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संतािरी साहित्य में गैर-संतािरी साहित्यकारों का योगदान
संताली साहितय में गैर-संताली साहितयकारों का भी योगदान रहा है । आरंभ में संताली भाषा के विकास में विदरेिी मिशनरी नरे दिलच्पी दिखायी , अंग्रेज साहितयकार और प्िासक नरे भी संताली को आगरे बढ़ानरे का काम किया । अंग्रेज संताली साहितयकार पी ओ बोलड़ंग नरे 1855 के संताल विद्रोह का बरेबाकी सरे वर्णन किया । संताल हूल का वर्णन प्लसद्ध चिंतक कार्ल मा्सदा नरे भी किया । हूल के पशचात ही 1855 में संताल परगना जिला का निर्माण हुआ था । यहीं सरे संताली भाषा पर विधिवत अधययन शुरू हुआ । तातकािीन प्लसद् साहितयकार ड़ॉ . के के दतिा नरे भी संताल विद्रोह का वर्णन किया । 19वीं सदी में अनरेक अंग्रेज िरेखकों और अधिकारियों नरे संतालों के बाररे में लिखा जिनमें सर डबलयू हंटर , ई जी मान , सी ई एच बंपास , एल एस ओमरेिी , सर आर्चर , सर हंटर , डालटन , सर लग्यर्सन , रॉबर्ट का्टेयर्स , मै्फ्फसन शामिल हैं । प्िासकों नरे अपनरे सं्मरणों और लोक साहितय के साथ संताल जीवन के अनरेक पक्षों का गहन अधययन किया और समाजशा्त्ीय विश्लेषण किया । ररेव एल . ओ . ्कैफरूड नरे नावदे के
एक प्ाथदाना सभा में कहा कि हम लोग संतालों के बीच इसाईयत पहुंचानरे गयरे न कि उनसरे कु्छ िरेनरे । इससरे यह ्पषट है कि अंग्रेज रणनीति के तहत ही सनातनी संतालों की भाषा और परंपराओं को आधार बनाकर काम कर रहरे थरे । सन 1855 में संताल विद्रोह के बाद डॉ ओलॉव होडनरे के अनुसार मिशन के कार्यकाल को ्वणदायुग कहा गया था । ए ग्ामर ऑफ द संताल लैंग्वेज का निर्माण ्कफरूड़ नरे किया था और केमपबरेि नामक अंग्रेज नरे संताली-अंग्रेजी लड्िनरी का निर्माण किया था । पी ओ बोलड़ंग नरे संतालों के इतिहास और शबदकोष का निर्माण किया था । इसी कालखंड में दो गैर संतालों नरे भी संताली साहितय में अपना योगदान दिया डॉ डोमन साहू समीर एवं हृदय नारायण मंडल अधीर । इन दोनों नरे हिनदी एवं संताली का तुलनातमक अधययन एवं संताली हिनदी शबदकोष का संपादन किया । भारतीय भाषा के इतिहास में इसका ऐतिहासिक महतव है । डा समीर की रचनाओं को पाठयकम में भी शामिल किया गया । ्व . अधीर की सिंदूर साकाम पु्तक की चर्चा आज भी होती है । इसी कालखंड में संताली मासिक पलत्का
होड सोमवाद का प्काशन बिहार सरकार नरे कराया , जिसके प्थम संपादक बनरे डा डोमन साहु समीर । बंगाल के साहितयकार डा भौमिक एवं सुधीर लमत् नरे संताली विषय पर कई रचनाएं की । दोनों साहितयकार बांगिा साहितय के जानरेमानरे रचनाकार थरे । इनहोंनरे रलवनद्रनाथ टैगोर की बंगला रचना का संताली में अनुवाद भी किया । नयी पीढ़ी में ्वपन कुमार प्माणिक नरे बांगिा नाटकों का संताली में अनुवाद किया । हाल के दिनों में शिवशंकर सिंह पारिजात का संताली में योगदान चर्चित रहा । पारिजात नरे पद्मश्ी संताली कवि लचतिू टुडटू द्ारा संकलित सौ संताली विवाह गीतों का अनुवाद सोनरे की सिकडी रूपा की नथिया के रूप में प््तुत किया , जिसकी सराहना हुई । संताली भाषा- साहितय में गैर संताली भाषा-भाषी विद्ानों एवं िरेखकों का महतवपूर्ण योगदान कहा जा सकता है । विदरेिी एवं दरेिज सभी प्कार के विद्ानों नरे संताली साहितय में अपना योगदान दिया है । संताली भाषा साहितय की काफी हद तक बंजर भूमि को उर्वरता दरेनरे एवं हरियाली बिखरेरनरे में इन िरेखकों कम योगदान नहीं रहा ।
कई लिपियों में लिखरी जातरी है संतािरी
संताली भाषा की लिपि दरेवनागरी , रोमन , बांगिा , उडिया एवं असमिया रही है । इस तरह संताली साहितय कई लिपि में लिखी जाती रही है । अलग झारखंड राजय के अस्ततव में आनरे सरे पूर्व संयु्त बिहार के समय संताली मासिक पलत्का होड़ सोमबाद का प्काशन किया गया , जो दरेवनागरी में प्काशित होती आ रही है । साहितय अकादमी , नई दिलिी की ओर सरे ओलचिकी लिपि को मानयता दी गई और ओलचिकी को ही सर्वमानय माना जा रहा है । साहितय अकादमी नरे संताली साहितयकार जदुमनी
vDVwcj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 31