नरे श्ीरामचंद्र को
सर्वगुणसंपन् कहा है । अयोधया कांड प्थम सर्ग शिोक 9-32 में श्ीराम जी के गुणों का वर्णन करतरे हुए वालमीलक जी लिखतरे है । सा हि रूपोपमन्शच वीर्यवानसूयकाः । भूमावनुपमाः सूनुर्गुणैर्दशरथोपमाः । 9 । कदाचिदुपकाररेण ककृतरेतैकेन तुषयलत । न ्मरतयपकारणा शतमपयातयतिया । 11 । अर्थात् : - श्ीराम बड़े ही रूपवान और
पराकमी थरे । वरे किसी में दोष नहीं दरेखतरे थरे ।
भूमंडल पर उनके समान कोई न था । वरे गुणों में अपनरे पिता के समान तथा योगय पुत् थरे । 9 ।। कभी कोई उपकार करता तो उसरे सदा याद करतरे तथा उसके अपराधों को याद नहीं करतरे ।। 11 ।। आगरे संक्षरेप में इसी सर्ग में वरे श्ीराम के गुणों का वर्णन करतरे हैं । दरेलखयरे शिोक 12 सं 34 तक । इनमें वालमीलक जी नरे श्ीराम के निम्नलिखित गुण बताए हैं ।
1 : -अ्त्-ि्त् के ज्ाता । महापुरुषों सरे बात कर उनसरे शिक्षा िरेतरे ।
2 : -बुद्धिमान , मधुरभाषी तथा पराकम पर गर्व न करनरे वािरे ।
3 : -सतयवादी , विद्ान , प्जा के प्लत अनुर्त और प्जा भी उनको चाहती थी ।
4 : -परमदयालु , कोध को जीतनरे वािरे ,
दीनबंधु । 5 : -कुलोचित आचार व क्षात् धर्म के पालक । 6 : -शा्त् विरुद्ध बातें नहीं मानतरे थरे ,
वाच्पलत के समान तर्कशील ।
7 : -उनका शरीर निरोग था ( सामिष-भोजी का शरीर निरोग नहीं हो सकता ), तरूण अव्था । सुंदर शरीर सरे सुशोभित थरे ।
8 : - ‘ सर्वविद्ाव्रतस्ातो यथावत् सांगवरेदवित ’ यानी , संपूर्ण विद्ाओं में प्वीण , षडमगवरेदपारगामी । बाणविद्ा में अपनरे पिता सरे भी बढकर ।
9 : -उनको धर्मार्थ काम मोक्ष का यथार्थ ज्ान था तथा प्लतभाशाली थरे ।
10 : -विनयशील , गुरुभ्त , आि्य रहित
थरे । 11 : - धनुवदेद में सब विद्ानों सरे श्रेषठ । कहां तक वर्णन किया जायरे ? वालमीलक जी नरे तो यहां तक कहा है कि ' लोके पुरुषसारज्ञः साधुररेको विनिर्मिताः ।' ( वही सर्ग शिोक 18 )
अर्थात् : - उनहें दरेखकर ऐसा जान पड़ता था कि संसार में विधाता नरे सम्त पुरुषों के सारतत्व को समझनरेवािरे साधु पुरुष के रूप में एकमात् श्ीराम को ही प्कट किया है । अब ्वयं निर्णय किया जा सकता है कि श्ीराम ्या थरे ? लोभी , हतयाररे , मांसभोजी आदि या सदाचार और श्रेषठतम गुणों की साक्षात् मूर्ति । श्ीराम तो ' रामो
लवग्हवान धमदााः ' अर्थात धर्म के मूर्त रूप है । िरेलकन परेरियार जैसरे लोग श्ीराम के चररत् को ्या जानें ? इनका उद्देशय तो केवल झूठ फैला कर अपना राजनीतिक हित सिद्ध करना है ।
पेरियार की कहानरी दलित की जुबानरी
चेन्नई की झुगगी-झोपड़ी में एक दलित परिवार में जन्मे और वहीं पचीस वर्ष बितानरे वािरे एम वेंकटेशन एक आ्थावान हिंदू हैं । उनहोंनरे चेन्नई के विवरेकाननद महाविद्ािय सरे दर्शन शा्त् में स्ातकोतिर डिग्ी प्ापत की है । जब वेंकटेशन नरे महाविद्ािय में प्वरेि लिया तो उनके कथनानुसार उनहें प्लतलदन परेरियारवादियों के एक ही कथन का लगातार सामना करना पड़ा कि परेरियार एक महान दलित उद्धारक थरे । चूंकि उनहें परेरियार दर्शन का कोई ज्ान नहीं था , उनहोंनरे परेरियार सरे संबंधित सम्त उपलबध साहितय का अधययन और शोध करनरे का संकलप लिया । इसके लियरे उनहोंनरे परेरियार द्ारा ्थालपत , संचालित और संपादित सभी पलत्काओं , विदुथालाई , कुडियारासु , द्रविड़नाडु , द्रविड़न , उनके समकालीन सभी नरेताओं अन्ादुराई , एमपी सिवागन , केएपी विशवनाथन , जीवानंदम आदि के भाषण और िरेख तथा ' परेरियार सुयामरियादि प्चारनिलयम ' द्ारा प्काशित उनके सम्त साहितय पर गहन शोध किया । एक आ्थावान हिंदू होनरे के कारण परेरियार द्ारा हिंदू दरेवी दरेवताओं पर लगायरे गयरे बरेबुनियाद आरोपों सरे आहत होकर परेरियार का सतय सामनरे लानरे के लियरे वेंकटेशन नरे एक पु्तक तमिल में लिखी , ' ई . वी . रामा्वामी नायकरिन मरुप्कम '( परेरियार का दूसरा चरेहरा )। वेंकटेशन की यह पु्तक परेरियार के ककृलततव का संपूर्ण शव विच्छेदन करती हुई परेरियारवादियों के गिरे की हड्ी बन गई है । वेंकटेशन का दावा है कि जो भी सतय का अन्वेषक है वह इस पु्तक को पढ़नरे के बाद परेरियार को तयाग दरेगा । वेंकटेशन के शबदों में — " मैं अपनरे ईषट दरेवी-दरेवताओं और हिंदू धर्म पर परेरियार के असभय और जंगली विचारों
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 37