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के ठेठ दरेहात में रहनरे के लिए शीला को मजबूर होना पड़ा और शंभू को भी जाति — बिरादरी में बिटिया की शादी करानरे के लिए दान — दहरेज और खान — पान का भारी खर्च वहन करना पड़ा जिसकी वजह सरे वह बड़े कर्ज के दलदल में फंस गए हैं । इस प्कार एक प्लतभासंपन् बिटिया के उजवि भविषय का जिस प्कार असमय अंत हुआ वह सोचनरे के लिए विवश करता है कि शीला को दलित समाज में बरेटी के रूप जनम िरेनरे का खामियाजा ही तो भुगतना पड़ा है ।
समाज िरीवन में अतुलनरीय योगदान की कद्र नहीं
यह अकेली शंभू और उसकी बिटिया शीला की कहानी नहीं है । अगर दरेखें तो कु्छ गिनरे — चुनरे अपवादों को ्छोड़कर समाज के हर परिवार में ऐसी स्थलत दरेखनरे — सुननरे में आती है । वह भी तब जबकि दलित समाज की महिलाएं मिथिलांचल के सामाजिक जीवन की आवशयकताओं को पूरा करनरे में अतुलनीय योगदान दरेती हैं । समाज की आवशयकताओं को दलित समाज की महिलाओं द्ारा पूरा किए जानरे चर्चा करें तो उनकी लंबी फेहरर्त बन जायरेगी । ईंट पाथनरे , चूना बनानरे , बांस सरे निर्मित व्तुएं बनानरे , मिट्ी के बर्तन बनानरे , सबजी उगानरे और उसरे सर पर रख कर बरेचनरे सरीखरे दर्जनों काम इनही दलित महिलाओं के हाथों संपादित होतरे है । इनकी खासियत है कि यरे समाज के सभी वर्ग के ग्ाहकों सरे बड़ी ही शालीनता के साथ वयवहार कर अपना वयापार करती हैं जबकि इनकी जगह इनके पुरुष अ्सर लोगों के साथ उलझ कर नुकसान उठा िरेतरे हैं । नतीजन मरेहनत — मजदूरी का काम भी दलित समाज के परिवारों में महिलाएं ही अपनरे कांधों पर उठाती हैं । आवशयकता है दरेि के दलित सामाजिक प्लतलनलधयों की ओर सरे ऐसा पहल किए जानरे की ताकि इन दलित महिलाओं की मूलभूत सुविधाओं को धयान में रखतरे हुए ्थानीय प्िासन एवं सरकार का धयान इस ओर आककृषट कराएं जिससरे कारगर कदम उठाए जा सकें ।
एकजुट होकर करना होगा अधिकारों के लिए संघर्ष
मिथिलांचल की डॉ्टर चित्रलेखा जो दरभंगा स्थत ललित नारायण मिथिला विशवलवद्ािय के महिला अधययन केंद्र में बतौर प्लिक्षिका रही हैं , इनका कहना है कि आज नारी सशक्तकरण पर काफी जोर दिया जा रहा है िरेलकन वा्तव में अभी भी खासकर ग्ामीण क्षरेत्ों के दलित समाज में महिलाओं की स्थलत संतोषजनक नहीं कही जा सकती । इस दिशा में काफी कार्य करनरे की ज़रूरत है । डॉ्टर चित्रलेखा नरे कहा कि महिलाओं के विकास के लिए सबसरे पहिरे महिलाओं को ही आगरे आना पड़ेगा । दलित समाज की महिलाओं के पास अपनी बात रखनरे या हालातों के प्लत अपना विरोध जतानरे के लिए कोई भी माधयम या तरीका उपलबध नहीं है । ऐसरे में यरे महिलाएं लोकगीतों के माधयम सरे ही अपनी पीड़ा को बयां करती आई हैं । िरेलकन इनकी इन भावनाओं को समझनरे
वाला ना तो पहिरे कोई था और ना ही आज कोई है । जब तक महिलाएं अपनरे अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्षरत नहीं होंगी तब तक पुरुष प्धान समाज की सोच को चुनौती दरेना एवं उसमरे बदलाव करना आसान नहीं होगा ।
नहीं मिलता समाज का सहयोग
बड़ी विड़ंबना है कि जहां हम इन महिलाओं के विकास और स्थरता की बात करतरे हैं वहां आए दिन आज भी वरे बलातकार का शिकार हो रही हैं । इसरे ईशवर की ककृपा कहें या पूर्वजों द्ारा ्थालपत सं्कार व संस्कृति का असर कि मिथिलांचल में बलातकार की घटनाएं गाहरे — बगाहरे अपवाद के तौर पर ही सामनरे आती हैं । िरेलकन मामलों का सामनरे नहीं आना इस बात की गारंटी नहीं हो सकता कि मामिरे होतरे ही नहीं होंगरे । सच तो यह है कि दलित समाज की महिलाओं में ना तो इतनी जागरूकता है कि वरे अपनरे हक के लिए आवाज उठा सकें और ना
28 दलित आं दोलन पत्रिका vDVwcj 2021