eMag_Oct 2021-DA | Page 32

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बरेसरा , भुजंग टुडटू , सूर्यदरेव बरेसरा , शयाम बरेसरा और आदितय माडटी को सममालनत किया है । संताल परगना के वरिषट साहितयकार चुंडा सोररेन सिपाही बतातरे हैं कि उनहोंनरे कई साहितय रचना की िरेलकन साहितय अकादमी नरे उनहें सममालनत नहीं किया । वरे बतातरे हैं कि उनकी रचना दरेवनागरी में हैं , इस कारण वरे सममान सरे वंचित रह गयरे । उनकी पु्तकें सिदो कानहू मुर्मू विशवलवघालय के लसिरेबस में शामिल है , िरेलकन ओलचिकी लिपि में नहीं होनरे की सजा उनहें
मिली है । वरे बतातरे हैं कि वरिषट साहितयकार व होड सोमबाद के संपादक रहरे ्व . बाबूलाल मुर्मू आदिवासी नरे कई साहितय रचरे िरेलकन वरे दरेवनागरी लिपि में थरे , इस कारण वरे भी सममान सरे वंचित रहरे ।
संतािरी के लिए कभरी नहीं रिरी कॉमन लिपि दिसोम मांझी थान आर जाहरेर थान समिति ,
झारखंड के दिसोम मांझी बािरेशवर हरेमरिम बतातरे हैं कि ओलचिकी लिपि संताल परगना के संताल नहीं जानतरे , संताल परगना में कई साहितयकार हुए जिनहोंनरे अपनी रचना दरेवनागरी लिपि में की है । उनहोंनरे मांग की है कि प्ाथमिक विद्ािय के ्छात्ों को ओलचिकी में पढ़ाई करायी जायरे । उनहोंनरे कहा कि संताली के लिए ओलचिकी लिपि का विरोध नहीं है िरेलकन दरेवनागरी और रोमन को भी मानयता दिया जाना चाहिए । वह भी तक जबकि संताली भाषा की औपचारिक
शिक्षा दरेवनागरी लिपि में ही दी जा रही है । ओलचिकी लिपि में संताली भाषा सरकारी कार्यालयों के बोर्ड पर लिखरे जा रहरे हैं । आदिवासी सोसियो एजुकेशनल एंड कलचरल एसोसिएशन , झारखंड के अधयक्ष सुभाष चंद्र मरांडी नरे बताया कि संतालों की एक कॉमन लिपि कभी नहीं रही । चुंकि अब ओलचिकी ही सर्वमानय भाषा बननरे जा रही है तो संतालों को ओलचिकी लिपि सीखनरे और सिखानरे की जरूरत
है । उनहोंनरे बताया कि अखिल भारतीय संताली िरेखक संघ के झारखंड अधयक्ष मानिक हांसदा और सुधीर चंद्र मुर्मू नरे बीएड के पाठ्यकम को ओलचिकी में लिपिबद् किया है । ओलचिकी को िरेकर विवाद था िरेलकन अब लोग समझनरे लगरे हैं । ओलचिकी कंपयूटर के माधयम सरे भी लोग सीख रहरे हैं । आदिवासी सोसियो एजुकेशनल एंड कलचरल एसोसियरेिन , झारखंड के एक प्लतलनलधमंडल नरे सुभाष चंद्र माडटी के नरेतपृतव में राजयपाल रमरेि बैस सरे मिलकर मांग की है कि झारखंड में आदिवासी बहुसंखयक हैं , उनकी मातपृभाषा संताली है । भारतीय संविधान की 8वीं अनूसूची में शामिल है , उसकी अपनी लिपि ओलचिकी है , इस कारण संताली को झारखंड की राजभाषा बनाया जाए । माडटी नरे बताया कि संताल प्ककृलत पूजक हैं , वरे वन में निवास करतरे हैं और साल वपृक्ष की पूजा अर्चना करतरे हैं ।
ओलचिकी को स्ाहपत करने की कोशिश
संताली अनुवादक रूपधन सोररेन नरे बताया कि संताल परगना के संतालों को नयरे सिररे सरे ओलचिकी सीखनरे की जरूरत है । वरे बतातरे हैं कि आजतक यहां के साहितयकार रोमन और दरेवनागरी में ही साहितय रचना करतरे आए हैं , लिहाजा जब संताली के लिए ओलचिकी को ही कॉमन लिपि के तौर पर ्थालपत किया जा रहा है अब इसके साहितय को भी ओलचिकी में कनवट्ड करनरे की जरूरत है ताकि युवा पीढ़ी अपनरे पूर्वजों द्ारा रचित-सपृलजत साहितय को पढ़ सकें । वरे बतातरे हैं कि ओलचिकी रोमन का ही रूपांतर है , रोमन के शबदों का पर्याय आमजन को प्भावित करतरे हैं िरेलकन ओलचिकी में यह संभव नहीं हैं । ओलचिकी में शबदों का संसार और लव्तार अपरेक्षाककृत बहुत ्छोटा है । बहरहाल , संताली भाषा की लिपि का विवाद थमनरे का नाम नहीं िरे रहा है , सबके अपनरे अपनरे तर्क हैं । िरेलकन ओलचिकी को मानयता मिल रही है , ऐसरे में संताली की लिपि ओलचिकी को ही मानना होगा । �
32 दलित आं दोलन पत्रिका vDVwcj 2021