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शैलेनद्र सिनहा
संतािरी : लिपि के बोझ तले कराहतरी आदिवासियों की भाषा
झारखंड़ में संताली भाषा की लिपि को लेकर विवाद जारी लिपि विवाद में गैर-संताली छीन रहे हैं संतालियों का हक
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रखंड की संताली भाषा को भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया है । संताली को दरेि की प्ाचीन भाषाओं में गिना जाता है और झारखंड में सर्वाधिक संताली भाषा ही बोली जाती है । हालांकि संताली भाषा केवल झारखंड तक ही सीमित व सिमटी हुई नहीं है बसलक इसरे मातपृभाषा के रूप में बोलनरे वािरे लोग झारखंड के अलावा बंगाल , बिहार , ओडिशा , असम एवं नरेपाल में भी बहुतायत में मिलतरे हैं । संताली भाषा ऑस्टक भाषा समूह की एक प्मुख भाषा है । हालांकि इस भाषा में लिखित साहितय का सपृजन काफी विलंब सरे प्ारंभ हुआ । ररेवररेनड डी . जरे . फिलिपस की एक पु्तक संताली लैंग्वेज एक परिचय 1852 में प्काशित हुई , जिसरे संताली साहितय का आरंभ माना जाता है । इसी पु्तक के माधयम सरे संताली भाषा प्बुद्ध वर्ग के लोगों के बीच चर्चा में आयी । आगरे चलकर विदरेिी मिशनरी नरे भी संताली भाषा को बढ़ावा दिया और ररेव पी . ओ . बोलड़ंग नरे 1865 सरे िरेकर 1938 तक संताली भाषा के विकास पर खूब जम कर काम किया । बोलड़ंग नरे संताली भाषा में साहितय की हर विधा पर अपनी रचनाओं का सपृजन किया । उनहोंनरे कथा साहितय , वयाकरण , भाषा , आयुवदेद , तंत्-मंत् और शबदकोष सहित कई विषयों पर शोध किया ।
30 दलित आं दोलन पत्रिका vDVwcj 2021